यतो धर्म: ततो जय:
भारतीय युवकों के लिए माँ का आह्वान
अतीत भारत के पुत्रो,जागो !
जगन्नाथ से द्वारकानाथ तक,
केदारनाथ से कन्याकुमारी तक,
क्या तुम एक नहीं ?
देखो,इतिहास लुप्त नहीं होता।
तुममें आज भी तुम्हारे अतीत की महत्ता जीवित है,
तब जागो व उठो!
संघर्ष करते चलो तथा लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं!
अपनी सेनाओं को जुटाओ!
अपनी सेना के साथ आगे बढ़ो!
क्या तुम एक नहीं?
एक ही माँ के बच्चो,
एक ही देश की सन्तानो,
एक ही परिवार के भाइयो,
क्या तुम एक नहीं,
बंगाल के पुत्रो,प्राचीन मगध के उतराधिकारियो,
महान साम्राज्यों वाले एक समय के केन्द्र,
तुम्हारे मन्त्र से शक्तिशाली राष्ट्र जन्मे,
पूर्व,उतर व दक्षिण में तुमने धर्मोपदेश दिए,
तुमने शास्त्रों को रचा व महान विद्वता अर्जित की,
क्या तुम नहीं रहोगे?
मेरे बंगाल के बच्चो!
देखो,तुम में अतीत जीवित है!
क्या तुम एक नहीं?
अयोध्या के पुत्रो,वाराणसी के बच्चो,
सुदूर प्रसिद्ध मन्दिरों व नगर प्रासादों के वासियो जागो व उठो! तुममे तुम्हारा सारा अतीत जीवित है,
क्या तुम एक नहीं हो!
राजपूत, मराठा,सिख,मुसलमान व द्रविड़,
तुम्हारा अतीत क्या तुम्हारा नहीं?
मशीनों से डरो नहीं!
अन्तर्मन ही महानता को जगाओ,
सम्मिलित करो,रचो,आक्रमण व शक्ति से जीत लो,
मानव-मन के सृदृढ़तम नगर को,
रेंगने पर सन्तुष्ट मत होओ
वरन ऊँची छलांग लगाओ।
उनकी मृत्यु के दस वर्ष के बाद यह कविता प्रकाशित हुई जिसे उपयुक्त शीर्षक दिया गया - "भारतीय युवकों के लिए माँ का आह्वान"।
भारतीय युवकों के लिए माँ का आह्वान
अतीत भारत के पुत्रो,जागो !
जगन्नाथ से द्वारकानाथ तक,
केदारनाथ से कन्याकुमारी तक,
क्या तुम एक नहीं ?
देखो,इतिहास लुप्त नहीं होता।
तुममें आज भी तुम्हारे अतीत की महत्ता जीवित है,
तब जागो व उठो!
संघर्ष करते चलो तथा लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं!
अपनी सेनाओं को जुटाओ!
अपनी सेना के साथ आगे बढ़ो!
क्या तुम एक नहीं?
एक ही माँ के बच्चो,
एक ही देश की सन्तानो,
एक ही परिवार के भाइयो,
क्या तुम एक नहीं,
बंगाल के पुत्रो,प्राचीन मगध के उतराधिकारियो,
महान साम्राज्यों वाले एक समय के केन्द्र,
तुम्हारे मन्त्र से शक्तिशाली राष्ट्र जन्मे,
पूर्व,उतर व दक्षिण में तुमने धर्मोपदेश दिए,
तुमने शास्त्रों को रचा व महान विद्वता अर्जित की,
क्या तुम नहीं रहोगे?
मेरे बंगाल के बच्चो!
देखो,तुम में अतीत जीवित है!
क्या तुम एक नहीं?
अयोध्या के पुत्रो,वाराणसी के बच्चो,
सुदूर प्रसिद्ध मन्दिरों व नगर प्रासादों के वासियो जागो व उठो! तुममे तुम्हारा सारा अतीत जीवित है,
क्या तुम एक नहीं हो!
राजपूत, मराठा,सिख,मुसलमान व द्रविड़,
तुम्हारा अतीत क्या तुम्हारा नहीं?
मशीनों से डरो नहीं!
अन्तर्मन ही महानता को जगाओ,
सम्मिलित करो,रचो,आक्रमण व शक्ति से जीत लो,
मानव-मन के सृदृढ़तम नगर को,
रेंगने पर सन्तुष्ट मत होओ
वरन ऊँची छलांग लगाओ।
उनकी मृत्यु के दस वर्ष के बाद यह कविता प्रकाशित हुई जिसे उपयुक्त शीर्षक दिया गया - "भारतीय युवकों के लिए माँ का आह्वान"।
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