Wednesday 23 October 2024

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 11

१९१३ ई. में उनका मन मायावती आश्रम के अध्यक्ष पद से निवृत्ति लेकर एक बार फिर साधना में डूब जाने को व्याकुल हो उठा। इसी उद्देश्य से मदर सेवियर की सहायता से उन्होंने निर्जन वन्य अंचल में एक छोटे-से आश्रम की स्थापना की। वह उनके साधक-जीवन की असंख्य स्मृतियों से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोग उस अंचल को 'श्याँला' कहते थे। इस निर्जन पर्वतीय वनभूमि का क्षेत्र मन को सहज ही अन्तर्मुखी कर डालता है। पर्वत की ढलान पर एक के बाद एक तीन सरोवर स्थित हैं। इसके एक ओर अति उच्च तुषार-आवृत्त हिमालय है, तो दूसरी ओर ५००० फीट नीचे हरी-भरी घाटी है। श्याँला को 'श्यामला' में रूपान्तरित करके और उसके साथ श्यामल प्रतिच्छाया युक्त 'ताल' शब्द को जोड़कर विरजानन्द ने इस नवीन वनांचल को नया नाम दिया था - श्यामलाताल।

१९१४ ई. के अन्त से लेकर करीब १२ वर्ष उन्होंने इसी मठ में तपस्या करते हुए बिताए थे। धीरे-धीरे इस आश्रम से जुड़े हुए एक रामकृष्ण सेवाश्रम का भी निर्माण हो गया। श्यामलाताल में ही रहकर कठोर साधना के साथ-साथ उन्होंने स्वामीजी की जीवनी के तीसरे तथा चौथे खण्ड के सम्पादन तथा प्रकाशन का कार्य भी सम्पन्न किया। १९१९ ई. में करीब पाँच महीने उन्होंने दक्षिण भारत के तीर्थों के दर्शन किए तथा श्रीलंका का परिभ्रमण किया था।

विरजानन्द के मन की सहज प्रवृत्ति तपस्या की ओर थी और जब वे मठ तथा मिशन के अध्यक्ष पद पर आसीन हुए, तब भी इसमें कोई व्यतिक्रम नहीं दीख पड़ा। उनके व्यक्तिगत जीवन की यह तप के प्रति निष्ठा दूसरों के जीवन को भी तपस्या की ओर प्रेरित करती। उनके समीप आनेवाले और भी अनेक लोग उनके इस त्याग-तपस्यामय आदर्श से प्रभावित हुए थे। उदाहरण के लिए संघ के एक वरिष्ठ संन्यासी की यह स्मृति प्रस्तुत है, 'विश्वरंजन महाराज ने कहा था- वे जब वाराणसी में तपस्या कर रहे थे, तब वे दोनों समय मन्दिर से प्रसाद लेकर उदरपूर्ति किया करते थे। उसी समय पूजनीय कालीकृष्ण महाराज तीर्थयात्रा करते हुए वहाँ पहुँचे और विश्वरंजन महाराज को वहाँ तपस्या करते देख बहुत आनन्दित हुए। परन्तु पूजनीय महाराज ने उनसे एक बात कही, "देखो विश्वरंजन, बिना कोई सेवा किए मन्दिर से प्रतिदिन प्रसाद ग्रहण करने से दाता के पापों का अंश लेना पड़ता है।" उसी दिन से महाराज के निर्देशानुसार विश्वरंजन महाराज प्रतिदिन ठाकुर की सेवा के लिए फूल तोड़कर माला बना दिया करते थे।'

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

Tuesday 22 October 2024

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 10

स्वामी अखण्डानन्द ने स्वामीजी की जीवनी का प्रथम खण्ड पढ़ने के बाद विरजानन्द के नाम एक भावपूर्ण पत्र लिखा था। महुला से १ फ़रवरी १९१३ को लिखित उस पत्र के कुछ अंश इस प्रकार हैं-

प्रिय विरजानन्द,

जीवनी का पहला खण्ड मैंने आद्योपान्त पढ़ा और जब तक मैं उसे पढ़ता रहा, तब तक रोमांचित शरीर के साथ मानो ठाकुर तथा स्वामीजी को साक्षात् देखता रहा। वही दक्षिणेश्वर, वही काशीपुर के उद्यान आदि की बातें पढ़ते-पढ़ते सब कुछ हूबहू आँखों के सामने आकर खड़ा हो जाता है। धन्य है मदर सेवियर! और धन्य है स्वामीजी के 'प्राच्य तथा पाश्चात्य शिष्यगण', जिनके अधिक प्रयास के फलस्वरूप आज हम जनता के समक्ष ऐसी सर्वांग सुन्दर 'जीवनी' प्रस्तुत कर सके। तुम सभी के निष्ठापूर्ण प्रयास के फलस्वरूप और मदर (सेवियर) की असीम भक्ति के कारण, स्वयं स्वामीजी ने ही अपनी जीवनी में स्वयं को ढाल दिया है! तुम लोगों की समवेत चेष्टा तथा अचल भक्ति के फलस्वरूप श्री स्वामीजी को मानो सर्वदा ही तुम लोगों के इस ग्रन्थ में प्रविष्ट होकर निवास करना पड़ेगा।

एक बात और - पहला खण्ड पढ़ने के बाद दूसरे खण्ड के लिए और चार महीने का विलम्ब प्रायः असह्य ही प्रतीत होगा। दूसरा खण्ड पाने तक मैं दिन गिनते रहूँगा। मदर को मेरी ओर से कहना कि अद्वैत आश्रम से जो श्री स्वामीजी की जीवनी निकली है, उसकी कोई तुलना नहीं है। एक इसी कार्य के लिए 'अद्वैत आश्रम' का गौरव अक्षुण्ण तथा चिर उज्ज्वल रहेगा ! दूसरा खण्ड प्रकाशित होते ही मुझे भेजना मत भूलना। उसके कब तक निकलने की सम्भावना है, यह भी लिखकर सूचित करना।

स्वामीजी की ग्रन्थावली के एक खण्ड का पाठ करने के बाद अभेदानन्दजी ने विरजानन्द को एक पत्र लिखा, जिसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रसंग में उल्लेखनीय है - 'स्वामीजी के Memorial edition के अनुवादित अंश बड़े सुन्दर हैं। The East and the West (प्राच्य और पाश्चात्य) को जितना देखा है - beyond criticism (त्रुटिहीन) है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुम उनके अमूल्य रत्नों को जगत् में वितरित करके जगत् को समृद्ध बना रहे हो। यह एक बड़ा उत्तम कार्य है और व्याख्यान आदि देने की अपेक्षा काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। यह तुम्हारे लिए एक ऐसे संन्यासी के लिए सुरक्षित रखा हुआ था, जिसमे अनन्त धैर्य, शान्ति और साथ ही अटल उत्साह है।'

स्वामी शुद्धानन्द ने भी इस जीवनी को पढ़ने के बाद विरजानन्द को बधाई देते हुए लिखा, 'जैसा अथक परिश्रम करके तुम जो इस बृहदाकार जीवनी को प्रकाशित कर रहे हो, मुझे नहीं लगता कि कोई और वैसा कर पाता।'

स्वामीजी की भावधारा के प्रचार के फलस्वरूप आज देश-विदेश में जो इतनी चेतना दीख पड़ती है, उसके पीछे निहित मौन अथक प्रयास के इतिहास को शायद अब भी बहुत-से लोग नहीं जानते।

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

Monday 21 October 2024

आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च : 9

१९०६ से १९१३ ई. तक विरजानन्द अद्वैत आश्रम के अध्यक्ष रहे। इस आश्रम के लिए यह सचमुच ही एक विशिष्ट समय सिद्ध हुआ। मायावती आश्रम उन दिनों अर्थाभाव के संकट से गुज़र रहा था। विरजानन्द जैसे मितव्ययी, प्रबन्ध-कुशल, धैर्यवान तथा सहिष्णु अध्यक्ष के नेतृत्व की विशेष आवश्यकता थी। उनके कुशल संचालन में आश्रम क्रमशः स्वावलम्बी हो उठा और 'प्रबुद्ध भारत' पत्रिका के प्रसार में भी काफी वृद्धि हुई। 

स्वरूपानन्द द्वारा परिकल्पित स्वामी विवेकानन्द के सम्पूर्ण साहित्य का पाँच खण्डों में संकलन तथा प्रकाशन का कठिन उत्तरदायित्व भी उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया। उक्त ग्रन्थमाला (Complete Works of Swami Vivekananda) के अतिरिक्त स्वामीजी की बृहत् अँग्रेज़ी जीवनी (The Life of Swami Vivekananda by his Eastern and Western Disciples) का चार खण्डो में सम्पादन तथा मुद्रण भी स्वामी विरजानन्द का एक अन्य महान योगदान है। 

उन दिनों उन्हें सुबह से लेकर देर रात तक कठोर परिश्रम करना पड़ता था। स्वामीजी की जीवनी की पाण्डुलिपि को जब स्वामी सारदानन्द के पास संशोधन हेतु भेजा गया, तो उन्होंने कोलकाता से एक पत्र में लिखा था, 'स्वामीजी की जीवनी के विषय में तुमने जो लिखा है, उसे जहाँ तक सम्भव होगा देख लूँगा। उसके संशोधन का उत्तरदायित्व में स्वीकार करता हूँ, परन्तु कह नहीं सकता कि मैं उसमें विशेष कुछ जोड़ सकूँगा या नहीं।... तुमसे विशेष अनुरोध है कि तुम अत्यधिक परिश्रम करके अपने स्वास्थ्य को चौपट मत कर देना। तुम्हारे न रहने से मायावती आश्रम निश्चित रूप से बन्द हो जाएगा।... मेरी यही प्रार्थना है कि ठाकुर तुम्हें सकुशल रखें।' 

विरजानन्द ने अपने गुरुदेव के आशीर्वाद की अलौकिक शक्ति से उत्साहित होकर इस कठिन कार्य को सम्पन्न किया था। यह कार्य सचमुच ही समग्र राष्ट्र के लिए उनकी एक चिर-स्मरणीय भेंट है।

--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : https://www.vrmvk.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ https://prakashan.vrmvk.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   koo   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26