ॐ
भगवद्गीता में कृष्ण ने ज्ञान का अतीव स्पष्ट उपदेश किया है। यह महान काव्य समस्त भारतीय साहित्य का मुकुटमणि माना जाता है।
यह वेदों पर एक प्रकार का भाष्य है। वह हमें दिखाता है कि आध्यात्मिक संग्राम इसी जीवन में लडा जाना चाहिए; अतः हमें उससे भागना नहीं चाहिए, अपितु उसको विवश करना चाहिए कि जो कुछ कुछ उसमें है, वह उसे हमें प्रदान करे।
चूँकि गीता उच्चतर वस्तुओं के लिए इस संघर्ष का प्रतिरूप है, इसलिए उसके दृश्य को रणक्षेत्र के मध्य प्रस्तुत करना अतीव काव्यमय हो गया है। विरोधी सेनाओं में से एक के नेता अर्जुन के वेष में कृष्ण उसे दुःखी न होने और मृत्यु से न डरने की प्रेरणा देते है, क्योंकि वे जानते है कि वह वस्तुतः अमर है, और मनुष्य के प्रकृत स्वरूप में किसी भी विकारशील वस्तु का स्थान नहीं है।
अध्याय के बाद अध्याय में कृष्ण दर्शन और धर्म की उच्च शिक्षा अर्जुन को देते हैं। यही शिक्षाएँ इस काव्य को इतना अद्बुत बनाती हैं; वस्तुतः समस्त वेदान्त दर्शन उसमें समाविष्ट है। वेदों का उप्देश है कि आत्मा असीम है ओर किसी प्रकार भी शरीर की मृत्यु से प्राभावित नहीं होती; आत्मा एक ऐसा वृत्त है, जिसकी परिधि कहीं नहीं है और जिसका केन्द्र किसी देह में होता है।
मृत्यु (तथाकथित) केवल इस केन्द्र का परिवर्तन है। ईश्वर एक ऐसा वृत्त है जिसकी परिधि कहीं नहीं है और जिसका केन्द्र सर्वत्र है और जब हम देह के संकीर्ण केन्द्र से निकल सकेंगे, हम ईश्वर को प्राप्त कर लेंगे जो हमारा वास्तविक आत्मा है।
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26
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