ॐ
दो शक्तियाँ सदा समानान्तर रेखाओं में एक दूसरे के साथ कार्य कर रहीं हैं। एक कहती है 'मैं' और दूसरी कहती है 'मैं नहीं'। उनकी अभिव्यक्ति केवल मनुष्यों में ही नहीं, किन्तु पशुओं में भी देखी जाती है--केवल पशुओं में ही नहीं क्षुद्रतम कीटाणुओं में भी। नर-रक्त की प्यासी लपलपाती जीभवाली बाघिन भी अपने बच्चे की रक्ष के लिए जान देने को प्रस्तुत रहती है। अत्यन्त बुरा आदमी, जो अनायास ही अपने भाई का गला काट सकता है--वह भी भूख से मरती हुई अपनी स्त्री तथा बाल बच्चों के लिए अपने प्राण निस्संकोच दे देता है। सृष्टि के भीतर ये दोनों शक्तियाँ पास-पास ही काम कर रहीं हैं--जहाँ एक शक्ति देखोगे, वहाँ दूसरी भी दीख पडेगी। एक स्वार्थपरता है, और दूसरी निःस्वार्थपरता। एक है ग्रहण, दूसरी त्याग। एक लेती है, दूसरी देती है। क्षुद्रतम प्राणी से लेकर उच्चतम प्राणी तक समस्त ब्रह्माण्ड इन्हीं दो शक्तियों का लीलाक्षेत्र है। इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं--यह स्वतः प्रमाण है।
क्या कोई मनुष्य यह स्वीकार कर सकता है कि यह प्रेम, अहं-शून्यता अथवा त्याग ही जगत् की एकमात्र धनात्मक शक्ति है? दूसरी शक्ति इस प्रेम-शक्ति का ही असम्यक् प्रयोग है, प्रेम से ही प्रतिद्वन्द्विता की उत्पत्ति होती है, प्रेम ही प्रतियोगिता का मूल है। निःस्वार्थपरता ही अशुभ की माता है। शुभ ही अशुभ का जनक है, और अशुभ का परिणाम भी शुभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
क्या कोई मनुष्य यह स्वीकार कर सकता है कि यह प्रेम, अहं-शून्यता अथवा त्याग ही जगत् की एकमात्र धनात्मक शक्ति है? दूसरी शक्ति इस प्रेम-शक्ति का ही असम्यक् प्रयोग है, प्रेम से ही प्रतिद्वन्द्विता की उत्पत्ति होती है, प्रेम ही प्रतियोगिता का मूल है। निःस्वार्थपरता ही अशुभ की माता है। शुभ ही अशुभ का जनक है, और अशुभ का परिणाम भी शुभ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
(VIII, ५९-६०)
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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji
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