यतो धर्म: ततो जय:
छात्राओं से वात्सल्य
(2)
लड़कियों के लिए निवेदिता कन्या पाठशाला मायके के समान थी, जहाँ उन्हें अपनी मातृतुल्य शिक्षिका से भरपूर प्यार तथा ममत्वपूर्ण व्यवहार मिलता। रोज लड़कियाँ उस समय की उत्सुकता से राह देखती, जब उन्हें स्कूल जाना होता तथा अपनी प्यारी दीदी से उनकी मुलाकात होती। निवेदिता भी रोज ही पाठशाला के प्रवेशद्वार पर खड़ी रहती और आती हुई लड़कियों की और देखकर स्नेहपूर्ण स्वर में कहती - आ गयीं, मेरी प्यारी बच्चियाँ आ गयीं।
(3)
पारिवारिक अड़चनों के कारण जब कुछ लड़कियाँ निवेदिता की कन्या पाठशाला में नहीं आ पाती या पालक उन्हें नियमित पाठशाला में नहीं भेज पाते तो निवेदिता खुद उन लड़कियों के घर जातीं तथा यथासमय उनकी अड़चनों को दूर करने का प्रयत्न करतीं, लड़कियों को पाठशाला में नियमित भिजवाने की व्यवस्था करती। गिरिबाला घोष जब पाठशाला में जाना प्रारम्भ किया तो वह 22 साल की थी। वह एक विधवा थी तथा उसे एक पुत्र भी था। वह अपने चाचा के यहाँ बागबाजार में रहती थी। वह पाठशाला में जाने के लिए अति इच्छुक थी पर अड़ोस-पड़ोस की कटु आलोचनाओं के कारण उसने पाठशाला जाना छोड़ दिया था। एक दिन उसकी दादी माँ गंगा स्नान हेतु जा रही थी। स्कूल के पास से गुजरते हुए उन्होंने पाठशाला की प्रार्थना सुनी, जिसे लड़कियाँ मधुर स्वरों में गा रही थी। उन्हें वह प्रार्थना बहुत अच्छी लगी। इससे प्रभावित होकर उनका शिक्षा के प्रति अनुकूल मत बना और उन्होंने गिरिबाला को पाठशाला में जाने की अनुमति दी तथा इसकी व्यवस्था भी की| गिरिबाला स्कूल की गाड़ी से ही पाठशाला जाने लगी। पर उसके घर तक जो गली जाती थी वह सँकरी होने के कारण गाड़ी घर तक नहीं जा पाती थी। अतः गिरिबला को पैदल ही घर तक जाना पड़ता तथा स्कूल जाने के लिए गली के मुँहाने खड़ी गाड़ी तक जाना पड़ता। एक दिन उसे थोड़ी देर हो गयी और गाड़ी उसे छोड़कर चली गयी। पाठशाला में वह अनुपस्थित रही। निवेदिता को यह अनियमितता बिल्कुल पसन्द नहीं थी। स्कूल में किसी लड़की का अनुपस्थित रहना उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। अतः उसने गाड़ीवान को गिरिबला के घर तक गाड़ी ले जाने की विशेष अनुमति दे दी।
छात्राओं से वात्सल्य
(2)
लड़कियों के लिए निवेदिता कन्या पाठशाला मायके के समान थी, जहाँ उन्हें अपनी मातृतुल्य शिक्षिका से भरपूर प्यार तथा ममत्वपूर्ण व्यवहार मिलता। रोज लड़कियाँ उस समय की उत्सुकता से राह देखती, जब उन्हें स्कूल जाना होता तथा अपनी प्यारी दीदी से उनकी मुलाकात होती। निवेदिता भी रोज ही पाठशाला के प्रवेशद्वार पर खड़ी रहती और आती हुई लड़कियों की और देखकर स्नेहपूर्ण स्वर में कहती - आ गयीं, मेरी प्यारी बच्चियाँ आ गयीं।
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पारिवारिक अड़चनों के कारण जब कुछ लड़कियाँ निवेदिता की कन्या पाठशाला में नहीं आ पाती या पालक उन्हें नियमित पाठशाला में नहीं भेज पाते तो निवेदिता खुद उन लड़कियों के घर जातीं तथा यथासमय उनकी अड़चनों को दूर करने का प्रयत्न करतीं, लड़कियों को पाठशाला में नियमित भिजवाने की व्यवस्था करती। गिरिबाला घोष जब पाठशाला में जाना प्रारम्भ किया तो वह 22 साल की थी। वह एक विधवा थी तथा उसे एक पुत्र भी था। वह अपने चाचा के यहाँ बागबाजार में रहती थी। वह पाठशाला में जाने के लिए अति इच्छुक थी पर अड़ोस-पड़ोस की कटु आलोचनाओं के कारण उसने पाठशाला जाना छोड़ दिया था। एक दिन उसकी दादी माँ गंगा स्नान हेतु जा रही थी। स्कूल के पास से गुजरते हुए उन्होंने पाठशाला की प्रार्थना सुनी, जिसे लड़कियाँ मधुर स्वरों में गा रही थी। उन्हें वह प्रार्थना बहुत अच्छी लगी। इससे प्रभावित होकर उनका शिक्षा के प्रति अनुकूल मत बना और उन्होंने गिरिबाला को पाठशाला में जाने की अनुमति दी तथा इसकी व्यवस्था भी की| गिरिबाला स्कूल की गाड़ी से ही पाठशाला जाने लगी। पर उसके घर तक जो गली जाती थी वह सँकरी होने के कारण गाड़ी घर तक नहीं जा पाती थी। अतः गिरिबला को पैदल ही घर तक जाना पड़ता तथा स्कूल जाने के लिए गली के मुँहाने खड़ी गाड़ी तक जाना पड़ता। एक दिन उसे थोड़ी देर हो गयी और गाड़ी उसे छोड़कर चली गयी। पाठशाला में वह अनुपस्थित रही। निवेदिता को यह अनियमितता बिल्कुल पसन्द नहीं थी। स्कूल में किसी लड़की का अनुपस्थित रहना उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। अतः उसने गाड़ीवान को गिरिबला के घर तक गाड़ी ले जाने की विशेष अनुमति दे दी।
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