ॐ
वेदों को अत्यंत पवित्र मानने के कारण संसार के अन्यान्य धर्म शास्त्रों की भाँति उनका अंग-भंग नहीं हो पाया। उनमें उच्चतम और निम्नतम दोनों प्रकार के विचारों को वैसा का वैसा ही रखा गया है - सार-असार, अति उन्नत विचार और साथ ही सामान्य छोटी-छोटी बातें, दोनों ही उनमें सुरक्षित हैं, क्योंकि किसी ने उनका स्पर्श करने का साहस नहीं किया। भाष्याकारों ने उनको सुसंगत बनाने और प्राचीन विषयों में से अद्भुत नये भावों को निकालने की चेष्टा की। उन्होंने अत्यन्त साधारण बातों में भी आध्यात्मिक तत्व देखने का प्रयास किया। किन्तु मूल जैसे का तैसा ही रहा, और इसीलिए वे ऐतिहासिक अध्ययन के लिए अनुपम विषय हैं।
हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक धर्म के शास्त्रों में परवर्ती काल की विकासमान आध्यात्मिकता के अनुरूप परिवर्तन किए गये - इधर उधर एक शब्द बदल दिया, या जोड दिया गया। पर वैदिक साहित्य में संभवतः ऐसा नहीं किया गया है, और यदि हुआ भी हो, तो उसका पता ही नहीं चलता। हमें इससे यह लाभ है कि हम विचार के मूल उत्पत्ति स्थान में पहुँच सकते हैं और देख सकते हैं कि किस प्रकार क्रमशः उच्च से उच्चतर विचारों का स्थूल आ दिभौतिक धारणाओं से सूक्ष्मतर आध्यात्मिक धारणाओं का- विकास हुआ है और अन्त में किस प्रकार वेदान्त में उन सबों की चरम परिणति हुई है।
(II, १७८-१७९)
KATHA : Vivekananda Kendra
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari)
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org
Landline : Himachal:+91-(0)177-2835-995, Kanyakumari:+91-(0)4652-247-012
Mobile : Kanyakumari:+91-76396-70994, Himachal:+91-94180-36995
Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"
Follow Vivekananda Kendra on blog twitter g+ facebook rss delicious youtube Donate Online
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari)
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org
Landline : Himachal:+91-(0)177-2835-995, Kanyakumari:+91-(0)4652-247-012
Mobile : Kanyakumari:+91-76396-70994, Himachal:+91-94180-36995
मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26
No comments:
Post a Comment