आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।
श्रीराम के बारे में ऐसा कहा जाता है 'रामो विग्रहवान् धर्मः।' यदि धर्म का हमें स्वरूप देखना है तो वह राम जैसा होगा। अर्थात् श्रीराम साक्षात् धर्मस्वरूप है।उनके जीवन से हम धर्मपालन कैसे करना है यह समझ सकते हैं, सीख सकते हैं। स्वामी विवेकानंद कहते थे, 'भारत राष्ट्र का प्राण धर्म है।' और धर्म का स्वरूप श्री रामचंद्र है। इसलिए श्रीराम इस भारत राष्ट्र के प्राण है।
लगभग 500 बरस पहले श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर आक्रांताओं ने प्रहार कर उस मंदिर को तोड़ा। 500 वर्ष से श्री रामचंद्र को उनके जन्मस्थान के मंदिर में प्रतिष्ठित करने के लिए अनेकों ने आंदोलन चलाए। अनेक लोगों ने बलिदान दिए। जो वीर होते हैं वह दर्द को, नकारात्मक परिस्थिति को दूर करने के लिए प्रयास करते रहते हैं, साहस से उसका सामना करते हैं, स्थिति बदलने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। जो सर्वसाधारण होते हैं वह धीरे-धीरे उसे दर्द का शिकार हो जाते हैं इसलिए निराश, कर्तव्य से मूंह मोड़नेवाले हो जाते हैं। और तीसरे प्रकार के लोग हैं, जो उस दर्द को भूलने के लिए राम को ही नकारना शुरू करते हैं। ऐसे तीन प्रकार से भारत के लोगों ने इस दुख का सामना किया या उसे झेला। लेकिन राम तो सबके हैं, हृदय में सुप्त रूप से है। कोई यह जानते हुए पुरुषार्थ से उन्हें मंदिर में और अपने जीवन में प्रतिष्ठित करने के लिए 500 वर्षोंसे प्रयास करते रहे। कोई, आज श्रीराम मंदिर में प्रतिष्ठित हो रहे हैं यह देखकर उस दर्द को दूर करते हुए अपने हृदय के आनंद को खुले मन से प्रगटीत कर रहें या और कोई श्रीराम को ही नकारने के कारण उसे आनंद से स्वीकारने में भी कतरा रहें है। लेकिन राम तो सबके हैं।
श्रीराम जन्मस्थान के मंदिर में न होने के कारण एक गूढ़, गहन और सूक्ष्म रूप से, हमारे हृदय में भी हम राम के जीवन के मूल्यों को खो बैठे थे। राम का अर्थ है वह जो आनंद देता है, जो हर कृति से, हर शब्दों से, अपने कर्तव्य परायणता के कारण सबको संतोष देता है। ऐसे राम जब अपने जन्म स्थान से दूर थे हमारे हृदय में भी हम उनको खो बैठे। प्रतीकात्मक रूप से कह सकते है, 500 बरस जब श्रीराम जन्मस्थान मंदिर में नहीं थे तब हम भी संतोष जो कर्तव्य परायणता से, दूसरों को आनंद देने के कारण, सकारात्मकता के कारण होता है उसे खो बैठे। इसीलिए एक प्रकार की नकारात्मकता, उदासीनता, कर्म–दारिद्र्य, अनुशासनहीनता हमारे जीवन में आम तौर पर दिख रही थी क्योंकि हृदय में राम स्वागत के साथ विराजित नहीं थे। हमारा हृदय विशाल होने के बजाय संकुचित हो गया था।
श्रीराम फिर से राम जन्मभूमि में प्रतिष्ठित हो रहे, इसका सामुहिक अवचेतन में गूढ़ और सूक्ष्म अर्थ है। इसे सर्वसाधारण घटना नही समझनी है। इतिहास, और तर्क से परे कुछ हैं। जो हम बोल रहे, गा रहे हैं कि, 'मेरे झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे राम आएंगे', वह झोपड़ी हमारा हृदय है और राम से वंचित होने के कारण हमारे जीवन में जो कर्म दरिद्रता थी वह अभी दूर होनी है। राम फिर से हमारे हृदय भी में प्रतिष्ठित होने जा रहे हैं। हमारे इस हृदय के झोपड़ी का भाग्य खुल रहा है और इसीलिए जैसे राम श्रीराम– जन्मभूमि के मंदिर में प्रतिष्ठित होते हैं वैसे ही भारत के हर व्यक्ति को, राम को अपने जीवन में भी प्रतिष्ठित करना है और वह होंगे, अवश्य होंगे हम यदि थोड़े भी भक्ति से और कर्तृत्व से उनका आवाहन करते हैं तो आज वह हमारे हृदय में निश्चित प्रतिष्ठित होंगे। ऐसी प्राणप्रतिष्ठा हम सब को करनी है। हमारे जीवन में एक उत्साह, कार्यतत्परता, अनुशासन, वचनबद्धता जो श्री रामचंद्र के जीवन में हमें दिखती है उस रूप में हमारे भी जीवन में प्रगटीत होगी। हमारे 'जनमोंके के पाप आज मिट जाएंगे राम आएंगे'!
22 जनवरी दीपोत्सव मनाया जायेगा, क्योंकि दीपावली जब श्री रामचंद्र अयोध्या वापस आए थे तब मनाई गई थी। उसी प्रकार हमारे भी जीवन में तमस का जो अंधेरा है, मात्सर्य का जो अंधेरा है, अनुशासनहीनता का जो अंधेरा है, जो आलस का अंधेरा है, उस अंधेरे को दूर करते हुए दीपोत्सव हम मनाएंगे। श्रीराम का हम अपने हृदय में स्वागत करेंगे, अपने जीवन में अपने कृति में उनका स्वागत करेंगे, तो निश्चित ही हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। फिर निश्चित ही, यह राम मंदिर जो है, वह राष्ट्र मंदिर के रूप में उभरेगा। राम मंदिर से राष्ट्र मंदिर तक का प्रवास इस प्राण प्रतिष्ठा से हम शुरू करेंगे। श्री रामचंद्र जिन्होंने अपने नितांत कर्तव्य परायणता से, वचनबद्धता से पूरे जीवन को धन्य किया, धर्मस्वरूप बनाया उसी प्रकार हम भी हमारे जीवन को धन्य करेंगे। यह जो गीत हम गा रहे हैं, की 'झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे, राम आएंगे', हमारा हृदय अब क्षुद्रता का त्याग करेगा, यह झोपड़ी पूर्ण समाज को समानेवाली, मानव समाज का कल्याण करनेवाली दिव्य–भव्य वास्तु बनेगी क्योंकि उसमें हमने राम का स्वागत किया है। जब हम श्री रामचंद्र को हमारे हृदय में प्राणप्रतिष्ठित कर रहें, स्वागत कर रहे हैं, हमारे झोपड़ी में स्वागत कर रहे हैं और हमारा जीवन धन्य बना रहे हैं तब हमारे जीवन में धर्म का अर्थ केवल पूजा पाठ तक संकुचित नहीं रहेगा तो जिससे समाज की धारणा होती है ऐसा व्यवहार हमारा होगा और इस प्रकार से हमारा जीवन भाग्यशाली बनेगा।ऐसा जब हमारा जीवन होगा तो निश्चित रूप से भारत भी धर्म का सखोल अर्थ पूरे विश्व को जी कर सीखानेवाला जगतगुरु बनेगा।
कु. निवेदिता रघुनाथ भिड़े (पद्मश्री सम्मानीत)
विवेकानन्द शिला स्मारक एवं विवेकानन्द केन्द्र
राष्ट्रीय उपाध्यक्षा
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पॉडकास्ट प्लेलिस्ट : रामायण दर्शन
The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji
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