श्री लखेश्वर चन्द्रवंशी जी के सहयोग से ....
राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता इन दोनों शब्दों का प्रयोग आजकल सामान्य हो चले हैं। हिंदी शब्दकोष में भी इसके लगभग सामान अर्थ हैं। शब्दकोश के अनुसार, 'राष्ट्रवाद' वह सिद्धांत है जिसमें अपने राष्ट्र के हितों को सबसे अधिक प्रधानता दी जाती है, जबकि 'राष्ट्रवादी' वह है जो अपने राष्ट्र या देश के कल्याण का पक्षपाती हो। राष्ट्रीयता का तात्पर्य है अपने राष्ट्र के विशेष गुण अथवा अपने राष्ट्र के प्रति उत्कट प्रेम।
आजकल राजनीतिक दल और मीडिया के लोग किसी व्यक्ति के पद विशेष पर "राष्ट्रीय" शब्द का प्रयोग करते दिखाई देते हैं। जैसे राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय महासचिव आदि। कांग्रेस जो भारत की स्वतंत्रता के लिए बनी थी, आजकल "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस" के नाम से जानी जाती है। वर्तमान कांग्रेस में 'राष्ट्रीयता' कितनी है, सब जानते हैं। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या महासचिव के हृदय में 'राष्ट्रीयता' हो न हो उसके पद और नाम के आगे 'राष्ट्रीय' लगा दिया जाता है। 'राष्ट्रीय' का अर्थ 'अखिल भारतीय' नहीं है, इसलिए किसी व्यक्ति या संगठन के नाम के पहले 'राष्ट्रीय' तभी लगाना चाहिए जब वह राष्ट्र के लिए समर्पित हो, अन्यथा 'अखिल भारतीय' ही कहना ही उचित होगा।
'राष्ट्रीयता' के मर्म को स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, डॉ. हेडगेवार, डॉ. आंबेडकर, माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारीसिंह दिनकर आदि महापुरुष समझते थे। इसलिए उनके संवाद, उनके संदेश, उनकी कविताएं "राष्ट्रीयता" के परिचायक थे। इसलिए राष्ट्र को समर्पित संगठन के रूप में डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नामक संगठन की स्थापना की।
जब राष्ट्रीयता शब्द अपनेआप में पूर्ण है तो राष्ट्रवादी शब्द आया कहां से? मार्क्सवाद की तर्ज पर समाजवाद, मनुवाद जैसे शब्द तो मार्क्सवादियों ने गढ़े। बाद में हमारे हिंदी के प्रगतिवादी लेखकों और मीडिया ने राष्ट्रीयता की भावना जो प्रत्येक देशवासी के लिए ऊर्जा, प्रेरणा और समर्पण के संस्कार जगाती है, के स्थान पर 'राष्ट्रवादी" शब्द का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। राष्ट्र के प्रति प्रेम व समर्पण की भावना वाले को "राष्ट्र का पक्षपाती" के रूप में 'राष्ट्रवादी' बना दिया गया। यह शब्द इतना अधिक प्रचलित हो गया कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के रूप में राजनीतिक दल भी बन गया। 'राष्ट्रीयता' यह अपने राष्ट्र के प्रति भक्तिभाव को प्रगट करता है, जबकि 'राष्ट्रवाद' शब्द प्रगतिवादी लेखकों की देन है।
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