Friday 3 June 2016

Akhand Bharat

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

अखण्ड भारत में आस्था

मजहब कहीं भी राष्ट्रीयता का आधार नहीं होता, लेकिन सांस्कृतिक भारत को मजहब के नाम पर बांटा गया। राजनीति भी राष्ट्रीयता की नियामक नहीं होती लेकिन कहा गया कि हम 1947 में नया राष्ट्र बने हैं। परिभाषाहीन राष्ट्रीयता एक मजाक बन गयी। एक व्यक्ति जब जन्मा तो उसकी राष्ट्रीयता भारतीय थी, युवा हुआ तो उसकी राष्ट्रीयता पाकिस्तानी हो गयी तथा प्रौढ़ावस्था में आने पर उसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता बंगलादेशी हो गयी। राष्ट्रवाद की विकृतिपूर्ण अवधारणा का यह दुष्परिणाम है। अतः सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पोषक दीनदयाल उपाध्याय अखण्ड भारत के समर्थक हैं। वे अपने ऐतिहासिक 'सिद्धांत और नीतियां' प्रलेख में लिखते हैं: ''पाकिस्तान की जनता मूलतः भारतीय राष्ट्र की अंग है। वह पृथकतावादी राजनैतिक शक्तियों का शिकार बनकर अलग हुई है। पाकिस्तान की निर्मिति के बाद से वह बराबर पीडि़त है। जिस स्वर्ग की उन्हें आशा दिखाई गई थी वह मृग-मरिचिका सिद्ध हुई।''8

 

दीनदयाल उपाध्याय भारत की भ्रमोत्पादक राजनीति से अप्रभावित रहते हुए निरंतर 'अखण्ड भारत' के पक्षधर रहे। 1952 से लेकर 1967 तक प्रत्येक घोषणापत्र में अखण्ड भारत का उल्लेख है। 1971 में दुर्भाग्य से उनकी अनुपस्थिति में चुनाव हुआ तथा घोषणापत्र में 'अखण्ड भारत' को स्थान नहीं मिला।

 

वे कहते हैं ''वास्तव में भारत को अखण्ड करने का मार्ग युद्ध नहीं है। युद्ध से भौगोलिक एकता हो सकती है, राष्ट्रीय एकता नहीं। अखण्डता भौगोलिक ही नहीं, राष्ट्रीय आदर्श भी है। देश का विभाजन दो राष्ट्रों के सिद्धांत तथा उसके साथ समझौते की प्रवृत्ति से हुआ। अखण्ड भारत एक राष्ट्र के सिद्धांत पर मन-वचन एवं कर्म से डटे रहने पर सिद्ध होगा। जो मुसलमान आज राष्ट्रीय दृष्टि से पिछड़े हुए हैं ( राष्ट्रीय दृष्टि को स्वीकार नही करते) वे भी आपके सहयोगी बन सकेंगे, यदि हम राष्ट्रीयता के साथ समझौते की वृत्ति त्याग दें। आज की परिस्थिति में जो असंभव लगता है वह कालांतर में संभव हो सकता है, किन्तु आवश्यकता है कि आदर्श हमारे सम्मुख सदा ही जीवित रहे।''     

 

दीनदयाल उपाध्याय भारतीय संस्कृति के लिए हिन्दू-संस्कृति शब्द का भी उपयोग करते हैं। ''यदि हम एकता चाहते हैं तो भारतीय राष्ट्रीयता, जो कि हिन्दू राष्ट्रीयता है तथा भारतीय संस्कृति, जो कि हिन्दू-संस्कृति है, उसका दर्शन करें, उसे मानदण्ड मानकर चलें। भागीरथी की इस पुण्यधारा में सभी प्रवाहों का संगम होने दें। यमुना भी मिलेगी और अपनी सभी कालिमा खोकर गंगा की धवल धारा में एकरूप हो जाएगी।''

 

हिन्दू राष्ट्रीयता है मजहब नहीं तथा मुस्लिम मजहब है राष्ट्रीयता नहीं। अतः उन्होंने भारत के मुसलमानों के लिए 'महोम्मद पंथी हिन्दू' शब्द का भी प्रयोग किया। भारत के मुसलमान भारत की ओरस संतानें हैं। सांस्कृतिक रूप से वे पृथक नहीं हैं। सभी भारतीय महापुरूष उनके भी पूर्वज हैं।

 

क्षेत्रीय सम्प्रभुता के आधार पर 1947 में जो नया राष्ट्र बनाने चले थे, वे समझते थे कि भारत के जिस भू-खण्ड पर अंग्रेजों का राज्य है, वह 'ब्रिटिश इंडिया' ही केवल भारत है। अतः जब नेपाल के कुछ लोगों ने कहा कि जब आप ब्रिटिश इंडिया अनुबंधित सभी रियासतों को भारत में मिला रहे हो, तो नेपाल भी एक रियासत है, उसे भारत में सम्मिलित क्यों नहीं कर रहे। तब उत्तर दिया गया था हमने अंग्रेजों से उत्तराधिकार में राज्य प्राप्त किया है, उन्होंने ब्रिटिश इंडिया को दो राष्ट्र-राज्यों में विभक्त करके हमें सौंपा है, अतः ब्रिटिश इंडिया के बाहर के किसी प्रदेश को यदि हम भारत में मिलायेंगे तो दुनियां हमें विस्तारवादी कहेगी। यहां तक कि पुर्तगाल से गोवा को मुक्त करवाने के लिए भी  राष्ट्रवादी लोगों को आंदोलन करना पड़ा। राजनैतिक राष्ट्रीयता के विकृत भाव ने हमें अखण्ड भारत से साक्षात्कार नहीं करने दिया तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की दृष्टि के अभाव के कारण हमने मजहबाधारित भारत विभाजन स्वीकार कर लिया।



- डा. महेश चंद्र शर्मा


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