यतो धर्म: ततो जय:
निवेदिता की कविताएं
निवेदिता चाहती थीं कि भारतवासी अपनी मातृभूमि की पूजा करें व प्रेम के सूत्र में बद्ध हों। अनेक बार इस विषय पर उन्होंने मार्मिक भाषण दिए, अनेक बार कविताओं के माध्यम से अपने भाव अभिव्यक्त किये। निम्नलिखित शब्दों में उन्होंने अपनी आराधना अर्पित की है:
भारत भूमि! हमारे देवताओं की वेदी
हमारे सन्तों के पदपथ,
हमारे घरों की नीवें,
हमारे वीरों की धूलि!
तुम,भारत के जल,
कमल के वाहन,
आनन्द व शीतलता के स्त्रोत,
सारी पवित्रता के प्रतिक,
मन्दिर की पावनता,
प्रलयकालीन अग्नि के शमनकर्ता!
भारत,जिसकी अम्बर मंदिर-मण्डप है,
पर्वत हैं जिसके स्तम्भ,
जिसके वन उपहार दें,
धाराएँ जिसे प्रेम करें
तथा दक्षिणी पवन चँवर दुलाएं,
इनमें, जल-थल की हम उपासना करते हैं!
पशुओं की पुकार,
सूखे धान के खेतों की पुकार,
जलधाराओं की भूमि की पुकार:
लौट आओ! लौट आओ!
दूर्वा का आशीष : बलवान बनो,बलवान बनो !
ऊँचे वृक्षों की आशीष : अपना मुकुट पहनो !
ऊँचे स्वप्न देखो!
ओ तुम सब जिनकी आशा अपनी भूमि पर है,
व भूमि की आशा तुम में है !
सारा राष्ट्र उत्तर देता है: हम एक हैं !
निवेदिता की कविताएं
भारत भूमि! हमारे देवताओं की वेदी
हमारे सन्तों के पदपथ,
हमारे घरों की नीवें,
हमारे वीरों की धूलि!
तुम,भारत के जल,
कमल के वाहन,
आनन्द व शीतलता के स्त्रोत,
सारी पवित्रता के प्रतिक,
मन्दिर की पावनता,
प्रलयकालीन अग्नि के शमनकर्ता!
भारत,जिसकी अम्बर मंदिर-मण्डप है,
पर्वत हैं जिसके स्तम्भ,
जिसके वन उपहार दें,
धाराएँ जिसे प्रेम करें
तथा दक्षिणी पवन चँवर दुलाएं,
इनमें, जल-थल की हम उपासना करते हैं!
पशुओं की पुकार,
सूखे धान के खेतों की पुकार,
जलधाराओं की भूमि की पुकार:
लौट आओ! लौट आओ!
दूर्वा का आशीष : बलवान बनो,बलवान बनो !
ऊँचे वृक्षों की आशीष : अपना मुकुट पहनो !
ऊँचे स्वप्न देखो!
ओ तुम सब जिनकी आशा अपनी भूमि पर है,
व भूमि की आशा तुम में है !
सारा राष्ट्र उत्तर देता है: हम एक हैं !
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