Friday, 4 July 2014

ज्ञानी किस प्रकार भिन्न है



ज्ञानी को सभी नाम-रूपों से छुटकारा पाना ही है। उसे सभी नियमों और शास्त्रों से परे होना है एवं स्वयं अपना शास्त्र बनाना है। नाम-रूप के बंधन से ही हम जीव भाव को प्राप्त होते हैं और मरते हैं। तथापि ज्ञानी को कभी उसे निन्दनीय नहीं समझना चाहिए, जो अब भी नाम रूप के परे नहीं हो सका है। उसे कभी दूसरे के विषय में ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए कि 'मैं तुझसे अधिक पवित्र हूँ।'

सच्चे ज्ञानयोगी के ये लक्षण हैं- (१) वह ज्ञान के अतिरिक्त और कुछ कामना नहीं करता। (२) उसकी सभी इन्द्रियाँ पूर्ण नियन्त्रण में रहती हैं वह चुपचाप सभी कष्ट सहन कर लेता है। उन्मु्क्त अाकाश के नीचे नग्न वसुन्धरा पर उसकी शय्या हो या वह राजमहल में निवास करे, वह समानरूपेण सन्तुष्ट रहता है। वह किसी कष्ट का परिहार नहीं करता, वरन् उसे बर्दाश्त और सहन कर लेता है। वह अात्मा के अतिरिक्त और सभी वस्तु छोड देता है। (३) वह जानता है, कि एक ब्रह्म को छोडकर अन्य सब मिथ्या है। (४) उसे मुक्ति की तीव्र इच्छा होती है। प्रबल इच्छा-शक्ति द्वारा वह अपने मन को उच्चतर वस्तुओं पर दृढ रखता है और इस प्रकार शान्ति प्राप्त करता है, यदि हम शान्ति को प्राप्त न कर सकें तो हम पशुओं से किस प्रकार बढकर हैं? वह (ज्ञानी) सबकुछ दूसरों के लिए प्रभु के लिए करता है वह सभी कर्मफलों का त्याग करता है और इहलौकिक तथा परलौकिक फलों की इच्छा नहीं करता। हमारी अात्मा से अधिक विश्व हमें क्या दे सकता है? उस अात्मा को प्राप्त करने से हम 'सब' प्राप्त कर लेते हैं। वेदों की शिक्षा है कि अात्मा या सत्य एक अविभक्त सत् वस्तु है। वह मन, विचार या चेतना, जैसा कि हम उसे जानते हैं, इनसे भी परे हैं। सभी वस्तुऐं उसी से हैं। वह वही है, जिसके माध्यम से (अथवा जिसके कारण से) हम देखते, सुनते, अनुभव करते और सोचते हैं। विश्व का लक्ष्य ऊँ या एकमात्र सत्ता से एकत्व प्राप्त करना है। ज्ञानी को सभी रूपों से मुक्त होना पडता है; न तो वह हिन्दू है, न बौद्ध, न ईसाई, अपितु वह तीनों ही है। जब सभी कर्मफलों का त्याग किया जाता है, प्रभु को अर्पित किया जाता है, तब किसी कर्म में बंधन की शक्ति नहीं रह जाती। ज्ञानी अत्यंत बुद्धिवादी होता है, वह हर वस्तु अस्वीकार कर देता है। वह दिन-रात अपने से कहता है, "कोई अास्था नहीं है, कोई पवित्र शब्द नहीं है, स्वर्ग नहीं, धर्म नहीं, सम्प्रदाय नहीं, केवल अात्मा है।" सब कुछ निकाल देने पर जो नहीं छोडा जा सकता, वहाँ जब मनुष्य पहुँच जाता है तो केवल अात्मा रह जाती है। ज्ञानी किसी बात को स्वयंसिद्ध नहीं मानता; वह शुद्ध विवेक और इच्छा-शक्ति द्वारा विश्लेषण करता रहता है, और अन्ततः निर्वाण तक पहुँचता जाता है, जो समस्त सापेक्षिता की समाप्ति है।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                  (VI, २६०-२६१)
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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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