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राष्ट्रीयता
राष्ट्रीयता
- वर्तमान में प्रकृत कार्य है -सर्वविध तात्पर्य एवं अर्थबोध के साथ ही भारत में सर्वत्र 'राष्ट्रीयता' शब्द का प्रचार करना। यह विराट चेतना सब समय भारत में विद्यमान रहे। इस राष्ट्रीयता के द्वारा ही हिन्दू तथा मुसलमान देश के प्रति एक गम्भीर प्रेम से एकत्र होंगे। इसका मतलब है- इतिहास तथा प्रचलित राजनीति को एक नयी दृष्टि से देखना, धर्म में रामकृष्ण-विवेकानंद भाव का समावेश तथा सर्वधर्मसमन्वय। समझना होगा की राजनितिक स्मृति तथा अर्थनैतिक संकट मात्र गौण है, प्रत्येक भारतवासी के द्वारा भारत की राष्ट्रीयता की उपलब्धि ही प्रकृत कार्य है।
- केवल जगत के समक्ष भारत कापरिचय प्रदान ही नहीं करना है, अपितु भारत की मर्मवाणी को प्रत्येक के द्वारा, भारत की राष्ट्रीयता को अपनाना ही प्रकृत कार्य है।
- हे भारत की सन्तानों ! तुम लोग अपने सारे प्राचीन महापुरुषों की पुजा करना सीखो। गहन ज्ञान का आह्वान करो। चिंतन करो-जो भाषा तुमको प्राचीन की गम्भीरता में निहित अतुल सम्पदा का अविष्कार करने में सहायता प्रदान करेगी, वह तुम्हारे निकट ही है, विदेशियों के पास नहीं। इस प्रगाढ़ अनुसन्धित्सा,इस सत्य के उद्घाटन के ऊपर ही भारत का भविष्य निर्भर है। जो सत्य को केंद्र बनाकर चलता है, उत्साह एवं उद्दीपना हीउसका अशेष पाथेय बनता है, निराशा उसे रोक नहीं सकती। आज प्रत्येक भारतीय भाषा में वृहत साहित्य की रचना करनी होगी। इस साहित्य के माध्यम से प्राचीन को मुखर करना होगा, वर्तमान को रूप देना होगा तथा इन दोनों के समन्वय से ही भारत का उज्जवल चरित्र प्रस्फुटित होगा।
- भारत की राष्ट्रीयता का स्वप्न भारत के स्वार्थपरक नहीं है- यह है मानवता का स्वप्न, जहाँ भारतमाता विराट आदर्श जननी है जो कुछ भी महान, प्रेममय तथा सर्वव्यापी हो, उसको हमरी मातृभूमि पालनतथा धारण करने वाली होगी।
- इसका कोई विशेष महत्व नहीं है कि किसने, किस कर्मधारा को ग्रहण किया है। उन्हें हम लोग अवश्य ही राष्ट्रीय नेता का सम्मान प्रदान करेंगे, यदि वे यथार्थ कर्म द्वारा वास्तविक आत्मोत्सर्ग के द्वारा एकान्तिक देशभक्ति का परिचय दें। हे मेरे भारतीय जनगण, हे पददलित आज्ञ, असहाय जनगण ! थोड़ा स्वर ऊंचा करो, ताकि तुम्हारा क्रन्दन सुना जाए, तुम्हारे सहज सुख को जान सकें तथा हम अपने ह्रदय को तुम्हारे साथ ही समवेत दुःख-कष्ट, समवेत प्रेम में सम्मिलित कर सकें।
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