Saturday, 13 January 2024

१०८ रामायण के रचयिता

आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।  वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।  पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।

कोंकण प्रदेश के रत्नागिरि जिले में राजापुर नाम की तहसील में का 'सौदल' नाम का एक छोटा गाँव है। कवि मोरोपंत के वंशज इसी गांव में निवास करते थे। ये जामदग्नि गोत्र के कण्हाड़े ब्राह्मण थे। इनके पिताजी अपने मूल गाँव से कोल्हापुर के राजा के यहां नौकरी के लिए आये तथा वहां से पूना के पास 'बारामती' नाम के स्थान पर नौकरी की तलाश में आये। मयूरकवि का जन्म कोल्हापुर के पास पन्हालगढ़ (पन्हाल) में हुआ। प्रारम्भिक विद्याध्ययन पिता के सान्निध्य में हुआ। इनके गुरु के रूप में चार व्यक्तियों का उल्लेख स्वयं मोरोपंत ने किया है। हरिभट्ट वरेकर इनके कुलोपाध्याय थे। उपनयन के पश्चात ब्रह्मकर्म, विष्णु-सहस्रनाम स्तोत्र, बालबोध तथा मोडी अक्षर की शिक्षा • हरिभट्ट वरेकर से प्राप्त की। कोल्हापुर के प्रख्यात पंडित केशव पाध्ये तथा गणेश पाध्ये इन दो गुरुओं के पास आपने काव्य-नाटक-व्याकरण हथा अलंकार आदि की शिक्षा प्राप्त की। मोरोपंत की पत्नी का नाम साध्वी रमाबाई था। इन्हें तीन पुत्र व तीन पुत्रियाँ थीं। भगवद्गीता, सत्संग व तीर्थयात्रा तथा ग्रंथ प्रणयन में मोरोपंत का समय व्यतीत हुआ।

मोरोपंत की ग्रंथ सम्पदा: मोरोपंत ने १०८ (108) रामायणों की रचना की  है जिनमें से ९६(96) प्रसिद्ध हैं तथा १२(12) रामायणों का केवल उल्लेख प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त दो स्फुट प्रकरण अहिल्योद्धार प्रथम तथा अहिल्योद्धार द्वितीय क्रमशः गीति तथा साखी में लिखा है। स्फुट काव्यों में रामस्तव, रामप्रार्थना (ओवी तथा आर्या छंद में) रामरीति, मारुति स्तुति, रघुराजस्तव, रामप्रार्थना (दोहामदिरा) रचनाएं भी प्रकाशित हैं। ९६ प्रसिद्ध रामायणों में से ४६ अक्षरवृत्त में, ४५ मात्रा वृत्त में, ४ अनेकवृत्तों में, २ प्राकृत वृत्तों में और दो पद हैं। रामायणों का नामकरण कहीं वक्ता अथवा श्रोता के आधार पर किया गया है। जैसे वक्ता के नाम पर हनुमत् रामायण, सीतारामायण, श्रोता के नाम पर श्री गुरु रामायण। वृत्त के नाम पर - अश्वधारीरामायण, ओवीरामायण, तन्वी रामायण, पृथ्वीरामायण आदि। कुछ रामायणों का नामकरण गुणों के आधार पर किया गया है। जैसे विचित्र रामायण, भावरामायण, रम्परामायण, साररामायण, सन्दर्भरामायण आदि। अन्य रामायणों का नामकरण 'चित्रकाव्यगुण' के आधार पर है- जैसे स्तोत्ररामायण, मंत्र रामायण, मंत्ररामायण, निरोष्ठरामायण, धन्यरामायण, दामरामायण परन्तु रामायण आदि।

रामकाव्य (रामायण) के अतिरिक्त गीति, श्लोक तथा आर्यागीति छंद में महाभारत के अठारह पर्वो का प्रणयन किया है। द्वादशस्कंधात्मक मंत्र भागवत, गीतिछंद में मंत्रमय भागवत, कृष्णविजय उर्फ वृहदशम (पूर्वार्द्ध तथा उत्तरार्द्ध) दशमस्कंद मुख्यार्थ, स्कंदपुराणांतर्गत ब्रह्मोत्तरखंड के अतिरिक्त रामायण, महाभारत, भागवत, विष्णु पुराण मार्कण्डेयपुराणादि से चुनिंदा प्रकरणों पर रचना की है। जैसे- हरिश्चन्द्राख्यान, अवतारमाला, भीष्मभक्तिभाग्य, गोपीप्रेमोद्‌गार दुर्वास मिश्रा, सावित्रीगीत आदि। इसी प्रकार संत चरित्रवर्णन विषयक, नदी- स्थान वर्णन विषयक, देवता आदि की प्रार्थना स्तुतिविषयक ग्रंथ तथा संस्कृत में भी ग्रंथों का प्रणयन किया है।

काव्य चमत्कार की दृष्टि से उनकी कुछ रामायणें विशेष प्रसिद्ध हैं। वैसे तो संस्कृत शास्त्र में शब्दों के चमत्कार से युक्त काव्य को अधम काव्य कहा गया है, किंतु मोरोपन्त के काव्य उत्तम श्रेणी के ही काव्य हैं, क्योंकि इनके काव्यों का प्रणयन देवताविषयक रति से सम्बद्ध है और जब देवता आदि से सम्बद्ध रति काव्य में होती है, तब वह भाव कहलाता है। "रतिर्देवादिविषयः व्यभिचारी तथोंझिता भाव प्रोक्तः " और इस भाव का समावेश रसादि ध्वनि के अन्तर्गत हो जाता है। इस दृष्टि से रसादिध्वनि काव्य उत्तम काव्य की कोटि में अधिरोहित हो जाता है। मोरोपन्त की दस रचनाएं काव्य चमत्कार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन रचनाओं का अत्यंत संक्षिप्त परिचय यहां दिया जा रहा है।

चमत्कृतियुक्त रामायण

परन्तुरामायण - यह सप्तकान्दात्मक रामायण है। इस रामायण की प्रत्येक आर्या में परन्तु इस शब्द की योजना इस प्रकार की गई है कि वह अप्रासांगिक नहीं लगती। जैसे - 
तन्त्र परन्तु पुसे प्रभु सौमित्र म्हणे भला कळे सेवा। नमितां देखत हो तो मीं जींती हींच नूपुरे देवा ।।
सुग्रीव म्हणे वानर हृतदार परन्तु भी नसे कष्टी। तुज देवी भेटवितो, व्यसनीं धृति हितकरी, तमीं यष्टी।।

ओवी रामायण - इस रामायण की रचना इस प्रकार कुशलता से की गई है कि सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर वह ओवी भी दिखाई देती है।

मात्रा रामायण - वर्णमाला के अ से ज्ञ तक मराठी में सोलह स्वर तथा छत्तीस व्यंजन हैं। इस प्रकार कुल 52 (52) मात्राएं होती हैं। इन मात्राओं में ऋ लृ ल्ह इम् और ळ इन छः मात्राओं से प्रारम्भ होने वाले शब्दों का इस रामायण में समावेश नहीं है। शेष छियालीस  (४६) मात्राओं से प्रारम्भ होने वाली आर्याओं का यह रामायण है। इस मात्रा रामायण की विशेषता है कि इसका प्रत्येक पद्य कमयाः अकारादि क्रम से प्रारंभ होता है जैसे (
अजित प्रभु विविधचने  ..(१)
आदिपुरुष देव धरि .....(२)
इष्टार्थ गाधि सुत ने.....(३)
ईश्वरमुनिभार्येले. (४)

लघु रामायण - इस रामायण में केवल लघुमात्राओं का ही प्रयोग किया गया है। अर्थात् आ ई ऊ ए ऐ ओ औ इनका प्रयोग नहीं किया गया है-

प्रमुदितहृदय विभु कपिल पसरुनि भुज उठुनि सुचिर दृढ़ कपळि।  
सावुनि बहु तदुपकृतिभर मिरवि, सुयश विएवरि सकल जग धयळि।।

दिव्य रामायण - इस रामायण की रचना गीति छंद में की गई है। गीति छन्द में कुल तीस मात्राएं होती हैं। मोरोपन्त ने इस रामायण की रचना में प्रत्येक पंक्ति में केवल सोलह अक्षरों का ही प्रयोग किया इनमें दो अक्षर लघु व शेष चौदह गुरु हैं। गीति के प्रत्येक चरण का ११वां व १३वां अक्षर गुरु है


सौम्य रामायण - इस रामायण की रचना आर्यागीति छंद में की गई है। इस छंद की प्रत्येक पंक्ति में बतीस मात्राएं होती हैं। मोरोपन्त ने प्रत्येक आर्यागीति की प्रथम पंक्ति में सोलह दीर्घअक्षरों से द्वितीय पंक्ति बत्तीस लघु अक्षरों की बनाई है।

कैकेयीच्या पोटा आला, ठेवी रम्या आख्या प्याला, रघुवर दशरथ भरत असि सुकवि अहितमुख सुकवि कुगतिसहि चुकवि ।।

कविप्रिय रामायण - इस रामायण की रचना अखधारी वृत्त में की गई है। इसके प्रत्येक चरण में बाईस अक्षर होते हैं। इसकी प्रत्येक पंक्ति में दूसरा, नवां तथा सोलहवां अक्षर वही आवे ऐसी रचना की गई है।

व्हावे कृतार्थजनु जावे लयासी अघ यावे महागतिमना
ध्यावे विशुद्ध यश, भावे जगी न तरि, भावे दशास्थदमना
घ्यावे स्वतत्व भगावे असेचि शुचि, ठावे, असे गुरुमखे
परवे प्रभो म्हणुनि नांवे सदा जपत गावे चरित्रचि सुख।

विचित्र रामायण
- इस रामायण की रचना जलोद्गति वृत्त में की गई है। इस वृत्त के प्रत्येक चरण में बारह अक्षर होते हैं। (ज स ज स) मोरोपन्त ने प्रत्येक चरण के पांचवें, छठे, सातवें, आठवें अक्षर में अनुप्रास की योजना की है।

भवाब्धि सुकवि कविप्रिय करी, करीशत महामहादय हरी।
सुकीर्ति परमा रमाप मिरवी रखीदितमहा महास्पद नवी ।।

दाम रामायण - 'दाम' इस शब्द का माला अर्थ है। इस रामायण की प्रत्येक आर्या में प्रथम पंक्ति के अंतिम तीन कहीं कहीं चार अक्षर अगली पंक्ति के प्रारम्भ में आते हैं। इस प्रकार प्रथम तथा द्वितीय पंक्ति एक- दूसरें में माला के समान गूंथी हुई प्रतीत होती है। इसी प्रकार आर्या के अंतिम अक्षरों से अगली आर्या का प्रारम्भ किया गया है। इस प्रकार सम्पूर्ण रचना को गूंथा गया है।

समय कठिन जाणुनि घटकर्णा उठवी दशास्य तोखरची।
खरचित सुगध धरि, हरि मारुतिच्या प्रभा मुखापरची ।।
तो वरचील काय यूथप तत्कर्णघ्राण सुल तोडी खप।
तो डिखय तोवि रगडी, त्या मारी स्वजन वज्रकवच पल।।।

निरोष्ठ रामायण - प फ, ब, भ, म इन पांच ओष्ठय व्यंजनों का प्रयोग इस रामायण में नहीं किया गया है। सम्पूर्ण रामायण में 'राम' इस शब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है।

एकनिष्ठ सदार निघे चरणगति तयासि तात रथ धाड़ी।
सारथि गंगा तरतां त्यजि अजि ! न विषाद खेदही झाड़ी ।। ६

इस प्रकार मोरोपन्त कवि की काव्य प्रतिभा का परिचय पाठकों को इनकी चमत्कारपूर्ण कृतियों के माध्यम से होता है। वैसे इनका मंत्ररामायण काव्यगुणों की दृष्टि से विद्वानों में विशेष आदर प्राप्त होते हैं। इस मंत्र रामायण को उत्तम काव्य कहा जा सकता है। मोरोपन को रचनाओं का साहित्यिक दृष्टि से साथ ही रचना वैविध्य की दृष्टि से अपना विशेष महत्व हैं।

सन्दर्भ ग्रंथ सूची
१. गुरु माझे श्रीराम श्रीमत्केशव गणेश-हरि चवधे) गंगावकिली १०९) में केशवं श्री गणेशं। वंदे विद्या गुरु हरिम्। (संस्कृत मंत्र रामायण)
२. लघुरामायण, मोरोपन्त
३. सोम्यारामायण
४. कविप्रियरामायण
५. दामरामायण मोरोपन्त
६. निरोष्ठ रामायण


- सौ. हेमा गोविन्द गन्धे
(संदर्भ - साहित्य परिक्रमा - जनवरी २०१२ - भाव रुप राम )



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