ॐ
आत्मा में किसी प्रकार का जाति-भेद नहीं है; उसमें 'जाति-भेद है' , यह मानना भ्रान्ति है। इसी प्रकार 'आत्मा का जीवन या मरण या कोई गति अथवा गुण है', यह भावना भी भ्रम है। आत्मा का कभी परिवर्तन नहीं होता, न वह कहीं अाती है, न जाती है। वह अपनी समग्र अभिव्यक्तियों की चिरंतर स्वयं साक्षीस्वरूप है, किन्तु हम उन अभिव्यक्तियों को ही आत्मा समझ बैठते हैं। यह अनादि अनंत भ्रम अनन्त काल से चला अा रहा है। वेदों को हमारे स्तर पर आकर हमें उपदेश देना पडता है, क्योंकि यदि वेद उच्चतम सत्य को उच्चतम भाव या भाषा में हमारे लिए कहते तो हम वह समझ नहीं पाते।
स्वर्ग हमारी कामना से सृष्ट अन्धविश्वास है कामना चिरकाल के लिए बन्धन-अवनति का द्वारस्वरूप है। ब्रह्मदृष्टि को छोडकर अन्य किसी भाव से किसी वस्तु को मत देखो। यदि ऐसा करोगे तो अन्याय और अशुभ ही देखने में अायेगा; क्योंकि हम जिस वस्तु को देखने जाते हैं, उसके ऊपर एक भ्रमात्मक अावरण डाल देते हैं, और इसी कारन अशुभ देखते हैं। इन सब भ्रमों से मुक्त हो जाओ और परमानन्द का उपभोग करो। सभी प्रकार से मुक्त होना ही मुक्ति है।
एक दृष्टि से प्रत्येक मनुष्य ब्रह्म को जानता है; क्योंकि वह जानता है, 'मैं हूँ'; किन्तु मनुष्य अपना यथार्थ स्वरूप नहीं जानता। हम सभी जानते हैं कि हम हैं, किन्तु कैसे हैं, यह नहीं जानते। सभी निम्नतर व्याख्यायें अांशिक सत्य मात्र हैं। किन्तु वेद का सार तत्व यह है कि हममें से प्रत्येक के भीतर जो आत्मा रहती है, वह ब्रह्मस्वरूप है। (VII, ४४)
६ जुलाई, १८९४ को थाउजैंड आइलैंड पार्क में अायोजित स्वामीजी की कक्षा वेदान्त सूत्रों पर शंकर की टीका पर अाधारित थी। संभवतया प्रथमबार उनके पश्चिम के शिष्यों ने सुना कि स्वर्ग स्वयं एक अंधविश्वास है और स्वर्ग प्राप्ति की अाशा करना एक अधःपतन। जब हम विश्व की ओर देखते हैं और प्रत्येक वस्तु 'भौतिक' मान लेते हैं तभी हमें उनमें दोष दिखाई देते हैं। अतः प्रारम्भ हमारे में ही निहित है-अपनी अात्मा को ब्रह्म मानना।
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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji
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