Thursday 31 July 2014

सम्पूर्ण स्वाधीनता : Vivekananda Kendra News


            मुक्ति का अर्थ है, सम्पूर्ण स्वाधीनता-शुभ और अशुभ, दोनों प्रकार के बन्धनों से छुटकारा पा जाना। इसे समझना जरा कठिन है। लोहे की जंजीर भी एक जंजीर है, और सोने की जंजीर भी एक जंजीर ही है। यदि हमारी अँगुली में एक काँटा चुभ जाये, तो उसे निकालने के लिए हम दूसरा काँटा काम में लाते हैं, परन्तु जब वह निकल जाता है, तो हम दोनों को ही फेंक देते हैं।
- स्वामी विवेकानन्द (III, ३१)

Vivekananda Kendra Arunjyoti Annual Report 2013-14 : Read Online
Yuva Bharati : The Voice of Youth : thought provoking magazine by Vivekananda Kendra
Subscription Rate :
    Single Copy : Rs.15/-
    Annual : Rs.160/-
    3 years : Rs.460/-
    10 years : Rs.1,400/-

For more information please contact the office.

For Online Subscription plz visit : http://prakashan.vivekanandakendra.org/periodicals/yuvabharati

Editorial August 2014 : ISRO Parliamentarians and Ancient Literature : Read Online
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की मासिक पत्रिका "केन्द्र भारती" सदस्यता विवरण
एक अंक     : रु २० /-
वार्षिक        : रु १५०/-
त्रि-वार्षिक   : रु ४००/-
पञ्च-वार्षिक : रु ६००/-
दस-वार्षिक : रु १,२००/-

संवर्धक           : रु २,०००/- ( बीस वर्ष )
विशेष संवर्धक : रु ५,०००/- (बीस वर्ष एवं  इस अवधि में प्रत्येक नई छपने वाली पुस्तक भेजी जायेंगी  )

अधिक जानकारी के लिए  कृपया कार्यालय से संपर्क करे

संपादकीय  जुलाई २०१४ : हरियाली के हत्यारे : विस्तृत

For Online Subscription plz visit : http://prakashan.vivekanandakendra.org/periodicals/kendrabharati
Action Song
वानर सैना चली वानर सैना
अरे,रामजी के काम पर वानर सैना

एक नहीं दो नहीं सब साथ है
रामजी के काम पर वानर सैना

कोई छोटा है कोई मोटा यहाँ
कोई पतला है लम्बा यहाँ

हट्टा कट्टा इनका तन देखो
लम्बी लम्बी इनकी पूछ को देखो

हाथो में सबके पत्थर यहाँ
इनसे बड़े वीर मिलते कहाँ ?
पथ में है सागर संकट बड़ा
राम के नाम से सेतु बना

राम नाम की शक्ति अपार
दुष्टो पर गदा से करते प्रहार

रामजी की जीत हुई रावण की हार
विजय  आनन्द मानावे संसार

सियावर रामचन्द्र की ………………… जय
पवनसुत हनुमान की ………………… जय
उमापति महादेव की …………………   जय

वानर सैना आई वानर सैना
अरे, रामजी को जीता कर वानर सैना

धर्म को जीता कर वानर सैना
सत्य को जीता कर वानर सैना

भारत माता की ………………………जय 
स्वामी विवेकानन्द की………………जय

Upcoming Events :

Computer Teachers camp at Portblair : View Event Detail

Spiritual Retreat at Kanyakumari : View Event Detail

યોગ શિક્ષા શિબિર : રાજકોટ, ગુજરાત : વધુ વિગત

New Sites & Blogs :

Vivekananda Kendra Vedic Vision Foundation : http://blog.vkvvf.org

Vivekanadna Kendra Rural Development Program : http://www.vkrdp.org

વિવેકસુધા : Viveksudha : A quarterly gujarati mag from Vivekananda Kendra, Kanyakumari : Blog Launched

Daily Katha is online at : http://katha.vkendra.org

Kind Attention

We are happy to inform that the "Daily Katha" is successfully ported on Google Group, in which you can select to receive All email, Abridged version, Digest version or no email option. From 1st August  "Daily Katha" will be sent by Google Group only, we will add all the existing recipients of the current group.

If any of your friend or family want to receive they can simply send email to daily-katha+subscribe@googlegroups.com they will receive first email for email verification & once confirm, second email for group joining confirmation within a minute.

If you face any difficulty in join please drop a email to katha@vkendra.org with your contact detail, alternatively feel free to call Sri Hardik at 076396-70994 for quick help.



KATHA : Vivekananda Kendra
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari)
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org
Landline : Himachal:+91-(0)177-2835-995, Kanyakumari:+91-(0)4652-247-012
Mobile : Kanyakumari:+91-76396-70994, Himachal:+91-94180-36995
Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

स्वाधीनता, समता और बन्धुता

आजकल के जमाने में इसी सतयुगी भावना से समस्त-स्वाधीनता-बन्धुतावली समता का रूप धारण कर लिया है। पर यह भी एक धर्मान्धता है। यथार्थ समता न तो संसार में कभी हुई है और न कभी होने की आशा है। यहाँ हम सब समान हो ही कैसे सकते हैं?

इस प्रकार की असम्भव सफलता का फल तो मृत्यु ही होगा! यह जगत जैसा है, वैसा क्यों है? नष्ट सन्तुलन के कारण। साम्य का अाभाव, केवल वैषम्यभाव। आद्यावस्था में-जिसे प्रलय कहा जाता है-पूर्ण संतुलन हो सकता है। तब फिर इन सब निर्माणशील विभिन्न शक्तियों का उद्भव किस प्रकार होता है?-विरोध, प्रतियोगिता एवं प्रतिद्वंद्विता द्वारा ही। मान लो कि संसार के सब भौतिक परमाणु साम्यावस्था में स्थित हो जायें-तो फिर क्या सृष्टि की प्रक्रिया हो सकेगी?

विज्ञान हमें सिखाता है कि यह असम्भव है। स्थिर जल को हिला दो; तुम देखोगे कि प्रत्येक जलबिन्दु फिर से स्थिर होने की चेष्टा करता है, एक-दूसरे की ओर इसी हेतु दौडता है। इसी प्रकार इस जगत्-प्रपंच में समस्त ध्वनियाँ एवं समस्त पदार्थ अपने पूर्ण साम्यभाव को पुनः प्राप्त करने के लिए चेष्टा कर रहे हैं। पुनः वैषम्यावस्था आती है और उससे पुनः इस सृष्टिरूप मिश्रण की उत्पत्ति हो जाती है। विषमता सृष्टि की नींव है। परन्तु साथ ही वे शक्तियाँ भी, जो साम्यभाव स्थापित करने की चेष्टा करती हैं, सृष्टि के लिए उतनी ही अावश्यक हैं, जितनी कि वे, जो उस साम्यभाव को नष्ट करने का प्रयत्न करती हैं। (II, ८६)


--

The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari)
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read Article, Magazine, Book @ http://eshop.vivekanandakendra.org/e-granthalaya
Cell : +91-941-801-5995, Landline : +91-177-283-5995

. . . Are you Strong? Do you feel Strength? — for I know it is Truth alone that gives Strength. Strength is the medicine for the world's disease . . .
This is the great fact: "Strength is LIFE; Weakness is Death."
Follow us on   blog   twitter   youtube   facebook   g+   delicious   rss   Donate Online

Wednesday 30 July 2014

मुक्ति की दो दशाएँ



एक परमाणु से लेकर मनुष्य तक, जड-तत्व के अचेतन प्राणहीन कण से लेकर इस पृथ्वी की सर्वोच्च सत्ता-मानवात्मा तक जो कुछ हम इस विश्व में प्रत्यक्ष करते हैं, वे सब मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। असल में यह समग्र विश्व में इस मुक्ति के लिए संघर्ष का ही परिणाम है। हर मिश्रण में प्रत्येक अणु दूसरे परमाणुओं से पृथक होकर अपने स्वतंत्र पथ पर जाने की चेष्टा कर रहा है, पर दूसरे उसे आबद्ध करके रखे हुए हैं। हमारी पृथ्वी सूर्य से दूर भागने की चेष्टा कर रही है तथा चन्द्रमा, पृथ्वी से। प्रत्येक वस्तु में अनन्त विस्तार की प्रवृत्ति है। इस विश्व में हम जो कुछ देखते हैं उस सबका मूल आधार मुक्ति-लाभ के लिए यह संघर्ष ही है। इसी की प्रेरणा से साधु प्रार्थना करता है और डाकू लूटता है। जब कार्य-विधि अनुचित होती है, तो उसे हम अशुभ कहते हैं और जब जब उसकी अभिव्यक्ति उचित तथा उच्च होती है, तो हम उसे शुभ कहते हैं। परन्तु दोनों दशाओं में प्रेरणा एक ही होती है, और वह है मुक्ति के लिए संघर्ष। साधु अपनी अपनी बद्ध दशा को सोचकर कातर हो उठता है, वह उससे छुटकारा पाने की इच्छा करता है, और इसलिए ईश्वरोपासना करता है। चोर यह सोचकर कातर होता है कि उसके पास अमुक वास्तुएँ नहीं है, वह उस आभाव से छुटकारा पाने की-उससे मुक्त होने की-कामना करता है, और इसलिए चोरी करता है। चेतन अथवा अचेतन समस्त प्रकृति का लक्ष्य यह मुक्ति ही है, और जाने-अनजाने सारा जगत् इसी लक्ष्य की ओर पहँचने का यत्न कर रहा है।    
                                                       (II, ८१-८२)

यहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि इच्छुक व्यक्ति की स्वतंत्रता एक चोर द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता से किस प्रकार भिन्न है। इच्छुक व्यक्ति द्वारा कि गई स्वतंत्रता की खोज उसे प्रसन्नता और स्वतंत्रता की ओर ले जाती है जबकि चोर की खोज उसे अधिक से अधिक बन्धन की ओर ले जाती है।

--

The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari)
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read Article, Magazine, Book @ http://eshop.vivekanandakendra.org/e-granthalaya
Cell : +91-941-801-5995, Landline : +91-177-283-5995

. . . Are you Strong? Do you feel Strength? — for I know it is Truth alone that gives Strength. Strength is the medicine for the world's disease . . .
This is the great fact: "Strength is LIFE; Weakness is Death."
Follow us on   blog   twitter   youtube   facebook   g+   delicious   rss   Donate Online

Tuesday 29 July 2014

आत्मा की मुक्ति

    जिस प्रकार हमें आँखों के होने का ज्ञान उसके कार्यों द्वारा ही होता है, उसी प्रकर उस आत्मा को बिन उसके कार्यों के देख नहीं सकते। इसे इन्द्रियगम्य अनुभूति के निम्न स्तर पर नहीं लाया जा सकता। यह विश्व की प्रत्येक वस्तु का अधिष्ठान है, यद्यपि यह स्वयं अधिष्ठान रहित है। जब हमें इस बात का ज्ञान होता है कि हम आत्मा हैं, हम मुक्त हो जाते हैं। आत्मा कभी परिवर्तित नहीं होती। इस पर किसी कारण का प्रभाव नहीं पड सकता, क्योंकि वह स्वयं कारण है। वह स्वयं ही अपना कारण है। यदि हम अपने में कोई चीज प्राप्त कर लें, जो किसी कारण से प्रभावित नहीं होती, तो हमने अपने को जान लिया।

    मुक्ति का अमरता से अविच्छिन्न सम्बन्ध है। मुक्त होने के लिए व्यक्ति को प्रकृति के नियमों के परे होना चाहिए। नियम तभी तक है, जब तक हम अज्ञानी हैं। जब ज्ञान होता है हमें लगता है कि नियम हमारी भीतर की मुक्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इच्छा कभी मुक्त नहीं हो सकती, क्योंकि वह कार्य और कारण की दासी है। किन्तु, इच्छा के पीछे रहने वाला अहं मुक्त है और यही आत्मा है। 'मैं मुक्त हूँ'-यह वह आधार है जिस पर अपना जीवन निर्मित उसका यापन करना चाहिए। मुक्ति का अर्थ है अमरता।
(VIII, ११७)
  
    इस विश्व में, जो सदैव परिवर्तनशील है, क्या कोई वस्तु अनन्त और अपरिवर्तनशील हो सकती है? हमारे प्राचीन ऋषियों ने, जो उच्च कोटि के वैज्ञानिक थे, दृढतापूर्वक घोषणा की थी कि ऐसी वस्तु सत्य है। उन्होंने अपने मन को इन्द्रियातीत वस्तुओं से हटाकर और अपने होने के केन्द्र में एकाग्र कर इसकी खोज की थी। तब उन्होंने वास्तविक सत्य और उसके अनन्त ज्ञान का अनुभव प्राप्त किया था। इस सत्यान्वेषण की प्रक्रिया अथवा स्वानुभूति को उनके द्वारा सर्वोत्कृष्ट तकनीक में निर्मित किया गया ताकि कोई भी व्यक्ति कहीं भी इस संसार में उनके द्वारा निर्धारित निर्देशों का अनुकरण कर इस सत्य की अनुभूति कर सके।
--
KATHA : Vivekananda Kendra
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari)
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org
Landline : Himachal:+91-(0)177-2835-995, Kanyakumari:+91-(0)4652-247-012
Mobile : Kanyakumari:+91-76396-70994, Himachal:+91-94180-36995
Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

Monday 28 July 2014

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड "तुम" (परमात्मा) है


           यह ब्रह्माण्ड स्वयं 'तुम' है; अविभक्त तुम। तुम इस समस्त जगत में ओतप्रोत हो। 'समस्त हाथों से तुम काम कर रहे हो, समस्त मुखों से तुम खा रहे हो। समस्त नासा-रंन्ध्रों से तुम श्वास-प्रश्वास ले रहे हो, समस्त मन से तुम विचार कर रहे हो।' समग्र जगत् ही तुम हो, यह ब्रह्माण्ड तुम्हारा शरीर है। तुम्हीं व्यक्त और अव्यक्त जगत् दोनों ही हो। तुम्हीं जगत् की आत्मा हो तथा तुम्हीं उसका शरीर भी हो। तुम्हीं ईश्वर हो, तुम्हीं देवता हो, तुम्हीं मनुष्य हो, तुम्हीं पशु हो, तुम्हीं उद्भिद हो, तुम्हीं खनिज हो, तुम्हीं सब हो-समग्र व्यक्त जगत् ही तुम हो। जो कुछ है, सब तुम हो।

 

            तुम असीम हो। असीम को विभक्त नहीं किया जा सकता। इसका कोई अंश नहीं हो सकता, क्योंकि तब प्रत्येक अंश असीम होगा, और तब अंश और पूर्ण में कोई भेद नहीं रह जायेगा, जो एक असंगत बात है। अतएव यह बात कि तुम श्री अमुक हो, कभी सत्य नहीं हो सकती, यह केवल दिवा-स्वप्न है। यह जान लो और मुक्त हो जाओ। यही अद्वैत का निष्कर्ष है।

 

            'मैं तो देह हूँ, इन्द्रिय और मन ही; मैं अखण्ड सच्चिदानंद हूँ, मैं ही वह हूँ, मैं ही वह हूँ।' यही यथार्थ ज्ञान है, तर्क तथा बुद्धि तथा अन्य सब अज्ञान है। मैं तब कौन-सा ज्ञान-लाभ करूँगा? मैं स्वयं ज्ञानस्वरूप हूँ। मैं कौन-सा जीवन प्राप्त करूँगा? मैं स्वयं जीवन-स्वरूप हूँ, एक सद्वस्तु हूँ और ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो मेरे द्वारा प्रकाशित नहीं है, जो मुझ में नहीं है और जो मेरे स्वरूप में अवस्थित नहीं है। मैं ही भूतसमूह के रूप में अभिव्यक्त हुआ हूँ। किन्तु मैं एक मुक्तस्वरूप हूँ। कौन मुक्ति चाहता है? कोई भी नहीं। यदि तुम अपने को बद्ध सोचो, तो बद्ध ही रहोगे, तुम स्वतः ही अपने बन्धन के कारण होओगे। यदि तुम अनुभव करो कि तुम मुक्त हो, तो इसी क्षण तुम मुक्त हो।

 

            यही ज्ञान है-मुक्तिप्रद ज्ञान। समग्र प्रकृति का चरम लक्ष्य ही मुक्ति है।

 (IV, २१८-२१९)


--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

Sunday 27 July 2014

वास्तविक स्वतंत्रता क्या है?


 

            हम देखते हैं कि प्रत्येक देश में लोग इस वेदान्त मत को अपनाकर कहते हैं, "मैं धर्माधर्म से अतीत हूँ, मैं नैतिकता के किसी नियम से नहीं बँधा हूँ, अतः मेरी जो इच्छा होगी, वही करूँगा।" इस देश में आजकल देखोगे, अनेक मूर्ख कहते रहते हैं, "मैं बद्ध नहीं हूँ, मैं स्वयं ईश्वर हूँ; मेरी जो इच्छा होगी वही करूँगा।" यह ठीक नहीं है, यद्यपि यह बात सच है कि आत्मा भौतिक, मानसिक और नैतिक सभी प्रकार के नियमों से परे है। नियम के अन्दर बंधन है और नियम के बाहर मुक्ति। यह भी सच है कि मुक्ति आत्मा का जन्मगत स्वभाव है, यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है और आत्मा का यह वास्तविक मुक्त स्वभाव भौतिक आवरण के भीतर से मनुष्य की प्रतीयमान स्वतंत्रता के रूप में प्रतीत होता है। अपने जीवन के प्रत्येक क्षण हम अपने को मुक्त अनुभव करते हैं। हम अपने को मुक्त अनुभव किये बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते, बोल नहीं सकते और श्वास-प्रश्वास भी नहीं ले सकते।

 

            किन्तु फिर कुछ विचार करने पर यह भी प्रमाणित हो जाता है कि हम एक मशीन के समान हैं, मुक्त नहीं। तब कौन-सी बात सत्य मानी जाये? 'हम मुक्त हैं' यह धारणा ही क्या भ्रमात्मक है?

 

            एक पक्ष कहता है कि 'मैं मुक्त हूँ', यह धारणा भ्रमात्मक है, और दूसरा पक्ष कहता है कि 'मैं बद्ध हूँ', यह भ्रमात्मक है। यह कैसे?

 

            वास्तव में, मनुष्य मुक्त है; मनुष्य परमार्थतः जो है, वह मुक्ति के अतिरिक्त कुछ और हो ही नहीं सकता, किन्तु ज्यों ही वह माया के जगत में आता है, ज्यों ही नाम रूप के भीतर पड जाता है, त्यों ही वह बद्ध हो जाता है?

 

            'स्वाधीन इच्छा' कहना ही भूल है। इच्छा कभी स्वाधीन हो नहीं सकती। होगी कैसे? जो प्रकृत मनुष्य है, वह बद्ध हो जाता है, तभी उसकी इच्छा की उत्पत्ति होती है, उससे पहले नहीं। मनुष्य की इच्छा बद्ध है, किन्तु जो इसका आधार है, वह तो सदा ही मुक्त है। इसीलिये बन्धन की दिशा में भी-चाहे मनुष्य-जीवन हो, चाहे देव-जीवन, चाहे पृथ्वी पर हो, चाहे स्वर्ग में-हममें इस स्वतंत्रता या मुक्ति की स्मृति रहती ही है, जो कि हमारा विधिप्रदत्त अधिकार है।

 

            और जाने में हो या अनजाने में, हम सब इस मुक्ति की ओर संघर्ष कर रहें हैं? मनुष्य जब मुक्त हो जाता है, तब वह किस प्रकार नियम में बद्ध रह सकता है? तब विश्व का कोई भी नियम उसे बाँध नहीं सकता; क्योंकि वह विश्व-ब्रह्माण्ड ही उसका हो जाता है।

 (II, ३६-३७)


--
कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org

Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26