Wednesday 25 April 2018

निवेदिता - एक समर्पित जीवन - 32

यतो धर्म: ततो जय:

मातृभूमि का गान

  • भारतीय राष्ट्र अधिक शक्तिशाली है। अपनी शक्ति की अनुभूति राष्ट्र को स्वयं करनी है तथा इसके लिए जुटकर व्यक्ति को प्रबल चेष्टा करनी होगी। उसकी प्रगति को कोई नहीं रोक सकेगा। मकड़ी के जालों के समान सारी कठिनाइयां तोड़ दी जाएगीं।
  • पारिवारिक सम्बन्धों की शक्ति में, पारिवारिक जीवन की मर्यादा में, अखिल धर्म की योजना में, व्यक्तिगत विकास के स्थान की व्यापक समझ में, आनन्द  की शक्ति में, गरिमा,अल्पव्ययिता व आक्रामक क्रिया-कलाप से रहित सतत परिश्रम में, किये  गए व हो रहे कार्य के कलात्मक सम्मान में तथा सबसे ऊपर, किसी भी समय सारी क्षमताओं को एकाग्र कर पाने की योग्यता में, भारत के अति निर्धन वर्ग भी चाहे किसी भी धर्म के हों, पश्चिम में अपने से कही ऊंचे स्तर के लोगों की तुलना में श्रेष्ठ रहेंगे।
  • जहां तक हो सकेगा, मैं भारत की सभी बातों के मर्म में प्रवेश करूंगी। या तो एक कक्ष से मूक सन्देश निःसृत करती गुप्त वाणी बनकर या महानगरों में उच्छृंखल व उत्पाती व्यक्तित्व के रूप में, इसकी मुझे परवाह नहीं; किन्तु मेरा ईश्वर मुझे अपने उत्साह को पश्चिमी मिथ्या आचरणों पर व्यर्थ न करने दे। इससे श्रेष्ठ तो आत्महत्या ही है। मेरे आदि बिन्दु व लक्ष्य दोनों ही भारत है। यदि भारत चाहे तो पश्चिम की चिन्ता करे।
  • पहली बार अतीत की स्तुति, राष्ट्रीय जीवन के गान की रचना करने व गाने के दायित्व सहित आधुनिक रूप में भारत के लोगों के सामने ऐतिहासिक बोध को संजोने का अवसर है। इस तथ्य के पल भर के बोध के समान भारत में उदय होते नवयुग की श्रेष्ठता जैसा हर्षोल्लास हमें अन्य वस्तुएं नहीं दे सकती।
  • अपने अतीत की जिस गौरवगाथा की आशा मातृभूमि करती है उसे आधुनिक आलोचक की कुशलता तथा प्राचीन रचनाकार के महाकाव्य लिखने के उत्साह से जोड़ना होगा......  विदेशी लेखक वृतान्त, कहानियां व स्मृतियां लिखता है,किन्तु स्वयं अपनी सन्तान के अतिरिक्त मातृभूमि का यह गान क्या कोई और लिख सकता है ?
  • सबकी दुर्बलता, दुर्भाग्य या कष्ट में ही नहीं, वरन सबके देशप्रेम,उत्तराधिकार,संघर्ष व जीवन की अत्यधिक संयुक्त, वास्तविक,सदा शक्तिशाली अमर चेतना में तब यह सारा राष्ट्र एक हो जाएगा। हां ! सभी की नियति व सभी की आशा में भी। अतः मैं आपके सामने सम्पूर्ण श्रद्धा,कृतज्ञ मन व प्रेम के साथ एक ऐसी प्रिय वाणी द्वारा कुछ ही वर्ष पूर्व कहे गए शब्दों को दोहराती हूं  जो आपको भी याद है, इन महान शब्दों में उनका सन्देश इस देश के प्रति सदा के लिए है-उठो, जागो , संघर्ष करो तथा लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको नहीं।
    • मुझे विश्वास है कि भारत अखण्ड है, अमर है,एक है।
    • एक ही गृह, एक ही  रूचि व प्रेम इस राष्ट्रीयता एकता के आधार है।
    • मुझे विश्वास है की वेदों व उपनिषदों में, धर्मो व साम्राज्यों के निर्माण में, विद्वानों के ज्ञान में तथा ऋषियों के ध्यान में जिस शक्ति का निरूपण हुआ है, उसका हमारे बीच एक बार फिर जन्म हुआ है तथा उसका नाम राष्ट्रीयता है।
    • मुझे विश्वास है कि  भारत की वर्तमान जड़े उसके अतीत की गहराई में है तथा उसका भविष्य अत्यन्त गौरवशाली है।
    • ओ राष्ट्रीयता,तू चाहे आनन्द के रूप में या लज्जा के रूप में आये और मुझे अपना बना ले।





No comments:

Post a Comment