यतो धर्म: ततो जय:
मानवीय संवेदना - 1
कलकत्ता के बागबाजार मोहल्ले में 1898 में निवेदिता ने अपनी पाठशाला आरम्भ की। उस समय पडौस के गरीबों की ओर उनका दयँ गया। अमीरों की बड़ी कोठियां उन्होंने देखी थी; किन्तुनारियल के वृक्ष- समूहों की छाया में गहरी भूरी दीवारों व लाल खपरैल की छतों वाले मिटटी के छोटे झोपड़ों की ओर उनकी दृष्टि गई। उनमें गरीब बसते थे। जब भी आवश्यकता होती, निवेदिता दौड़कर जातीं। उन्हीं की एक घटना का वर्णन है: एक शाम निवेदिता खाना पका रही थीं। उसी समय रोने की आवाज ने गली की शान्ति भंग कर दी। निवेदिता आवाज की दिशा में बढ़ी, सामने नौकरों की झोपड़ियों के आंगन में एक लड़की मरणासन पड़ी थी, देखते ही देखते उसके प्राण निकल गए। पुरुष श्मशान घाट चले गए। ....... निवेदिता रोती महिलाओं के बीच सांत्वना देने बैठी रही, घण्टों बीत गए, वे नहीं जानती थी क्या बोलें। मृत बालिका की माँ मूर्छित सी मेरी बाहों में कुछ समय तक पड़ी रही। दुःख ने फिर आ घेरा, रोते हुए मुझ से बोली, अब मैं क्या करुँ ? मेरी बच्ची अब कहाँ है ? मेरी प्यारी बच्ची मुझे छोड़कर कहां चली गई ?अकस्मात् करुणा से परिपूर्ण निवेदिता के मुँह से निकल पड़ा माँ शान्त होओ ! तुम्हारी बच्ची महामाई के पास है, काली माँ के पास है।' तब एक क्षण के लिए सब कुछ भूल कर दोनों परस्पर गले लग गए, विश्व ह्रदय की सांत्वना की अगाध गहनता में पूर्व व पश्चिम एक हो गए।'
एक बार अंधेरे में एक महिला पड़ोस में रो रही थी। उसकी में की मृत्यु होइ गई थी। निवेदिता उसकी झोपड़ी में गई, और चुपके से उसे अपनी बाँहों में ले लिया। उसका रोना तुरन्त थम गया, वह सिसकती हुई केवल इतना ही कह सकी, 'तुम्हीं मेरी माँ हो'।
To Be continue
हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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