Friday 10 March 2017

राष्ट्र व्यक्ति सम्बन्ध

राष्ट्र है तो व्यक्ति है

व्यक्ति का जीवन, उसका ध्येय सबकुछ देश पर निर्भर करता है। जिस राष्ट्र में वह रहता है, उस राष्ट्र की संस्कृति, धर्म, उसका इतिहासबोध उसके जीवन की उन्नति के लिए प्रेरणादायी होता है। यदि हम सीरिया, ईराक या पाकिस्तान में पैदा होते तो हमारा जीवन कुछ और होता। हम भारत में जन्में हैं इसलिए हमारे जीवन का उद्देश्य उनसे अलग है। हमारी सोच, विचार और व्यवहार अन्य देश के नागरिकों से अलग है। क्योंकि हमारे राष्ट्र की संस्कृति, समाज की व्यवस्था और परिवार के संस्कारों में हमारा पोषण होता है। राष्ट्र के कारण राज्य हैं, राज्य के अन्दर समाज है, समाज के अन्दर परिवार है और परिवार में व्यक्ति पोषित होता है। इसलिए कहा जाता है, "देश हमें देता है सबकुछ हम भी तो कुछ देना सीखें।"

बड़ी ईकाई राष्ट्र है और राष्ट्र की सबसे छोटी ईकाई व्यक्ति है। सबसे छोटी ईकाई व्यक्ति ही समाज और राष्ट्र की शक्ति होती है। इसलिए मनुष्य के चरित्र निर्माण पर जोर दिया जाता है। हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि राष्ट्र शाश्वत है जबकि मनुष्य मरता है। इसलिए राष्ट्र का महत्त्व मनुष्य से अधिक है। यही कारण है कि देशभक्तों ने महान राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।       

पश्चिमी राष्ट्रवाद और भारत का राष्ट्रीय उद्देश्य  

यह सत्य नहीं है कि यूरोप, अफ्रीका, लतीनी अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में राष्ट्रवाद समाप्त हो रहा है। बल्कि पश्चिम में अपने राष्ट्र के हित के लिए वहां की जनता अधिक सजग और मुखर दिखाई देते हैं। पश्चिम जगत में तो अपने देश के हित के लिए दूसरे देश को समाप्त कर देने की तो होड़ लगी है। तेल संग्रह करने, व्यापार को बढ़ाने या फिर परमाणु शक्ति को बढ़ाने के लिए पश्चिमी देश सदैव आगे रहते हैं। जबकि भारत के सम्बन्ध में ऐसा नहीं कहा जा सकता। हमारे यहां राजनीतिक दल आपसी जीत-हार के लिए अधिक उत्सुक और प्रयत्नशील रहते हैं। दूसरा, अपने हित के लिए अन्य देशों को हानी पहुंचाना यह कभी भारत का उद्देश्य रहा ही नहीं। इतिहास साक्षी है कि भारत ने कभी भी दूसरे देशों में आक्रमण नहीं किया, ही किसी देश की भूभाग को कब्जा करने की कभी चेष्टा की।


पश्चिम का राष्ट्रवाद भोग, व्यापार और विस्तारवाद पर आधारित है, जबकि भारत का राष्ट्रीय उद्देश्य अध्यात्म केन्द्रित है। भारत विश्व के कल्याण की कामना करता है। इसलिए भारत के इतिहास, धर्म,

संस्कृति, शिक्षा और जीवन मूल्यों पर अध्ययन करना आज की आवश्यकता है। इसलिए मीडिया भारत की जनमानस को बदलने की क्षमता रखता है, उसके कर्ता-धर्ता, सम्पादकों और पत्रकारों की यह

सामूहिक जिम्मेदारी है कि वह भारत को समझें, भारत को जानें और देश की जनता को भ्रम के मकड़जाल से निकालें। 'भारत राष्ट्र' को कभी भी 'वाद' का विषय न बनाएं, समस्यायों का समाधान तलाशें।

इसी में राष्ट्र का हित है, सबका हित है।

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