Courtesy : Mananeeya Rekha Didi
"जीवनकाल जीवन के लिए अपने प्रयास द्वारा संतुष्टि अर्जित करने का अवसर
मात्र है; ऐसे में, जीवन के प्रयास का विषय और प्रयोजन ही एक सफल जीवन और
एक सार्थक जीवन के बीच का अंतर होता है।
सफल जीवन आवश्यक नहीं की सार्थक हो पर सार्थक जीवन निश्चित रूप से अपने
प्रयास की संतुष्टि को अर्जित करने में सफल होता है और यही सही अर्थों में
उसकी उपलब्धि भी ; इसलिए जीवन के प्रयास के विषय का निर्धारण का आधार क्या
है यह जीवन पर्यन्त किये जाने वाले प्रयास के परिणाम और स्वयं जीवन के
निष्कर्ष की दृष्टि से निर्णायक होता है।
असफलता, संघर्ष व् चुनौती यह सभी विकल्प केवल पुर्सार्थ के प्रयास के लिए
उपलब्ध होते हैं, स्थायित्व की नियति में तो केवल कुंठा ही होती है, ऐसे
में, आवांछित परिणाम के डर से अगर प्रयास ही न किया जाये तो परिस्थितियों
में परिवर्तन संभव ही नहीं।
प्रयास के क्रम में परिस्थितियों से संघर्ष भी स्वाभाविक है, ऐसी
परिस्थितियों से निपटने के लिए व्यक्तिगत प्रतिभा से कहीं अधिक मनोवृति
की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि, ऊर्जा का उपयोग किस
उद्देश्य से करना है यह निर्णय ऊर्जा और अवसर की उपयोगिता सिद्ध करने के
दृष्टि से निर्णायक होता है।
प्रयास की असफलता से आलोचकों का जन्म होना भी स्वाभाविक है, ऐसे में,
दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों की आलोचना से विचलित होकर हताश बैठ जाने से
कहीं अधिक अपने असफलता के अनुभव से सीख लेकर प्रयास को नए सीरे से शुरू करना श्रेयस्कर होगा,
ऐसा इसलिए, क्योंकि जितना वृहद् प्रयास का उद्देश्य होगा उतना ही विस्तृत
व् व्यापक उसका प्रभाव भी, ऐसे में, अपनी सीमित सोच के निष्कर्ष द्वारा
अपनी कुंठित मानसिकता को सार्वजानिक रूप से प्रदर्शित करने वालों के प्रति
प्रतिक्रिया करने से कहीं बेहतर अपने प्रयास के माध्यम से उन सभी संशयों को
समाप्त करना ही होगा। प्रयास का उद्देश्य कभी भी किसी को कुछ सिद्ध करने
का नहीं बल्कि स्वयं के लिए संतुष्टि अर्जित करना होना चाहिए। क्योंकि
ऊर्जा को संशय के स्पष्टीकरण में व्यर्थ करने से संभव है की इसके लिए
जीवन काल पर्याप्त न पड़े पर कोई भी सतत व् समर्पित प्रयास अपने परिणाम
द्वारा सभी संभावित संशयों को समाप्त करने का सामर्थ रखता है।
किसी भी क्रिया का महत्व उसकी प्रतिक्रिया द्वारा निर्धारित होता है,
इसलिए, अगर व्यक्ति अपनी प्रतिक्रियाओं को विनियमित करना सीख ले तो उसके
जीवन में उसे विचलित करने वाली कई अनावश्यक क्रियाएं स्वतः ही महत्वहीन व्
प्रभावहीन हो जाएंगी ; पर इसके लिए विवेक की परिपक्वता निर्णायक होगी।
जिसके सोच की परिधि जितनी विस्तृत होगी उसके प्रयास का कार्यक्षेत्र उतना
विशाल होगा ; महत्व आवश्यकताओं द्वारा उत्प्रेरित प्रयास का होना चाहिए जो
अपनी निष्ठां और सततता से परिणाम सुनिश्चित करने का सामर्थ रखे पर जिनके
लिए महत्व परिणाम की सफलता का होता है उनके लिए प्रयोग की असफलता और
संघर्षों की चुनौती से विचलित होना स्वाभाविक है। ऐसे में, हम अपने जीवन
में क्या महत्वपूर्ण मानते हैं और क्यों यह व्यक्तिगत विवेक के निर्धारण का विषय है !"
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