Friday 11 July 2014

अद्वैत : नीति-शास्त्र का आधार

    अद्वैतवाद का सिद्धांत यह मानता है कि यह सम्पूर्ण विश्व, जो अस्तित्व में है, अशिष्ट अथवा शिष्ट, वह यहीं है, उसके कारण और प्रभाव दोनों यहीं हैं उसका स्पष्टीकरण भी यहीं है। जो विशिष्ट रूप में जाना जाता है, वह विश्व के सूक्ष्मरूप की पुनरावृत्ति है। हम विश्व का हमारा विचार, हमारी स्वयं की आत्माओं के अध्ययन से प्राप्त करते हैं और जो वहाँ सत्य है, वह विश्व के बाहर भी सत्य है। स्वर्ग और विभिन्न स्थानों के सम्बंध में विचार, चाहे वे सत्य ही क्यों न हों, विश्व में ही हैं। वे भी मिलकर इस 'एकत्व' का निर्माण करते हैं।

    सर्वप्रथम विचार, एक सम्पूर्ण, एक ईकाई का है जो सूक्ष्म अणुओं से बना हुआ है और हममें से प्रत्येक इस ईकाई का भाग, जैसा कि पहले से था, है। अभिव्यक्ति के स्तर पर हम भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं परन्तु वास्तव में हम 'एक' ही हैं। ज्यों-ज्यों हम स्वयं को इस 'सम्पूर्ण' से अलग कर सोचते हैं, हम अधिक दयनीय बन जाते हैं। इसीलिए, अद्वैत नीति-शास्त्र का आधार है।          

                                               (अंगरेजी V, २५७)

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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

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