यतो धर्म: ततो जय:
भारतीय नारी
भारतीय नारी
बागबाजार मुहल्ले में अन्तः पुर की भारतीय नारियों के साथ घनिष्ठ रूप से मिलकर तथा सर्वोपरि श्रीमाँ सारदादेवी को देखकर भारतीय नारियों के सम्बन्ध में उनके मन एक उच्च सम्मान की धारणा बन गई थी। एक दिन वार्तालाप के दौरान स्वामी सरदानन्द ने कहा - हम लोगों की नारियाँ तो अज्ञ ............... । निवेदिता ने उन्हें अपना वाक्य पूरा करने नहीं दिया। जोर से बोल उठीं, भारतवर्ष की नारियाँ कभी भी अज्ञ नहीं है। परदेश (पाश्चात्य को वे परदेश कहती) की नारियों के मुहँ से कभी किसी ने ऐसी बात सुनी है ?
मद्रास में अपने एक भाषण में निवेदिता ने कहा था -भारत की महिलाएँ अशिक्षित तथा अत्यचारित है- यह अभियोग किसी भी प्रकार सत्य नहीं है। अन्यान्य देशों की अपेक्षा यहाँ नारियों के प्रति अत्याचार कम हैं। भारतीय नारियों का महान चरित्र उसके राष्ट्रीय जीवन की एक सर्वश्रेष्ठ सम्पदा है। आधुनिकता की दृष्टि से वे अज्ञ अवश्य है, अर्थात अधिकांश उनमें से कोई भी लिख नहीं सकती। अक्षर परिचय भी बहुत कम स्त्रियों को ही है; किन्तु इसी वजह से क्या वे अशिक्षित है ? यदि वही हो, तो जो माताएँ, बड़ी माताएँ और नानियाँ अपने बच्चे-बच्चियों को रामायण,महाभारत, पुराण एवं नाना प्रकार के उपाख्यान सुनाती है, वे सब अशिक्षित कही जाएँगी तथा वे ही यदि यूरोपीय उपन्यास तथा कुछ व्यर्थ की अंग्रेजी पत्रकाएं पढ़ पातीं,तो अशिक्षित नहीं कही जातीं। यह स्वर क्या परस्पर विरुद्ध नहीं लगता है ?
'वास्तव में अक्षर ज्ञान संस्कृति का परिचय नहीं है। भारतीय जीवन के साथ परिचित सभी लोग जानते है कि भारतीय पारिवारिक जीवन की मूल बात है- महत्व, भद्रता, परिच्छिन्नता, धर्मशिक्षा, हृदय तथा मन का उत्कर्ष और प्रत्येक भारतीय नारी के अन्दर ये गुण विद्यमान है। अतएव मातृभाषा नहीं पढ़ पाने तथा अपने हस्ताक्षर न कर पाने पर भी समालोचकगण जिस दृष्टि से उन्हें देखते हैं........... उस यथार्थ दृष्टि में भारतीय नारियाँ अपेक्षाकृत बहुत अधिक शिक्षित हैं।'
मद्रास में अपने एक भाषण में निवेदिता ने कहा था -भारत की महिलाएँ अशिक्षित तथा अत्यचारित है- यह अभियोग किसी भी प्रकार सत्य नहीं है। अन्यान्य देशों की अपेक्षा यहाँ नारियों के प्रति अत्याचार कम हैं। भारतीय नारियों का महान चरित्र उसके राष्ट्रीय जीवन की एक सर्वश्रेष्ठ सम्पदा है। आधुनिकता की दृष्टि से वे अज्ञ अवश्य है, अर्थात अधिकांश उनमें से कोई भी लिख नहीं सकती। अक्षर परिचय भी बहुत कम स्त्रियों को ही है; किन्तु इसी वजह से क्या वे अशिक्षित है ? यदि वही हो, तो जो माताएँ, बड़ी माताएँ और नानियाँ अपने बच्चे-बच्चियों को रामायण,महाभारत, पुराण एवं नाना प्रकार के उपाख्यान सुनाती है, वे सब अशिक्षित कही जाएँगी तथा वे ही यदि यूरोपीय उपन्यास तथा कुछ व्यर्थ की अंग्रेजी पत्रकाएं पढ़ पातीं,तो अशिक्षित नहीं कही जातीं। यह स्वर क्या परस्पर विरुद्ध नहीं लगता है ?
'वास्तव में अक्षर ज्ञान संस्कृति का परिचय नहीं है। भारतीय जीवन के साथ परिचित सभी लोग जानते है कि भारतीय पारिवारिक जीवन की मूल बात है- महत्व, भद्रता, परिच्छिन्नता, धर्मशिक्षा, हृदय तथा मन का उत्कर्ष और प्रत्येक भारतीय नारी के अन्दर ये गुण विद्यमान है। अतएव मातृभाषा नहीं पढ़ पाने तथा अपने हस्ताक्षर न कर पाने पर भी समालोचकगण जिस दृष्टि से उन्हें देखते हैं........... उस यथार्थ दृष्टि में भारतीय नारियाँ अपेक्षाकृत बहुत अधिक शिक्षित हैं।'
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