Wednesday 26 January 2022

Swaraj Amrit Mahotsav : रानी गाइदिन्ल्यू

गाइन्दिल्यु का जन्म 26 जनवरी 1919 के दिन नुड्काओ गाँव के कबुई परिवार में हुआ | इनके पिता का नाम लोत्तनोहोड़ था और माता का नाम कलोतनेनल्यु था । बचपन में गाइन्द्ल्यु के वीरतापूर्ण कार्यो को देखकर गाँव की स्त्रियों को आश्चर्य होता था । उसका बचपन गाँव में सामान्य लडकियों जैसे ही बीता । बारह वर्ष की होने पर गाईदिल्यु को सपने में ज्डोनाद के पास जाने की देवी आज्ञा हुयी । उसको सपने में जदोनाद मन्दिर में पूजा करता हुआ दिखाई देता।

उस समय तक वह ज्ड़ोनाद के सामजिक एवं धार्मिक कार्यो के विषय में बहुत कुछ सुन चुकी थी। जदोंनाड यों तो चचेरा भाई था मगर काम्बीरोन में रहता था इसलिए कभी उसे देखा नही था। आखिर देवी प्रेरणा से वह काम्बीरोन गई । जदोनाड ने भी गाइन्दिल्यु को सपनों में देखा था। दोनों ने एक दुसरे को पहचान लिया। जदोंनाड ने भी बारह वर्ष की गाइन्दिल्यु की प्रतिभा को पहचान लिया। जब बारह वर्ष की बालिका जडोनाद के पास पहुची तब वह 22 वर्ष का था। जदोनाड उस समय तक अंग्रेजो को देश से निकालने का एवं पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त करने का निश्चय कर चूका था। उसने गाइन्दिल्यु को सशस्त्र क्रान्ति के लिए कुबइ महिलाओं के प्रशिक्ष्ण  का काम सौंपा।

रानी गाइदिनल्यू का जन्म नंग्‍कओं, ग्राम रांगमई, मणिपुर में हुआ था। वह बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की थीं। 13 वर्ष की आयु में वह नागा नेता जादोनाग के सम्पर्क में आईं। जादोनाग मणिपुर से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के प्रयत्न में लगे हुए थे। वे अपने आन्दोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते, उससे पहले ही गिरफ्तार करके अंग्रेजों ने उन्हें 29 अगस्त, 1931 को फांसी पर लटका दिया।

अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उसने गांधी जी के आन्दोलन के बारे में सुनकर सरकार को किसी प्रकार का कर न देने की घोषणा की। उसने नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए कदम उठाये। उसके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जनजातीय लोग उसे सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे।

नेता जादोनाग को फांसी देने से लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर की मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे। इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की सेना का सामना किया। वह छापामार युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थी। अंग्रेज उन्हें बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उसे अपना उद्धारक समझता था।

जब सन 1946 में अंतरिम सरकार का गठन हुआ तब प्रधानमंत्री नेहरु के निर्देश पर रानी गाइदिनल्यू को तुरा जेल से रिहा कर दिया गया। अपनी रिहाई से पहले उन्होंने लगभग 14 साल विभिन्न जेलों में काटे थे। रिहाई के बाद वे अपने लोगों के उत्थान और विकास के लिए कार्य करती रहीं। सन 1972 में उन्हें 'ताम्रपत्र स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कार', 1982 में पद्म भूषण और 1983 में 'विवेकानंद सेवा पुरस्कार' दिया गया। सन 1991 में वे अपने जन्म-स्थान लोंग्काओ लौट गयीं जहाँ 17 फरवरी 1993 को 78 साल की आयु में उनका निधन हो गया।

देश की आजादी और रानी गाइदिनल्यू की रिहाई :

जब सन 1946 में अंतरिम सरकार का गठन हुआ तब प्रधानमंत्री नेहरु के निर्देश पर रानी गाइदिनल्यू को तुरा जेल से रिहा कर दिया गया। अपनी रिहाई से पहले उन्होंने लगभग 14 साल विभिन्न जेलों में काटे थे। रिहाई के बाद वे अपने लोगों के उत्थान और विकास के लिए कार्य करती रहीं। सन 1953 में जब प्रधानमंत्री नेहरु इम्फाल गए तब वे उनसे मिलीं और रिहाई  के लिए कृतज्ञता प्रकट किया। बाद में वे ज़ेलिआन्ग्रोन्ग समुदाय के विकास और कल्याण से सम्बंधित बातचीत करने के लिए नेहरु से दिल्ली में भी मिलीं।

रानी गाइदिनल्यू नागा नेशनल कौंसिल (एन.एन.सी.) का विरोध करती थीं क्योंकि वे नागालैंड को भारत से अलग करने चाहते थे जबकि रानी ज़ेलिआन्ग्रोन्ग समुदाय के लिए भारत के अन्दर ही एक अलग क्षेत्र चाहती थीं। एन.एन.सी.उनका इस बात के लिए भी विरोध कर रहे थे क्योंकि वे परंपरागत नागा धर्म और रीति-रिवाजों को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी कर रही थीं। नागा कबीलों की आपसी स्पर्धा के कारण रानी को अपने सहयोगियों के साथ 1960 में भूमिगत हो जाना पड़ा और भारत सरकार के साथ एक समझौते के बाद वे 6 साल बाद 1966 में बाहर आयीं।

परवरी 1966 में वे दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शाष्त्री से मिलीं और एक पृथक ज़ेलिआन्ग्रोन्ग प्रशासनिक इकाई की मां की। इसके बाद उनके समर्थकों ने आत्म-समर्पण कर दिया जिनमें से कुछ को नागालैंड आर्म्ड पुलिस में भर्ती कर लिया गया। सन 1972 में उन्हें 'ताम्रपत्र स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कार', 1982 में पद्म भूषण और 1983 में 'विवेकानंद सेवा पुरस्कार' दिया गया।

क्रांतिकारी जीवन :  जादोनाग के बाद अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उन्होंने महात्मा गाँधी के आन्दोलन के बारे में सुनकर ब्रिटिश सरकार को किसी भी प्रकार का कर न देने की घोषणा की। नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क़दम उठाये। उनके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जन-जातीय लोग उन्हें सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे।

नेता जादोनाग को फ़ाँसी दे दिए जाने से भी लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे। इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की फ़ौज का सामना किया। वह गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थीं। अंग्रेज़ उन्हें बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उन्हें अपना उद्धारक समझता था।

गिरफ़्तारी :  रानी द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए। पर इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुलेआम 'असम राइफल्स' की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया। स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिनल्यू ने एक इतना बड़ा क़िला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उनके चार हज़ार नागा साथी रह सकें। इस पर काम चल ही रहा था कि 17 अप्रैल, 1932 को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया। गाइदिनल्यू गिरफ़्तार कर ली गईं। उन पर मुकदमा चला और कारावास की सज़ा हुई। उन्होंने चौदह वर्ष जेल में बिताए।




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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

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