Thursday 1 March 2018

निवेदिता - एक समर्पित जीवन - 23

यतो धर्म: ततो जय:

निवेदिता कन्या पाठशाला के लिए

स्वामी विवेकानन्द निवेदिता को इस देश की नारियों में शिक्षा का विस्तार करने हेतु भारतवर्ष लाये थे। निवेदिता जब बागबाजार (कलकत्ता) के वार्ड नं. 16 बोसपाड़ा लेंन में बालिका विद्यालय खोलने के लिए तत्पर हुई तो उनके लिए स्वामीजी का उत्साह असीम था। बलराम बसु के घर पर निवेदिता द्वारा विद्यालय खोलने के विषय पर एक सभा का आयोजन किया गया। वहाँ श्रीरामकृष्ण के गृही-भक्तों में उपस्थित थे - (वचनामृतकार) मास्टर महाशय सुरेश दत्त, हरमोहनबाबू आदि। निवेदिता ने भाषण में अपने विद्यालय की योजनाओं के बारे में सबको अवगत कराया तथा अपने अनुरोध किया कि वे अपनी बालिकाओं को 'निवेदिता कन्या पाठशाला' में पढ़ने के लिए भेजें। स्वामीजी कब आकर  पीछे बैठ गए थे किसी को पता नहीं चला था। अचानक देखा - वे हँसते-हँसते सबको धक्का दे रहे है और कह रहे है - उठो,उठो। केवल बालिकाओं के पिता होने से ही नहीं चलेगा। राष्ट्रीय भाव से उनकी शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था में तुम सबको सहयोग करना होगा। उठकर आवेदन के लिए उतर दो। बोलो - हाँ हम लोग राजी है। हम लोग तुम्हे अपनी बालिकाएँ देगें। कोई भी साहस करके कुछ बोल नहीं रहे थे। अन्त में स्वामीजी ने हरमोहनबाबू से जोरपूर्वक कहा - तुमको देना ही होगा। और उनकी तरफ से खुद ही कह दिया - मिस नॉबल, यह व्यक्ति अपनी पुत्री तुम्हें सौंपना चाहता है। निवेदिता स्वामीजी को देखकर और उनकी उत्साहित वाणी सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई। आनदपूर्वक ताली बजाकर नाचने लगीं, मानो एक छोटी बालिका हों



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