Wednesday, 2 July 2014

केवल पुस्तकें पढने से ज्ञान प्राप्ति दुर्लभ है


    हम बहुत सी पुस्तकें पढते हैं, पर उससे हमें ज्ञान प्राप्त नहीं होता। हम संसार के सारे धर्मग्रंथ भले ही पढ डालें, पर उससे हमें धर्म की प्राप्ति नहीं होगी। सैद्धांतिक धर्म को पाना काफी सरल है, उसे कोई भी पा सकता है। हम जो चाहते हैं, वह है व्यावहारिक धर्म।

    व्यावहारिक धर्म के संबंध में ईसाई धारणा है भले काम करना - सांसारिक उपयोगिता।

    उपयोगिता का लाभ क्या है - उपयोगिता के दृष्टिकोण से देखने पर धर्म एक असफलता है। प्रत्येक अस्पताल इस बात की प्रार्थना करत है कि वहाँ और अधिक मनुष्य आयें। दया का अर्थ क्या है? दया मौलिक वस्तु नहीं है। यह वास्तव में संसार के दुःख को बढा जाना है, उसका उन्मूलन करना नहीं। मनुष्य नाम और यश चाहता है और उन्हें प्राप्त करने के अपने प्रयत्नों को दया तथा भले कामों के लोप से ढकता है। वह दूसरों के लिए काम करने के बहाने अपने लिए काम करता है। तथाकथित दयाजन्य प्रत्येक कार्य, जिस बुराई के विरूद्ध कार्य करने का दावा करता है, उसी को प्रोत्साहन देता है।                                        
(III, १८२)

    जो लोग धार्मिक सिद्धांतों के व्यसनी हैं उन्हें सलाह देते हुए स्वामीजी उनका अाह्वान करते हैं कि वे धर्म को ढूँढ निकालें जो इन सिद्धांतों के परिपालन पर अधिक बल देता हो। अच्छे कर्मों का उद्देश्य विश्व से, पीडित जनता के दुःखों को मूल से नष्ट करना होता है। योगी इस बात पर बल देता है कि समस्त दुःखों का कारण, अपने मन पर नियन्त्रण करने में हमारी अक्षमता है। उसका उद्देश्य प्रकृति से मुक्ति पाना है। उसके अनुसार कर्म का उद्देश्य प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त करना है। सम्पूर्ण शक्ति हमारी आत्मा में केन्द्रित है और शरीर एवं मन पर नियन्त्रण कर कोई भी व्यक्ति अपनी आन्तरिक शक्ति से प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है।

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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26


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