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अंग्रेज और भारतीय
अंग्रेज और भारतीय
निवेदिता बोधगया से लौटी हैं। साथ में सपत्नीक जगदीशचन्द्र बसु तथा अन्य लोग भी है। गया स्टेशन से निवेदिता तथा बसुगण आदि को अलग-अलग ट्रेन से जाना था। बसु की ट्रेन पहले आयी| दौड़-धूप करने पर भी कोई डिब्बा खाली नहीं मिला। अन्ततोगत्वा वे लोग एक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में चढ़ने लगे। उस डिब्बे में दो अंग्रेज थे। बसु आदि को भारतीय होने के कारण किसी भी तरह उस डिब्बे में चढ़ने नहीं दे रहे थे। साथी लोग स्टेशन मास्टर के पास दौड़े। वहाँ लौटने पर उन्होंने देखा कि निवेदिता उन अंग्रेजो को जोर-जोर से डाँट खाकर उन्होंने दरवाजा खोल दिया। किसी तरह अन्तिम क्षणों में बसु आदि ट्रेन में चढ़े। ट्रेन चलने लगी। फिर निवेदिता का क्रोध कम नहीं हुआ।
इसी बीच उनकी ट्रेन भी आ गयी। उस ट्रेन में प्रथम श्रेणी के केवल दो डिब्बे थे। एक डिब्बे में एक भारतीय पुरुष था तथा दूसरे में एक अंग्रेज महिला। साथियों ने उन्हें अंग्रेज महिला वाले डिब्बे में चढ़ाना चाहा। निवेदिता में इस पर भारी आपत्ति की तथा जिस डिब्बे में भारतीय पुरुष था, उसी डिब्बे में चढ़ी। दरवाजा खोलकर भीतर जाते ही भारतीय सज्जन उठ खड़े हुए तथा अपने हुक्के को हटाकर बैठने की जगह बना दी। ट्रेंन रवाना होते समय निवेदिता ने अपने साथियों से कहा - बर्बर अंग्रेज और सभ्य भारतीय में कितना अंतर है क्या यह तुमने देखा?
इसी बीच उनकी ट्रेन भी आ गयी। उस ट्रेन में प्रथम श्रेणी के केवल दो डिब्बे थे। एक डिब्बे में एक भारतीय पुरुष था तथा दूसरे में एक अंग्रेज महिला। साथियों ने उन्हें अंग्रेज महिला वाले डिब्बे में चढ़ाना चाहा। निवेदिता में इस पर भारी आपत्ति की तथा जिस डिब्बे में भारतीय पुरुष था, उसी डिब्बे में चढ़ी। दरवाजा खोलकर भीतर जाते ही भारतीय सज्जन उठ खड़े हुए तथा अपने हुक्के को हटाकर बैठने की जगह बना दी। ट्रेंन रवाना होते समय निवेदिता ने अपने साथियों से कहा - बर्बर अंग्रेज और सभ्य भारतीय में कितना अंतर है क्या यह तुमने देखा?
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