Thursday 21 December 2017

निवेदिता - एक समर्पित जीवन - 9

यतो धर्म: ततो जय:

श्रीमाँ का वात्सल्य

                                                                    

माँ शारदा के महनीय चरित्र के सम्बन्ध में बोलते -बोलते भावातिरेक में स्वामी विवेकानन्द के बार माँ सारदा को श्रीरामकृष्ण देव से भी श्रेष्ठ घोषित करते और विस्मय-विमुग्ध होकर मार्गरेट सोचने लगती कि  स्वामीजी जैसे व्यक्ति जिनका चिन्तन करते-करते भाव-विह्वल होकर, माँ,माँ,......  पुकार उठते है, सम्पूर्ण विश्व के समस्त प्राणियों के लिए ह्रदय में अपार वात्सल्य लिए वह विश्व जननी माँ शारदा कैसी होंगी ?

एक दिन भागने दो अन्य महिलाओं सहित श्रीमाँ के दर्शन करने पहुँची तो माँ ने अत्यन्त प्रेम से उनका स्वागत -सत्कार किया। उन्होंने जब 'मेरी बेटी' कहकर पास बिठाया और अप्रत्याशित रूप से उनके साथ बैठकर एक ही थाली में फल खाना शुरू किया, तो नवेदिता को बहुत ही अच्छा लगा,तब उनकी सारी आशंकाएं निर्मूल सिद्ध हुई।

उनके वात्सल्य को भगिनी ने अपने अन्तर में गहराई तक अनुभव किया। उसे लगा कि माँ शुद्ध माधुर्यमयी है,स्नेह और प्यार से भरपूर। अपनी डायरी में उन्होंने लिखा यह दिन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। 'सब दिनों का राजा' दिन।


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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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