Wednesday 30 July 2014

मुक्ति की दो दशाएँ



एक परमाणु से लेकर मनुष्य तक, जड-तत्व के अचेतन प्राणहीन कण से लेकर इस पृथ्वी की सर्वोच्च सत्ता-मानवात्मा तक जो कुछ हम इस विश्व में प्रत्यक्ष करते हैं, वे सब मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। असल में यह समग्र विश्व में इस मुक्ति के लिए संघर्ष का ही परिणाम है। हर मिश्रण में प्रत्येक अणु दूसरे परमाणुओं से पृथक होकर अपने स्वतंत्र पथ पर जाने की चेष्टा कर रहा है, पर दूसरे उसे आबद्ध करके रखे हुए हैं। हमारी पृथ्वी सूर्य से दूर भागने की चेष्टा कर रही है तथा चन्द्रमा, पृथ्वी से। प्रत्येक वस्तु में अनन्त विस्तार की प्रवृत्ति है। इस विश्व में हम जो कुछ देखते हैं उस सबका मूल आधार मुक्ति-लाभ के लिए यह संघर्ष ही है। इसी की प्रेरणा से साधु प्रार्थना करता है और डाकू लूटता है। जब कार्य-विधि अनुचित होती है, तो उसे हम अशुभ कहते हैं और जब जब उसकी अभिव्यक्ति उचित तथा उच्च होती है, तो हम उसे शुभ कहते हैं। परन्तु दोनों दशाओं में प्रेरणा एक ही होती है, और वह है मुक्ति के लिए संघर्ष। साधु अपनी अपनी बद्ध दशा को सोचकर कातर हो उठता है, वह उससे छुटकारा पाने की इच्छा करता है, और इसलिए ईश्वरोपासना करता है। चोर यह सोचकर कातर होता है कि उसके पास अमुक वास्तुएँ नहीं है, वह उस आभाव से छुटकारा पाने की-उससे मुक्त होने की-कामना करता है, और इसलिए चोरी करता है। चेतन अथवा अचेतन समस्त प्रकृति का लक्ष्य यह मुक्ति ही है, और जाने-अनजाने सारा जगत् इसी लक्ष्य की ओर पहँचने का यत्न कर रहा है।    
                                                       (II, ८१-८२)

यहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि इच्छुक व्यक्ति की स्वतंत्रता एक चोर द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता से किस प्रकार भिन्न है। इच्छुक व्यक्ति द्वारा कि गई स्वतंत्रता की खोज उसे प्रसन्नता और स्वतंत्रता की ओर ले जाती है जबकि चोर की खोज उसे अधिक से अधिक बन्धन की ओर ले जाती है।

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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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