Sunday 17 December 2017

निवेदिता के शैक्षिक दर्शन की प्रासंगिकता - 2

यतो धर्म: ततो जय:

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (2003-2005) के शिक्षा प्रणाली के 5 आदर्श बताये जिसमें प्रथम है ज्ञान की सुलभता (मेंल ंबबमे जव ादवूसमकहम) अर्थात् पुस्तकालय, प्रशिक्षण अनुवाद, इंटरनेट, पुस्तकों, शिक्षण संस्थाओ के द्वारा ज्ञान की सुलभता, परन्तु निवेदिता ज्ञान की सुलभता के लिए छात्राओं को आस-पास के दर्शनीय स्थलों पर ले जाती थीं मनोरंजन के आधार पर ज्ञान प्राप्ति उनका उद्देश्य था। इतिहास को बड़ी तन्मयता से पढ़ाती थीं पढ़ाते समय विषय वस्तु में इतनी तल्लीन हो जाती कि वह कक्षा में है, यह भूल जाती कि वह किस कक्षा में है। यही एक आदर्श शिक्षक के गुण हैं। राष्ट्रीय शिक्षा निति 2016 के परामर्श बिन्दु 12 में सर्वात्तम शिक्षक तैयार करना बताया है, यही बात भगिनी निवेदिता ने आत्मसात् कर ली थी। वह कक्षा की बड़ी लड़कियों को स्वयं की कक्षा में पढ़ाते समय बैठाया करती थीं ताकि वे सब निवेदिता के अध्ययन गुण ग्रहण कर श्रेष्ठ शिक्षक बनें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 के परामर्श बिन्दु 6 पर उच्च शिक्षा में कौशल विकास को शामिल करना है भारत में बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) के माध्यम से शिक्षा व कौशल विकास द्वारा मानव पूँजी निर्माण व विकास पर केन्द्रि्रत किया गया है उल्लेखनीय है कि भगिनी निवेदिता की भारतीय शिक्षा पद्धति में बालोद्यान पद्धति पर आधारित पाठ्यक्रम में विद्यालय में लिखने-पढ़ने के साथ-साथ चित्रकला, सिलाई, मूर्तिकला, सूत की कताई की शिक्षा का भी समावेश था। अतः महिलाओं के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के कारण सामाजिक बदलाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, भगिनी निवेदिता ने स्त्री शिक्षा पर अधिक बल देने के कारण ही चतुर्दिक क्षेत्रों में महिला प्रभाव बढ़ रहा है। विश्व बैंक के अनुसार भारत में केवल 30 प्रतिशत स्त्रियों के पास रोजगार है परन्तु सरकारी योजनाओं व शिक्षा के कारण उनकी सहभागिता बढ़ी है, उद्यमिता के क्षेत्र में भी भारतीय महिलाओं की स्थिति निराशाजनक नहीं है, यहाँ करीब 10 प्रतिशत महिलाएँ प्रसिद्ध भारतीय उद्यमियों में जगह बनाए हुए हैं। महिलाओं के कौशल के कारण देश का सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता है व पारिवारिक समृद्धि का सूचकांक भी यह है। भगिनी निवेदिता ने समाज के मनोविज्ञान का गहन अध्ययन किया उनकी शिक्षा दर्शन का मूल महिला केन्द्रित शिक्षा थी उनकी महिलाओं के अध्ययन के प्रति संवेदनशीलता इसी से इंगित होती है कि उन्होंने महिलाओं के लिए पाठशाला का समय 12 बजे दोपहर से 4 बजे सायं रखा ताकि दैनिक पारिवारिक कार्य कर महिलाएँ शिक्षा ग्रहण कर सकें। उन्होंने पाठशाला में छात्राओं की कम उपस्थिति का अध्ययन कर बाल-विवाह को इसका कारण बताया उन्होंने महिला शिक्षा प्रोत्साहन के लिए एक पृथक महिला विभाग बनाया। महिलाओं में जोश के संचार के लिए, प्राचीन महिलाओं की शौर्य गाथा का वर्णन करके कहती ''तुम सब उन क्षत्राणियों की तरह साहसी व वीर बनों क्योंकि तुम्हारे शरीर में उनकी वीरता, शौर्य व पराक्रम का प्रवाह है, इस प्रवाह को अनवरत रखो।'' इस प्रकार ओजस्वी भाषण से  महिलाओं में की वीर रस का संचार करती, इसी कारण यदि उन्हें समर्पित भारतीय शिक्षिका कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी जो उन्होंने अनेक सामाजिक कुरीतियों को दूर करने हेतु तर्क संगत विचार विमर्श देकर समाज को उन्नत बनाया।

उपरोक्त विवरण भगिनी निवेदिता का शैक्षिक दर्शन के परिप्रेक्ष्य व भारतीय शिक्षा पद्धति के संदर्भ में प्रासंगिक है। आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में हमें, प्रदर्शन का मोह छोड़ना व स्वकेन्द्रित प्रकृति का त्याग, प्राचीन रस परम्पराओं का सम्मान, भौेतिकतावादी दृष्टिकोण का परित्याग, श्रम के प्रति निष्ठा विकसित कर, प्राचीन भारतीय साहित्य व पर्यावरण का मर्यादित उपयोग करेंगे तभी भारतीय शैक्षिक परिदृश्य में जो अनवरत पुण्य प्रवाह बह रहा है उसके प्रवाह में हमारा भी योगदान होगा व भारत सबल व सक्षम राष्ट्र की श्रेणी में अग्रसर की भूमिका में होगा व स्वामी विवेकानन्द का आह्वान ''कृण्वन्तो विश्वमार्यम'' साकार होगा।

- प्रो. मधुर मोहन रंगा
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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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