Wednesday 20 December 2017

निवेदिता - एक समर्पित जीवन - 8

यतो धर्म: ततो जय:

शिक्षा का अर्थ

आज निवेदिता भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में जानना चाहती है, सुनकर स्वामी स्वरूपानन्द जी धीर- गम्भीर स्वर में कहने लगे - "देखो, तुमने स्वामी जी के श्रीमुख से सुना है न कि मनुष्य ने अन्तर्निहित शक्तियों के विकास का नाम ही शिक्षा है। यह तो जान ही गयी हो कि एक शब्द रटना और उसका अर्थ जानने के लिए और चार शब्दों को रट लेना शिक्षा नहीं कहलाता।"

भारतीय आचार्य पात्रता को देखकर ही उपदेश देते थे। जिसने अपने में अन्तर्निहित शक्तियों को जिस परिमाण में विकसित कर लिया है, उससे आगे वह किसी प्रकार अपना विकास कर सकेगा, ऐसा सम्भावनाओं को खोज कर उसके अनुरूप वातावरण तैयार करना व आवश्यकता होने पर तनिक सहायता भर कर देना ही उनका अभीष्ट था। प्रत्येक विद्यार्थी स्वानुभव से ही ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहता था।'

कुछ क्षण रूककर वे पुनः बोले - "यह जो विश्लेषण की पद्धति है न,उसके द्वारा समझने में किसी पदार्थ को हम खण्ड करके उसके प्राणचक्र या शक्ति व्यूह को तो नष्ट करते ही है, साथ ही उसमें स्थित चेतना के अनुभव में भी, सर्वथा असमर्थ हो जाते है। ऐसी स्थिति में हमें उस पदार्थ के बारे में कितना ज्ञान हो पायेगा ? जरा सोचो तो ?"

"तो महाराज, क्या पुस्तकों का कुछ भी महत्त्व नहीं है ?" भगिनी ने जिज्ञासा व्यक्त की।

'है क्यों नहीं,उनसे किसी को इतनी सहायता तो मिल ही सकती है कि उससे पहले उस पुस्तक के लेखक ने चेतना के किन स्तरों को किस क्रम से आयत किया था, स्वल्प ही सही कदाचित, वह अनुभव  करने पर प्रक्रिया क्या रही होगी,यह भी पुस्तकों में मिल सकता है। यह बार ठीक होने पर भी, मैं जो कहना चाहता हूँ उसे समझने का प्रयास करो - यह सुनिश्चित जानो कि स्वयं के अनुभव के बिना उस पुस्तक में वर्णित किसी भी ऊँचे से ऊँचे विचार की तुम्हारे लिए कोई उपयोगिता नहीं है और पुस्तकों की सहायता के बिना कोई शिक्षा प्राप्त कर ही नहीं सकता, यह सर्वथा असत्य है। तुम्हारे सामने माँ सारदा एवं श्री रामकृष्ण देव की प्रत्यक्ष उदाहरण है।


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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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