Thursday, 28 December 2017

निवेदिता - एक समर्पित जीवन - 10

यतो धर्म: ततो जय:

मानवीय संवेदना - 2

1899 में प्लेग में महामारी का रूप धारण कर लिया था। पिछले सल प्लेग फैलने के लक्षणों का पता लगते ही आतंकित जनता बुरे परिणामों की शंका में शहर से बाहर भागने लगी थी। अतः इस साल गवर्नर सर जान बुडबर्न ने सबको आश्वासन दिया। कि किसी भी रोगी को जबरदस्ती उसके घर से हटाया नहीं जाएगा। उसी संकट के दौरान, चैत्र के महीने की कड़ी धूप में, एक घर के दरवाजे पर धूल से भरी कुर्सी पर एक यूरोपियन महिला बैठी है। यह भगिनी निवेदिता थी। वे वहाँ बागबाजार के झुग्गी-झोपड़ियों वाले अस्वच्छ इलाके की एक झोपड़ी में एक प्लेगपीड़ित रोगी की चिकित्सा व्यवस्था के बारे में पूछताछ कर रही थी, उन्होंने इस रोगी की जिम्मेदारी खुद लेने की इच्छा दर्शायी। लोगों ने उन्हें बताया कि रोगी की स्थिति बहुत ही गंभीर है। इस प्रकार की झुग्गी-झोपड़ियों के गरीब लोगों के बीच काम करना कितना अस्वास्थ्यकर होता है, इस बारे में उनको थोड़ी बहुत सूचनाएं भी दी  गई; किन्तु इस सबकी परवाह न करते हुए भगिनी निवेदिता उस झोपडी की जमीन पर, जहाँ भारी गन्दगी का साम्राज्य था, उस बच्चे को गोद में लिए बैठी थी। दिन-रत एक-एक करके बीत रहे थे, पर निवेदिता बिना थके उस रोगी की देखभाल में लगी रहीं। इन दिनों उनका खुद का घर पूर्णतः उपेक्षित सा पड़ा रहा। अपने हाथों से उस घर को निवेदिता ने  उस झोपडी को साफसुथरा कर दवाई छिड़ककर निर्जन्तुक किया। साथ ही एक छोटी सी सीढ़ी लेकर दीवारों पर चूने से पुताई का काम भी उन्होंने किया। बच्चे की हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि मृत्यु निश्चित ही थी| पर यह जानकर भी उन्होंने बच्चे की देखभाल में थोड़ी सी भी टालमटोली नहीं की। अन्त में मृत्यु स संघर्ष करते हुए इस बालक ने दो दिन पश्चात इस ममतामयी महिला की गोद में अपने प्राण त्याग दिए।

To Be continue



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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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