भाऊसाहब भुस्कुटे व्याख्यान माला में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का भाषण
विकास बहुत हुआ, पर पर्यावरण बिगाड़ दिया। हम ही रहें, शेष कोई न रहे, हम सबसे बड़े हो जाएं, हमारी दया पर सब आश्रित हों, अगर यही सोच रहा तो सारी सृष्टि और उस पर का जीवन समाप्त हो जाएगा। ऋषियों ने कहा सबमें एक ही तत्व है। विविधता से सजी यह पृथ्वी एक का ही रूप है। उसे जानो। दुनिया में अन्यत्र मान्यता है - अधिक से अधिक लोगों का अधिक से अधिक भला। हमारे यहां कहा गया – "सर्वे भवन्तु सुखिनः"। संघर्ष नहीं, समन्वय। अपना भला पर दूसरों का बुरा, तो उसे त्यागना। सब लोग अपना कर्तव्य पालन करें। अर्थ के पीछे भागना नहीं। संयमित उपभोग। मुक्ति के भी नियम हैं। संन्यासी के भी नियम - संग्रह नहीं, भिक्षा मांगना, एक स्थान पर नहीं टिकाना आदि। कौशिक नाम के ऋषि के क्रोध से चिड़िया भस्म हो गई। किन्तु कर्तव्य परायण गृहिणी का कुछ नहीं बिगड़ा। इतना ही नहीं उसने लताड़ा भी कि क्या मुझे चिड़िया समझा है? ऋषि को अचम्भा हुआ कि इन्हें वह घटना कैसे मालुम हुई। पूछा तो धर्मव्याध के पास जाने को कहा। एक खटीक मुझे क्या शिक्षा देगा, ऐसा सोचते हुए ऋषि उसके पास पहुंचे, किंतु उसने पहले माता-पिता की सेवा की, फिर इनसे कहा कि पूछो क्या पूछना है? इन्हें फिर अचम्भा हुआ कि इसे कैसे मालूम कि मैं कुछ पूछने आया हूं। कर्तव्य पालन से सिद्धि।
अपनी जरूरतें कम करने से ही दूसरों की जरूरतें पूरी होंगी । यही शाश्वत धर्म है। विविधता में एकता देखना, सबको साथ चलाना, सबके साथ चलना, त्याग और संयम को सीखना, इसे ही धर्म कहते हैं। यही युग धर्म भारत में पहचाना गया। धर्म पहले से था, इसलिए हमारे यहां इसे शाश्वत कहा गया। मानव के आचरण को परिभाषित करनेवाले मानव धर्म को ही हम हिन्दू धर्म कहते हैं। यह नियम केवल भारत में ही नहीं वरन पूरे विश्व पर लागू होते हैं, अतः यह विश्व धर्म है। इसे हमारे यहां केवल कहा ही नहीं गया, बल्कि आचरण में उतारकर दिखाया गया। सारी दुनिया में इसी कारण इसको नमन किया गया।
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