Sunday 14 January 2024

तमिल भाषा में भावरूप राम-कंबन रामायण के सन्दर्भ में

आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।  वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।  पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।

धर्म प्राण देश भारत में भक्ति साहित्य एक कालजयी साहित्य बनकर दिन दुगुना रात चौगुना होकर निरंतर उन्नति के साथ, नैतिक धार्मिक मूल्यों की वृद्धि करते हुए आगे बढ़ रहा है। भारतीय साहित्य में प्राप्त रामायण का मूलाधार संस्कृत के वाल्मीकि रामायण होने पर भी विभिन्न प्रदेश के विभिन्न कवि गणों ने मर्यादा पुरुषोत्तम, सत्य- शील-सौंदर्य का प्रतिरूप श्रीराम की उज्वल चारित्रिक विशेषताओं का चित्रण, अपनी-अपनी कल्पना के मधुर रस से भारतीय काव्य नायक, एक पत्नी व्रती भारत के आदर्श पुरुष श्रीराम के कथा प्रसंगों में वैविध्यता लाते हुए सोने में सुहागा मिला दिया है।

तमिल रामायण के अग्रणी कवि कंबन मूलतः विष्णुभक्त थे। उन्होंने कंब रामायण के साथ शठगोप अंदादि (नम्मालवार को स्तुति) की भी रचना की। कंबन के श्रीराम भी अन्य कवियों के श्रीराम की तरह विश्व बन्धुत्व की कामना करने वाले हैं। उसमें ऊँच-नीच, जाति-पाति का भेदभाव नहीं। चक्रवर्ती के परम प्रिय, लाड़ला बेटा श्रीराम का निषाद राजा गुह से स्नेह होना पवित्र प्रेम का, अछूत्तोद्धार का प्रतीक है। श्रीराम मात्र मनुष्य के मित्र नहीं बल्कि पक्षी जटायु, संपाती, वानर-सुग्रीव व राक्षस-राजा विभीषण, भालू जांबवन्त के भी मित्र रहे। इतना ही नहीं शबर जाति की स्त्री के जूते बेर खाकर यह सिद्ध किया है कि प्रेम में उत्कृष्ट निर्मलता होती है।

कंब रामायण में अयोध्या नगरवासियों के प्रति राम के असीम प्रेम का उल्लेख करते हैं। कवि कंबन कहते हैं- "श्रीराम जितने आकार में अतुल मनोहर हैं उतने ही गुणों में भी। विद्याभ्यास के लिए भाइयों के साथ वशिष्ठ जैसे आचार्य के पास आते जाते वक्त सामने आयी जनता से श्रीराम पूछते "

एदिर वरुम् अवरगलै, रामैयुडैय इंरैवन
मुदिर तरु करुणैयिन् मुगमलर ओलिरा
एदुविनै ? इटरिलै ? इनिदुनुम मणैयुम्
मदितरु कुमररुम् वलियर कोल।
(मेरा उद्धार करने वाले मेरे प्रभु श्रीराम तेजस्विता एवं कमल जैसे प्रकाश पूर्ण सुन्दर बदन से, प्रेमादर से पूछते हैं- कौन से काम के लिए जा रहे हैं? कष्ट तो नहीं हुआ ? घर में माँ कुशल हैं? बुद्धिमान आपके भ्राता लोग कुशल हैं?") इससे पता चलता है कि बचपन से वे प्रेम की मूर्ति रहे।

ताड़का-वध के पहले श्रीराम स्त्री को मारना पाप सोचकर गुरु की ओर देखते हैं। तब महर्षि उसे मारने का आदेश देते हैं तब श्रीराम अत्यंत विनय भाव से कहते "अधर्म होने पर भी अगर श्रद्धेय गुरु आप आदेश दें तो मैं उसका पालन करूँगा क्योंकि आप सत्यशील हैं। इससे राम की उत्कृष्ट गुरु भक्ति का बोध होता है।

वनवास जाने का आदेश जब कैकेई देती है उस प्रसंग का वर्णन करते हुए वाल्मीकि राम से कहलवाते हैं कि मैंने कौन-सा अपराध किया ताकि मुझे पिताजी वनवास भेज रहे हैं? लेकिन कंबन द्वारा चित्रित राम उससे कई गुना श्रेष्ठ है। वे कैकेई से कहते हैं
पिण्णवण् पणियेणराल नंपुणि
मरुप्पेणो, तंदैयुम् तायुम् नीरे।
"आदेश तो पिताजी क्या आप स्वयं दीजिए, उसका अनुसरण मैं तुरंत करूँगा, क्योंकि मेरे माँ-बाप सब कुछ आप ही हैं।

श्रीराम के साथ वनवास जाने को तैयार होने वाले सौमित्री ने राम से कहा
 नीर उल एणिन् उल मीनुम् नीलमुम्
 पार उल एणिन् उल यावुम् पारपुरिन्
 नार उल तनु उलाय नाणुम् सीतैयुम्
 यार उलर एणिन् उलैम् ? अरुलुवाय एणरान्
लक्ष्मण अपने को मछली से, सीता को नीलोत्फल पुष्प से तुलना करते हुए कहते हैं  "अगर आप नहीं तो मैं और सीता मैया जल रहित भीन व नीलोत्फल पुष्प जैसे हो जायेंगे। अगर जगत् होगा तो सकल जीव राशियाँ होगी। मैं और सीताजी किसके लिए जिएं आप ही बताओ।

अखिलाण्ड कोटि ब्रह्माण्ड के नायक श्री महाविष्णु अति साधारण मानव के रूप में पृथ्वी पर आये। चक्रवर्ती के बेटे श्रीराम काषाय वस्त्रों में निषादराज गुह को प्यार भरे नयनों से गले लगाकर अनुज कहते हैं। कंबन के श्रीराम गुह से कहते हैं।
"तुण्पुलतेनिन अण्रो सुकमुलदु अदुवणिर
पिन्पुल तिडैमण्णुम् पिरिवुलदेन उण्णेल
मुनपुलम् ओरु नालवेम् मुडिवुलदेन उण्णा
अण्बुल इनि नाम और ऐवर उत्तरोणाम्"
"इसके पहले हम चार भाई थे, अब तुम्हारी वजह से हम पाँच बन गये-कहकर श्रीराम ने उसे प्यार से गले लगाया।" इससे पता चलता है कि सनातन काल में ही हिन्दू धर्म में राम द्वारा छुआछूत व जातिगत भेदभाव का निर्मूलन हुआ था। पारिवारिक रिश्तों में निर्मल मन, त्याग भाव हो तो शांति व सुख मिलेगा। इसी भाईचारे को श्रीराम ने समाज में उसी समय स्थापित किया है। कंबन द्वारा चित्रित श्रीराम वाल्मीकि के श्रीराम से ज्यादा भरत के प्रति प्रेम उत्साह, आदरभाव, मर्यादा, कोमल भाव सब कुछ दिखाते हैं। कंबन ने भरत का चरित्र चित्रण करते समय उसे श्रीराम से भी अधिक महत्व दिया है। दौड़-दौड़ कर श्रीराम से मिलने आये भरत को देखकर गुह उसका वर्णन इस प्रकार करते हैं-
"नंबियुम् एन नायकनै ओक्किणरान्
अयल निण्रान्
तंबियै ओक्किणरान् तववेडम् तलैनिणरान्
तुण्बम ओरु मुडिविल्लै दिसै नोक्कि तोषु किणरान्
एंवेरुमान पिन पिरन्दार इषैष्परो पिषैप्यु

तपोवेश में भरत खड़े हैं। उनका चेहरा दुःख सागर में डूबा हुआ है, राम जिस दिशा में गये उनका दण्डवत् प्रणाम करते आ रहे हैं। मेरे भगवान के अनुज कभी भी अपराध नहीं कर सकते।

बालि के माध्यम से भी कंबन श्रीराम के प्रति रखा अपार भक्ति भाव को प्रकट करते हैं। श्रीराम के बाण छूने मात्र से उसके अंदर देवत्व आ जाते हैं। उसमें अपने भाई सुग्रीव को भी क्षमा करने की क्षमता आ जाती है। इसीलिए कंबन का बालि कहता है। अगर मेरा भाई सुग्रीव कहीं अपराध कर बैठता है तो मुझ पर छोड़ा रामबाण आप उस पर मत छोड़िये राम ! तमिल के आलोचक व उपदेशक कीरन उसे 'देयव बालि' से संबोधित करते हैं।

सुग्रीव जब अपना वादा भूल जाता है और सीताजी को ढूँढने में देरी करता है तब लक्ष्मण सुग्रीव से मिलने गुस्से से निकल जाते हैं। तब श्रीराम के करुणापूर्ण हृदय का चित्रण कंबन के शब्दों में
"नीदियाग निगषन्दैनै निणरदु
वेदियाद पोषुटु वेकुंठवन
खादियादु अवर सोल तस्तणै
पोदियादि येण्राण पुगष पूणिणान् ।
(हे लक्ष्मण! तुम अपने क्रोध को वहाँ जाकर मत दिखाना शांति से बातें करो ताकि तुम्हारी बातों के अन्दर छिपी हुई नीति का बोध उसे हो जाए। अगर उसके विचार हमारे विचार से भिन्न रहे तो क्रोधित होकर उनका वध नहीं करना, मुझे सूचित करना)

चरित्र निर्माण करने में भी कंबन आदिकवि वाल्मीकि से एक कदम आगे हैं सीता-हनुमान संवाद में वाल्मीकि की सीता कहती है-

यदहं गात्र संस्पर्श रावणस्य बलाद्गता
अनीशा किं करिष्यामि विनाथा विवशा सतीं ।।

कंबन का कहना है अगर कोई परपुरुष मेरा (सीता का) स्पर्श करेगा तभी मेरे तन से प्राण निकल जाते हैं। इसीलिए दुष्ट रावण मुझे भूमि सहित यहाँ लेकर आया। बाकी सारी रामायणों में रावण सीता को पकड़कर ले जाने का प्रसंग है जबकि कंबन ने भूमि सहित सीता को रावण ले गया कहा था यहां कंब रामायण की विशिष्टता और शीलवती नारियों की पवित्रता। उसकी पुष्टि में सीता रावण के शाप को पेश करती है।
त्तीण्डुवान एणिन् इत्तणै सेण् पकल
इंण्डुम् ओ उयिर मेय्यिन् इयैप्पिन् मुन
माण्डु तीरवन एण्रे निलम् वण्मैयाल
कीण्डु कोण्डु एषुन्दु एसीनेन कीषमैयान

कंबन ने अपनी कथावस्तु में, प्रसंगों में थोड़ा बदलाव लाने का प्रयास किया। कंब-रामायण में पहले राम रावण युद्ध, बाद में कुंभकर्ण से युद्ध, उसके बाद नाग पाश का वर्णन अंत में रावण वध आतें हैं। पहली बार के राम-रावण युद्ध में रावण के रथ, अश्व, किरीट, धनुष, बाण आदि सब कुछ श्रीराम द्वारा नष्ट किये जाते हैं। अकेले खड़े शत्रु रावण को देखकर श्रीराम उसका वध न करके कहते हैं "धर्म के सिवा अधर्म से देवता लोग भी युद्ध में जीत नहीं सकते। मैं अभी तुम्हारा वध कर सकता, लेकिन तुम अकेले निहत्थे होकर खड़े हो। अभी जाकर कल अपने रिश्तेदार व सहायक सेनाओं के साथ वापस आकर युद्ध करो। आज जाकर कल आओ 'इक पोय् नालै वा'। शत्रु के प्रति भी श्रीराम के क्षमा गुण का परिचायक है।

एक और स्थल पर युद्ध भूमि में कुंभकर्ण को देखकर विभीषण हाथ जोड़कर वंदना करते हैं तब कुंभकर्ण से कंबन श्रीराम की महिमा को कहलवाते हैं-
"ऐयने, उयवदकुं माराग कडैक्कलमागि यांगे
उयकिलै येण्णिन् माट्रिण्वुरक्करायुल्लो मेल्लाम्
एयकणै मारियाले चिरन्तु पाषपडुडुम् पट्टार्य
कैयिणा लेण्णीर नलिग कडन कषिप्पारै काट्टाय।"
 "अनुज ! हम सब असुर लोग राम नामक बाण- वर्षों से मर जायेंगे। अगर ऐसा हुआ तो तुम अयोध्या के राजा श्रीराम की शरण में ही रहकर तुम्हारे हाथों से तिलांजलि हमें देकर पितृ तर्पण करो। कुंभकर्ण श्रीराम की प्रशंसा करते हुए उसे जगत्प्रभु मानता है-

'कमल पर वास करने वाले वरदानी ब्रह्मदेव से प्राप्त अखण्ड वर से विभीषण तू ने धर्म मार्ग को अपनाया। १. जब तक यह युग होगा तब तक तुम चिरंजीवी बनकर रहेगा। जगत्प्रभु श्रीराम के पास रहने से तुम्हारी कीर्ति बढ़ जायेगी। युद्ध में मेरा मरण तो अनिवार्य है। यह प्रसंग वाल्मीकि रामायण में नहीं। अध्यात्म रामायण तुलसी रामायण और कंब रामायण में हैं। रथ पर माया सीता को बिठाकर निकुंबिल यज्ञ मेघनाथ द्वारा करने वाले प्रसंग में ३. भी कंबन ने अपनी कल्पना को मिलाया।

श्रीराम से बिछुड़कर अशोक वन में उनकी स्मृतियों में दिन बिताने वाली सीता मैया मारुति से कहती है। उनका प्रेम राम के प्रति, राम का प्रेम उनके प्रति वर्णनातीत है। शरीर ४. और प्राण का संबंध कहे तो कौन शरीर, कौन प्राण कहना कठिन है वही दोंनों का संबंध वह श्रीराम के एक पत्नि व्रत को याद करके बार-बार बलि हो जाती है। कंबन के शब्दों में..
"वन्दु एणैकरम पद्रिय बैकलवाय्
 इन्द इप्पिरविक्कु इरुमादरै
सिन्वैयालुम् तोडेन एण्र सेण्वरम्
तन्द वात्तै तिरुच्चेवि चाटुवाय।
(मुझ से विवाह करते समय मर्यादा पुरुषोत्तम ने कहा इस जन्म में दो स्त्रियों को मन से भी नहीं सोचूँगा।। सीता के सिवा कल्पना में भी उसके मन में दूसरी स्त्री के लिए होने वाली सोच की भी अनुमति नहीं।)

कंबन ने रामायण के अलावा अपनी रचना शठगोष अन्दादि में भी राक्षस कबंध के माध्यम से श्रीराम को जगत् रक्षक माना है।

भाषाएँ भारत में अलग हो सकती हैं लेकिन रामायण के काव्य नायक सारे कवियों की दृष्टि में मर्यादा पुरुषोत्तम्, सत्यशील, विष्णु अवतारी दैत्य नाशक, जगद कल्याणकारी श्रीराम एक ही हैं। सभी के भावों में व्याप श्रीराम एक ही हैं। यह पवित्र भारतीय भक्ति साहित्यिक आत्माओं का संगम है। जय श्रीराम

१- संदर्भ ग्रन्थ
रामनै दरिसिप्पोम्
६-काण्डम अरिउट कट्टुरे
प्रकाशक: कंबन कषगम् '
२-मुक्कवि कण्ड काप्पियम्
(दूसरा भाग)
डॉ. टी.जी. अनंत सुब्रह्मण्यम् टी.टी.डी. प्रकाशन १९९०
३-काव्य रामायणम् -
के. रास. श्रीनिवासन्
प्रकाशक-भारत सरकार मंत्रालय- शिक्षा व युवा सेवाएँ
४-कंबरामायणम्
-मूलमुय-उरैयुम्

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-डॉ. लक्ष्मी अय्यर
(संदर्भ - साहित्य परिक्रमा - जनवरी २०१२ - भाव रुप राम )

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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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