स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का मूल पाठ
मेरे प्यारे देशवासियों,
आजादी के इस पावन पर्व पर सवा सौ करोड़ देशवासियों को, विश्व में फैले हुए सभी भारतीयों को लाल किले की प्राचीर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आजादी का यह पर्व, 70वां वर्ष एक नया संकल्प, नई उमंग, नई ऊर्जा, राष्ट्र को नई ऊंचाईयों पर ले जाने का संकल्प पर्व है। आज हम जो आजादी की सांस ले रहे हैं, उसके पीछे लक्षावधि महापुरूषों का बलिदान है, त्याग और तपस्या की गाथा है। जवानी में फांसी के फंदे को चूमने वाले वीरों की याद आती है। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, पंडित नेहरू अनगिनत महापुरूष, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अविरत संघर्ष किया और उसी का नतीजा है कि आज हमें स्वराज में आजादी की सांस लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
भारत एक चिर पुरातन राष्ट्र है। हजारों साल का इतिहास है, हजारों साल की सांस्कृतिक विरासत है। वेद से विवेकानन्द तक, उपनिषद् से उपग्रह तक, सुदर्शन चक्रधारी मोहन से ले करके चरखाधारी मोहन तक, महाभारत के भीम से ले करके भीमराव तक, एक हमारी लम्बी इतिहास की यात्रा है, विरासत है। अनेक उतार-चढ़ाव इस धरती ने देखें हैं। अनेक पीढ़ियों ने संघर्ष किया है। अनेक पीढ़ियों ने मानवजाति को महामूल्य देने के लिए तपस्याएं की है।
भारत की उम्र 70 साल नहीं है, लेकिन गुलामी के कालखंड के बाद हमने जो आजादी पाई, एक नई व्यवस्था के तहत हमने देश को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। यह यात्रा 70 साल की है। सरदार वल्लभभाई पटेल ने देश को एक किया, अब हम सबका दायित्व है देश को श्रेष्ठ बनाए। एक भारत, श्रेष्ठ भारत का सपना पूरा करने का हम लोगों को निरंतर प्रयास करना चाहिए।
भाइयों-बहनों, स्वराज ऐसे नहीं मिला है। जुल्म बेशुमार थे, लेकिन संकल्प अडिग थे। हर हिन्दुस्तानी आजादी के आंदोलन का सिपाही था। हरेक का जज्बा था, देश आजाद हो। हो सकता है हर किसी को बलिदान का सौभाग्य न मिला हो, हो सकता है हर किसी को जेल जाने का सौभाग्य न मिला हो, लेकिन हर हिंदुस्तानी संकल्पबद्ध था। महात्माजी का नेतृत्व था, सशस्त्र क्रान्तिकारियों के बलिदान की प्रेरणा थी और तब जाकर के स्वराज प्राप्त हुआ है। लेकिन अब स्वराज्य (Self-Governance) को सुराज (Good-Governance) में बदलना, ये सवा सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प है। अगर स्वराज बलिदान के बिना नहीं मिला है, तो सुराज भी त्याग के बिना, पुरुषार्थ के बिना, पराक्रम के बिना, समर्पण के बिना, अनुशासन के बिना संभव नहीं होता है और इसलिए सवा सौ करोड़ देशवासियों के सुराज (Good-Governance) के संकल्प को आगे बढ़ाने के लिए अपनी-अपनी विशेष जिम्मवारियों की ओर प्रतिबद्धता से आगे बढ़ना होगा।
पंचायत हो या Parliament हो, ग्राम प्रधान हो या प्रधानमंत्री हो, हर किसी को, हर Democratic Institution को सुराज्य (Good-Governance) की ओर आगे बढ़ने के लिए अपनी जिम्मेवारियों को निभाना होगा, अपनी जिम्मेवारियों को परिपूर्ण करना होगा और तब जा करके भारत सुराज के सपने को पाने में और अधिक देर नहीं करेगा।
ये बात सही है देश के सामने समस्याएं अनेक हैं, लेकिन ये हम न भूलें कि अगर समस्याएं हैं तो इस देश के पास सामर्थ्य भी है और जब हम सामर्थ्य की शक्ति को लेकर के चलते हैं, तो समस्याओं से समाधान के रास्ते भी मिल जाते हैं। और इसलिए भाइयों-बहनों, भारत के पास अगर लाखों समस्याएं हैं तो सवा सौ करोड़ मस्तिष्क भी हैं जो समस्याओं का समाधान करने का सामर्थ्य भी रखते हैं।
भाइयों-बहनों, एक समय था, हमारे यहां सरकारें आक्षेपों से घिरी रहती थीं, लेकिन अब वक्त बदल चुका है। आज सरकार आक्षेपों से घिरी नहीं है, लेकिन अपेक्षाओं से घिरी हुई है। और जब अपेक्षाओं से घिरी रहती है तब, ये इस बात का संकेत होता है कि जब आशा हो, भरोसा हो, उसी की कोख से अपेक्षाएं जन्म लेती हैं और अपेक्षाएं सुराज की ओर जाने की गति को तेज करती हैं, नए प्राण पूरती हैं और संकल्पों की पूर्ति नित्य, निरंतर होती रहती है। इसलिए मेरे भाइयों-बहनों हम लोगों के लिए इस सुराज की यात्रा.. आज जब मैं लालकिले की प्राचीर से आपसे बात कर रहा हूं तो बहुत स्वाभाविक है कि सरकार क्या कर रही है, देश के लिए क्या हो रहा है, देश के लिए क्या होना चाहिए, इन बातों की चर्चा होना बड़ा स्वाभाविक है। मैं भी बहुत बड़ा लंबा सरकार का कार्यकाज का हिसाब आपके सामने रख सकता हूं, बहुत सारी बातें आपके सामने प्रस्तुत कर सकता हूं।
दो साल के कार्यकाल में अनगिनत Initiatives, अनगिनत काम लेकिन अगर उसका ब्यौरा देने जाऊंगा मैं, तो पता नहीं हफ्ते भर मुझे लालकिले की प्राचीर से बोलते रहना पड़ेगा। और इसलिए मैं उस मोह के बजाए आज, कार्य की नहीं, इस सरकार की कार्य-संस्कृति के प्रति आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। कभी-कभी कार्य का तो लेखा-जोखा करना सरल होता है, लेकिन कार्य-संस्कृति को, जब तक गहराई में न जाएं, जानना, समझना, पहचानना सामान्य मानव के लिए सरल नहीं होता है।
और इसलिए मेरे प्यारे भाइयों-बहनों, मेरे प्यारे देशवासियों, आज मैं सिर्फ नीति की नहीं, नीयत की भी और निर्णय की भी बात कर रहा हूं। भाइयों-बहनों, सिर्फ दिशा नहीं, एक व्यापक दृष्टिकोण का मसला है। सिर्फ रूपरेखा नहीं, ये रूपांतर का संकल्प है। ये लोक आकांक्षा, लोकतंत्र और लोकसमर्थन की त्रिवेणी धारा है। ये मति भी है ये सहमति भी है, ये गति भी है और प्रगति का अहसास भी है।
और इसलिए मेरे प्यारे देशवासियों, मैं आज जब सुराज्य की बात करता हूं तब सुराज का सीधा-सीधा मतलब है- हमारे देश के सामान्य से सामान्य मानव के जीवन में बदलाव लाना है। सुराज का मतलब है शासन सामान्य मानव के प्रति संवेदनशील हो, जिम्मेवार हो, और जन सामान्य के प्रति समर्पित हो। और तब जा करके Good Governance पर बल देना होता है, हर किसी के दायित्व को टटोलते रहना पड़ता है, responsibility और accountability ये उसकी जड़ में होनी चाहिए, वहीं से रस-कस प्राप्त होना चाहिए। और इसलिए भाइयों-बहनों, शासन संवेदनशील होना चाहिए।
हमें याद है, कि वो भी एक दिन थे जब किसी बड़े अस्पताल में जाना हो तो कितने दिनों तक इंतजार करना पड़ता था। AIIMS में लोग आते थे, दो-दो, तीन-तीन दिन बिताते थे, तब जा करके कब उनको जांचा-परखा जाएगा उसका तय होता था। आज उन सारी व्यवस्थाओं को हम बदल पाएं हैं। Online registration होता है, Online डॉक्टर की appointment मिलती है, तय समय पर patient आए तो उसका काम शुरू हो जाता है। इतना ही नहीं, उसके सारे medical records भी उसको Online उपलब्ध होते हैं। और हम इसको आरोग्य के क्षेत्र में देशव्यापी culture के रूप में विकसित करना चाहते हैं। आज सरकार के बड़े-बड़े 40 से अधिक अस्पतालों में इस व्यवस्था को किया है लेकिन इसका मूलमंत्र शासन संवेदनशील होना चाहिए। भाइयों-बहनों, शासन उत्तरदायी होना चाहिए। अगर शासन उत्तरदायी नहीं होता है, तो जन सामान्य की समस्याएं ऐसे की ऐसे लटकी रहती हैं। बदलाव कैसे आता है, technology तो है, लेकिन एक समय था rail tickets...हिंदुस्तान के सामान्य मानव को rail tickets से संबंध आता है, रेल से संबंध आता है, गरीबों का संबंध आता है। पहले आधुनिक technology से एक मिनट में सिर्फ दो हजार tickets निकल पाते थे, और वो भी जो उस जमाने में जिसने देखा होगा, वो चक्कर घूमता रहता था, पता नहीं कब website खुलेगी। आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि आज एक मिनट में 15 हजार रेल टिकट मिलना संभव हो गया है।
एक Responsible Government सामान्य मानव की आवश्यकता और अपेक्षाओं के लिए किस प्रकार के कदम उठाती है, सरकार में जवाबदेही होनी चाहिए। सारे देश में एक वर्ग है, खास करके मध्यम वर्ग, उच्च-मध्यम वर्ग, उसको जब मिलो, कभी-कभी वो पुलिस से ज्यादा Income Tax वालों से परेशान हुआ करता है। ये स्थिति मुझे बदलनी है और मैं लगा हूं, बदल के रहूंगा। लेकिन एक समय था, जब सामान्य ईमानदार नागरिक अपना income-tax में पैसा देता था और बेचारा carefully दो रुपए ज्यादा ही दे देता था। उसको लगता था भई पीछे से कोई तकलीफ न हो। लेकिन एक बार सरकारी खजाने में धन आ गया तो refund लेने के लिए उसको चने चबाने पड़ते थे, सिफारिश लगानी पड़ती थी और महीनों तक नागरिक के हक का पैसा सरकारी खजाने से जाने में टालमटोल हुआ करता था। आज हमने online-refund देने की व्यवस्था की। हफ्ते-दो हफ्ते में, तीन हफ्तों में आज refund मिलना शुरू हो गया। जो आज मुझे टीवी पर सुनते होंगे, उनको भी यह बात ध्यान में आती होगी, हां भाई, मेरा refund तो सीधा-सीधा मुझे... मैंने कोई application नहीं की, आ गया। तो यह उत्तरदायी, जवाबदेही ये सारे जो प्रयास होते हैं, उनका परिणाम है।
शासन में सुराज के लिए पारदर्शिता को बल देना उतना ही महत्वपूर्ण है। आप जानते हैं! आज समाज में पहले से एक विश्वव्यापी संपर्क संबंध धीरे-धीरे सहज बनता जा रहा है। मध्यम वर्ग के व्यक्ति अपना पासपोर्ट हो...पहला जमाना था साल में करीब 40 लाख – 50 लाख पासपोर्ट के लिए अर्जियां आती थी। आजकल दो-दो करोड़ लोग पासपोर्ट के लिए apply करते हैं। भाइयों-बहनों, पहले पासपोर्ट पाने में अगर सिफारिश नहीं है, तो चार-छह महीने तो यूं ही जांच-पड़ताल में चले जाते थे। हमने उस स्थिति को बदला और आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि करीब हफ्ते-दो हफ्ते में नागरिकों के हक में जो पासपोर्ट है, उसको पहुंचा दिया जाता है और पारदर्शिता, कोई सिफारिश की जरूरत नहीं, कोई टालमटोल की जरूरत नहीं। आज मैं कह सकता हूं कि सिर्फ 2015-16 में पौने दो करोड़ पासपोर्ट, इतने कम समय में देने का, हमने काम किया है।
सुराज में, शासन में दक्षता भी होनी चाहिए, efficiency होनी चाहिए और इसलिए हमारे यहां पहले किसी company को अपना कोई कारखाना लगाना है, कारोबार करना है तो apply करते है। सिर्फ registration का काम था, वो देश के लिए कुछ करना चाहता था। लेकिन छह-छह महीने तो यूं ही निकल जाते थे। भाइयों-बहनों अगर दक्षता लाई जाए तो उसी सरकार, वो ही नियम, वो ही मुलाजिम, वो ही company registration का काम, आज 24 घंटे में करने के लिए सज्ज हो गए हैं और कर रहे हैं। अकेले पिछली जुलाई में 900 से ज्यादा ऐसे Registration का काम उन्होंने कर दिया।
भाइयों-बहनों सुराज के लिए सुशासन भी जरूरी है। Good governance भी जरूरी है और उस Good governance के लिए हमने जो कदम उठाए....मैंने पिछली बार यहां लाल किले से कहा था कि हम Group 'c' और Group 'd' सरकार के इन पदों को इंटरव्यू से बाहर कर देंगे। Merit के आधार पर उसको Job मिल जाएगा। हमने करीब-करीब 9,000 पद ऐसे खोज कर निकाले हैं और जिसमें हजारों-लाखों लोगों की भर्ती होनी है। अब इन 9,000 पदों पर कोई इंटरव्यू प्रक्रिया नहीं होगी। मेरे नौजवानों को इंटरव्यू देने के लिए खर्चा नहीं करना पड़ेगा, जाना नहीं पड़ेगा, सिफारिश की जरूरत नहीं पड़ेगी। भ्रष्टचार और दलालों के लिए रास्ते बंद हो जाएंगे और इस काम को लागू कर दिया गया है।
भाइयों-बहनों, देश....एक समय था कि सरकार कोई योजना घोषित करे, सिर्फ इतना बता दे कि ये करेंगे। तो सामान्य मानव संतुष्ट हो जाता था। उसको लगता था चलिए अब होगा कुछ। एक समय आया जब योजना का drawing आए नहीं, तब तक लोग अपेक्षा करते थे भई बताओ, plan बताओ। फिर समय आया कि जरा बजट बताओ? लोग मांगते थे। आज 70 साल में देश का मन भी बदला है, वो योजनाओं की घोषणा से संतुष्ट नहीं होता है, plan दिखाने से संतुष्ट नहीं होता है, उसको budget provision कर दिया तो वो मानने को तैयार नहीं है। वो तब मानता है, जब धरती पर चीजें उतरती हैं, तब मानता है और धरती पर हम पुरानी रफ्तार से चीजों को नहीं उतार सकते। हमें अपनी काम की रफ्तार को तेज करना पड़ेगा, गति को और आगे बढ़ाना पड़ेगा, तब जा करके हम कहते हैं।
हमारे देश में ग्रामीण सड़क...हर गांव के नागरिक की अपेक्षा रहती है कि उसको एक पक्की सड़क मिले। काम बहुत बड़ा है, अटल बिहारी वाजपेयी जी ने विशेष ध्यान दे करके इसको शुरु किया था। और बाद में भी सरकार ने इसको continue किया, आगे बढ़ाया। हमने उसमें गति देने का प्रयास किया है। पहले एक दिन में 70-75 किलोमीटर का ग्रामीण सड़क का काम हुआ करता था, आज उस रफ्तार को तेज करके हम प्रतिदिन 100 किलोमीटर की ओर ले गए हैं। ये गति आनेवाले दिनों में सामान्य मानव की अपेक्षाओं को पूर्ण करेंगी।
हमारे देश में ऊर्जा और उसमें भी Renewable Energy इस पर हमारा बल है। एक समय था, जो हमारे देश में इतने सालों में आजादी के बाद wind energy में काम हुआ, पवन ऊर्जा में काम हुआ, पिछले एक साल के भीतर-भीतर करीब-करीब 40 प्रतिशत उसमें हमने वृद्धि की है, ये है उसकी गति का मायना। Solar Energy...पूरा विश्व Solar Energy की ओर बल दे रहा है। हमने 116% बढ़ोत्तरी की है। ये बहुत बड़ा, ये incremental change नहीं है, ये बहुत बड़ा high-jump है। हम चीजों को उसके quantum की दृष्टि से हम आगे बढ़ाना चाहते हैं। हमारे देश में हमारी सरकार बनने के पहले अगर ऊर्जा का उत्पादन है, तो ऊर्जा पहुंचाने के लिए transmission line भी चाहिए और अच्छी transmission line की व्यवस्था चाहिए। हमारी सरकार बनने के पहले के दो साल, हमारे पूर्व के दो साल, एक दिन में, एक साल में करीब 30-35 हजार कि.मी. Transmission line डाली जाती थी। आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि आज ये काम करीब-करीब 50 हजार किलोमीटर हमने पहुंचाया है। ये गति बढ़ाने का काम किया है। अगर पिछले 10 साल का Rail line commissioning की बात है और commissioning का मतलब होता है, ट्रेन चलने योग्य हो जाना, सारे trial पूरे हो जाना। पहले, 10 साल 1500 किलोमीटर का हिसाब था और आज मुझे दो साल में 3500 किलोमीटर का काम करने में हम सफल हुए है। ये गति को हम आगे बढ़ा रहे हैं।
भाइयों-बहनों आज आधार कार्ड को सरकारी योजनाओं के साथ जोड़ करके direct benefit के लिए जो भी leakages उसको रोक करके, काम करने पर हम बल दे रहे हैं। पहले की सरकार में, सरकारी योजनाओं को आधार से जोड़ने में करीब 4 करोड़ लोगों को जोड़ा जा पाया था। आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि 4 करोड़ पर काम वहां हुआ था, आज हमने 70 करोड़ नागरिकों को आधार और सरकारी योजनाओं के साथ जोड़ने का काम पूरा कर दिया है और जो बाकी हैं उनको भी पूरा करने का काम चल रहा है।
हमारे यहां मध्यम वर्ग का मानव हो, सामान्य मानवी हो उसको आज जैसे कार घर में हो उसको प्रतिष्ठा का विषय माना जाता है। एक वक्त था कि घर में गैस का चूल्हा हो तो उसको एक standard माना जाता था समाज में एक status के रूप में माना जाता था। देश आजाद होने के 60 साल के दरम्यान, ये रसोई गैस करीब 14 करोड़ लोगों को 60 साल में मिला था। भाइयों-बहनों, मुझे बड़ा संतोष है कि एक तरफ 60 साल में 14 करोड़ रसोई गैस के connections और हमने 60 सप्ताह में चार करोड़ नए लोगों को रसोई गैस के connections दिए। कहां 60 साल के 14 करोड़ और कहां 60 सप्ताह के 4 करोड़। ये गति है जो सामान्य मानव की जिन्दगी में Quality of Life में आज बदलाव लाने के लिए संभव हुआ है।
हमने कानूनों के जंजालों की सफाई का भी काम आरंभ किया है। कानूनों का बोझ सरकार को भी, न्यायपालिका के लिए भी और नागरिक के लिए भी उलझनें पैदा करता रहता था। हमनें खोजबीन करके करीब 1700 ऐसे कानून निकाले हैं। पौने 1200 करीब already Parliament के द्वारा उसको निरस्त कर दिये हैं और बाकियों को भी निरस्त करने कि दिशा में जाकर के उस सफाई अभियान को भी हम चलाना चाहते हैं।
भाइयों-बहनों, कभी-कभी देश में एक स्वभाव बन गया था कि ये काम तो हो सकता है, ये काम तो नहीं हो सकता है। भई अभी तो नहीं होगा, कभी होगा तो पता नहीं। निराशा ये हमारा मिजाज बनता जा रहा था। इसको Breakthrough करना, शासन में ऊर्जा भरना और जब कोई सिद्धि दिखती है, तो उत्साह भी बढ़ता है, ऊर्जा भी बढ़ती है, संकल्प भी बड़ा Sharp हो जाता है और परिणाम भी निकट नजर आने लग जाते हैं।
भाइयों-बहनों, जब हमने प्रधानमंत्री जनधन योजना, एक प्रकार से असम्भव काम था, असंभव काम था। इतने सालों से बैंक थी, सरकारें थीं, राष्ट्रीयकरण हो चुका था लेकिन सामान्य व्यक्ति देश की अर्थव्यवस्था मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बन पाता था। भाइयों-बहनों, 21 करोड़ परिवारों को, 21 करोड़ नागरिकों को जनधन योजना में जोड़करके असंभव, संभव हुआ और ये असंभव को संभव ये सरकार के खजाने में, ये सरकार की Credit का विषय नहीं है, ये सवा सौ करोड़ देशवासियों ने किया है और इसलिए मैं इस काम को करने के लिए मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का नमन करता हूं।
आज हिन्दुस्तान के गांवों में नारी गौरव का अभियान...उसका एक महत्वपूर्ण पहलू है। खुले में शौच बंद होना चाहिए, गांव में Toilet बनना चाहिए। पहली बार जब मुझे लालकिले की प्राचीर से आप सबके दर्शन करने का सौभाग्य मिला था। उस दिन मैंने अपनी भावना को व्यक्त किया था कि मेरा देश ऐसे कैसे हो सकता है। आज मैं कह सकता हूं कि इतने कम समय में हिन्दुस्तान के गांवों में दो करोड़ से ज्यादा शौचालय बन चुके हैं। 70 हजार से अधिक गांव आज खुले में शौच जाने की परम्परा से मुक्त हो चुके हैं। सामान्य जीवन में बदलाव लाने की दिशा में हम काम कर रहे हैं।
इसी लालकिले की प्राचीर से मैंने पिछले साल कहा था कि एक हजार दिन में हम उन 18 हजार गांवों में जहां बिजली नहीं पहुंची है...आजादी के 70 साल होने जा रहे हैं, उन्होंने अब तक बिजली नहीं देखी है। 18वीं शताब्दी में जीने के लिए वो मजबूर हुआ करते थे। हमने बीड़ा उठाया कि अब असंभव को संभव करने का संकल्प किया। और आज मुझे खुशी के साथ कहना है, हजार दिन में अभी तो आधे भी नहीं हुए हैं, आधे से भी काफी दूर है, उसके बाद भी 18 हजार गांवों में से दस हजार गांवों में आज बिजली पहुंच गई है। और मुझे बताया गया कि उनमें से कई गांव हैं, जो आज पहली बार टीवी पर ये भारत की आजादी के जश्न को वहां बैठे-बैठे देख रहे हैं। मैं उन गांवों को भी आज यहां से विशेष शुभकामनाएं देता हूं।
भाइयों-बहनों, आपको हैरानी होगी। दिल्ली से सिर्फ तीन घंटे की दूरी पर हम यात्रा करें, तो तीन घंटे लगेंगे, दिल्ली से तीन घंटे की दूरी पर हाथरस इलाके में एक गांव नगला-फटेला। ये नगला-फटेला, तीन घंटे लगते हैं पहुंचने में, तीन घंटे। लेकिन बिजली को पहुंचने में 70 साल लग गए मेरे भाइयों-बहनों 70 साल लग गए और इसलिए हम उन कामों पर, हम किस कार्य-संस्कृति से काम कर रहे हैं, इसका मैं परिचय करा रहा हूं।
भाइयों-बहनों, LED बल्ब विज्ञान में अनुसंधान करनेवालों ने हर नागरिक की भलाई के लिए उसको विकसित किया। लेकिन भारत में साढ़े तीन सौ रुपये में LED बल्ब बिकता था। कौन खरीदेगा? और सरकार को भी लगता था कि भई ठीक है, यह तो हो गया तो हो गया, कोई काम करता होगा, बात ऐसे नहीं चलती। अगर LED बल्ब से हिंदुस्तान के सामान्य जीवन में बदलाव लाया जा सकता है, पर्यावरण में बदलाव लाया जा सकता है, भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है, तो फिर सरकार को उसमें कोशिश करनी चाहिए। सरकार का स्वभाव रहता है, जहां टांग न अड़ानी चाहिए, वहां अड़ा देता है और जहां अड़ानी चाहिए वहां नहीं अड़ाता, भाग जाता है। यह स्थिति, यह कार्य-संस्कृति बदलने का हमने प्रयास किया है और इसलिए साढ़े तीन सौ रुपये में बिकने वाला बल्ब, सरकारी intervention का परिणाम यह हुआ कि आज हम 50 रुपये में वो बल्ब बांट रहे हैं। कहां साढ़े तीन सौ और कहां पचास! मैं यह पूछना नहीं चाहता हूं कि यह रूपये कहां जाते थे, लेकिन 13 करोड़ बल्ब अब तक बांटे गए हैं। हमारे देश की राजनीति लोकरंजक बन गई है, लोकरंजक अर्थनीति ही बन चुकी है। अगर सरकारी खजाने से उसको हर बल्ब के पीछे तीन सौ रुपया दिया गया होता, तो वाह-वाही होती कि यह अच्छा प्रधानमंत्री है, हमारी जेब में तीन सौ रुपया डाल दिया। लेकिन हमने 50 रुपये में बल्ब दे करके उसके हजारों रुपये बचाने में मदद की है। 13 करोड़ बल्ब बंट चुके हैं। 77 करोड़ बल्ब बांटने का संकल्प है। और मैं आज देशवासियों को कहना चाहता हूं कि आप भी अपने घर में LED बल्ब लगाइए, सालभर का ढ़ाई सौ, तीन सौ, पांच सौ रुपया बचाइए और देश की ऊर्जा बचाइए, देश के पर्यावरण को बचाइए। जिस समय 77 करोड़ LED बल्ब लग जाएंगे, हिंदुस्तान की 20 हजार मेगावाट बिजली बच जाएगी और जब 20 हजार मेगावाट बिजली बचेगी, मतलब करीब-करीब सवा लाख करोड़ रुपया बच जाएगा। भाइयों-बहनों आप अपने घर में एक LED बल्ब लगा करके, देश के सवा लाख करोड़ रूपये बचा सकते हैं। 20 हजार मेगावट बिजली बचा करके, हम Global warming के खिलाफ लड़ाई लड़ सकते हैं। हम देश के पर्यावरण की रक्षा के प्रयासों में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं और यह सामान्य मानव दे सकता है और इसलिए भाइयों-बहनों हमने उस दिशा में काम किया है।
असंभव से संभव काम आपको मालूम है! हम ऊर्जा पर, Petroleum product पर, विश्व के अन्य देशों पर निर्भर हैं। और इसके कारण लम्बे काल के agreement हुए हैं, ताकि हमें लम्बे अरसे तक निश्चित दाम से चीजें मिलती रहीं। Qatar के साथ, गैस का हमारा agreement 2024 तक का है। लेकिन दाम इतने है कि हमें भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महंगा पड़ रहा है। हमारी विदेश नीति के संबंधों का परिणाम यह आया कि Qatar के साथ फिर बात की, जो agreement हो चुका था, जो Qatar का हक था 2024 तक हम उस भाव से गैस लेने के लिए बंधे हुए थे, हमने उनसे वार्ता की और मैं आज संतोष के साथ कहता हूं, असंभव भी संभव हो गया और उन्होंने अपने दाम को re-negotiate किया और हिंदुस्तान के खजाने से 20 हजार करोड़ रुपया बच जाएगा। 20 हजार करोड़ रुपया वो लेने के हकदार थे, लेकिन हमारे संबंधों का रूप बड़ा है, हमारी नीतियों का स्वरूप बड़ा है कि जिसके कारण हम उसको कर पाए हैं।
चाबहार का port जो मध्य एशिया के साथ जोड़ने की एक अहम कड़ी है सब सरकारों में लगातार बातें होती रहीं, पुन: प्रयास होते रहे। आज मुझे असंभव कार्य को संभव करते देख संतोष हो रहा, जब ईरान, अफ़गनिस्तान और हिंदुस्तान मिल करके चाबहार port के निर्माण के लिए कदम उठाने की दिशा में नवकर योजना के साथ आगे बढ़ते हैं तब असंभव काम संभव हो जाता है।
मेरे भाइयों-बहनों, एक बात जिसको इस समय मैं आपसे कहना चाहूंगा, जो सामान्य मानव से जुड़ी हुई है, वो है महंगाई। ये बात सही है कि पहले की सरकार में Inflation rate 10 प्रतिशत को भी पार कर गया था। हमारे लगातार कदमों के कारण Inflation rate हमने 6 percent से ऊपर जाने नहीं दिया है। इतना ही नहीं अभी तो हमने रिजर्व बैंक के साथ समझौता किया है कि 4% two -plus(+2)- minus(-2) के साथ, Inflation को control करने की दिशा में रिजर्व बैंक कदम उठाए। Inflation और Growth के balance की जो चर्चाएं होती थी, उस से ऊपर उठकर के आगे आने की दिशा में काम करे लेकिन इसके बावजूद भी, 2 साल देश में अकाल रहा, सब्जियों के दाम पर अकाल का प्रभाव तुरंत होता है, मार्केट की कमी का प्रभाव होता है। उसके कारण कुछ दिक्कतें जरूर आईं। 2 साल के अकाल के कारण दाल के उत्पादन की गिरावट भी चिंता का विषय़ बना। लेकिन भाइयों-बहनों, इसके बावजूद भी अगर जिस प्रकार से पहले महंगाई बढ़ती थी अगर उसी रफ्तार से बढ़ी होती, तो पता नहीं मेरे देश के गरीब का क्या होता, इसको रोकने में हमने भरपूर कोशिश की है लेकिन फिर भी, ये सरकार अपेक्षाओं से घिरी सरकार है। आप की मेरे देशवासियों, अपेक्षाएं स्वाभाविक हैं लेकिन मैं उस दिशा में प्रयत्न करने में कोई कोताही बरतने नहीं दूंगा। जितना प्रयास मुझसे होगा, मैं करता रहूंगा और गरीब की थाली को महंगी नहीं होने दूंगा।
मेरे प्यारे भाइयों-बहनों, ये देश गुरू गोविंद सिंहजी की 350वीं जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है। देश के लिए बलिदान की गाथा, सिक्ख गुरुओं की परंपरा, ये देश कैसे भूल सकता है और जब गुरू गोविंद सिंहजी की 350वीं जयंती हम मना रहे हैं तब, गुरू गोबिंद सिंह जी ने एक बात बड़े अच्छे ढंग से कही थी, गुरू गोबिंद सिंह जी कहते थे जिस हाथ ने कभी सेवा न की हो, जिस हाथ में कभी कोई काम न हुआ हो, जो हाथ मजदूरी से मजबूत न हुए हो, जिन हाथों को काम करते-करते, हाथ में गाठें न बन गई हों, उस हाथ को मैं पवित्र हाथ कैसे मान सकता हूं, ये गुरू गोविंद सिंहजी कहते थे। आज जब गुरु गोविंद सिंहजी की 350वीं जयंती हम मना रहे हैं तब, मैं मेरे किसानों को याद करता हूं, उनसे बढ़कर पवित्र हाथ किसका हो सकता है? उससे बढ़कर पवित्र हृदय किसका हो सकता है? उसके बिना पवित्र मकसद किसका हो सकता है? मैं मेरे किसान भाइयों को 2 साल के अकाल के बावजूद भी, देश के अन्न के भंडार भरने के लिए उन्होंने जो निरंतर प्रयास किया, उसके लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूं।
सूखे की स्थिति बदली, इस बार वर्षा अच्छी हो रही है, कहीं-कहीं पर अधिक वर्षा के कारण तकलीफ भी हुई है। जिन राज्यों को, जिन नागरिकों को तकलीफ हुई है, भारत सरकार संकट के समय पूरी तरह उनके साथ है। लेकिन मेरे किसान भाइयों को आज मैं विशेष रूप से अभिनंदन करना चाहता हूं, जब हमारे देश में दलहन की कमी महसूस कर रहे हैं, हमारा किसान दूसरे crop पर चला गया था, लेकिन जहां भारत के सामान्य मानव की दाल की मांग बढ़ी, आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि इस बार बुआई में मेरे किसानों ने दाल की बुआई डेढ़ गुना कर दी है, दाल के संकट को मिटाने के लिए, उससे रास्ता खोजने में मेरा किसान आगे आया है। और मैं किसान का अभिनंदन करता हूं हमने दाल के लिए MSP तय किया है। हमने दाल के लिए बोनस निकाला है। हमने दाल के द्वारा उसको purchase करने की व्यवस्था का सुप्रबंधन किया है। और इसलिए अब किसान को दाल के लिए भी हम प्रोत्साहित कर रहे हैं और उसका लाभ भी बहुत बड़ा होगा।
भाइयों-बहनों, मैं जब कार्य-संस्कृति की बात कर रहा था, तो ये बात साफ है कि हम चीजों को टुकड़ों में नहीं देखते हैं। हम चीजों को एक समग्रता में देखते हैं, integrated देखते हैं, और integrated चीजों के तहत, सिर्फ agriculture ले लीजिए, हमने किस प्रकार से ऐसी कार्य-संस्कृति को विकसित किया है, जिसकी एक पूरी chain कितना बड़ा परिणाम दे सकती है।
हमने सबसे पहले ध्यान केन्द्रित किया इस धरती माता की तबीयत के लिए, जमीन की सेहत के लिए, Soil Health Card, macro-nutrition, micro-nutrition की चिन्ता और किसान को ये समझाया कि तुम्हारी जमीन में ये कमी है, ये अच्छाइयां हैं, तुम्हारी जमीन इस फसल के लिए योग्य है, इस फसल के लिए योग्य नहीं है। और किसानों ने धीरे-धीरे Soil Health Card के जरिए अपना plan करना शुरू किया और जिन-जिन लोगों ने plan किया है वो मुझे बताते हैं कि साहब हमारा खर्चा करीब-करीब 25% कम हो रहा है। और हमारे उत्पादन में 30% वृद्धि नजर आ रही है। अभी ये संख्या कम है लेकिन आने वाले दिनों में जैसे-जैसे बात पहुंचेगी, ये बात आगे बढ़ेगी। किसान को जमीन है, अगर उसको पानी मिल जाए, तो मेरे देश के किसान की ताकत है, वो मिट्टी में से सोना पैदा कर सकता है। ये ताकत मेरे देश के किसान में है और इसलिए हमने जल प्रबंधन पर बल दिया है, जल सिंचन पर बल दिया है, जल संरक्षण पर बल दिया है। एक-एक बूंद का उपयोग किसान के काम कैसे आए, पानी का महात्मय कैसे बढ़े, per drop-more crop, Micro-irrigation इसको हम बल दे रहे हैं। 90 से ज्यादा सिंचाई की योजनाएं आधी-अधूरी ठप्प पड़ी थीं, हमने बीड़ा उठाया है सबसे पहले उन योजनाओं को पूरा करेंगे। और लाखों धरती को सिंचन का लाभ मिले, उस दिशा में काम करेंगे। हमने किसान की input-cost कम करने के लिए, क्योंकि किसान को आजकल बिजली की भी जरूरत पड़ती है, पानी चाहिए तो बिजली चाहिए, बिजली महंगी पड़ती है, हमने solar pump की ओर बड़ा काम उठाया है, बड़ी मात्रा में उठाया है, उसके कारण किसान का input-cost कम होने वाला है, recurring expense कम होने वाला है, और solar pump घर में होने के कारण बिजली भी अपनी, सूरज भी अपना, खेत भी अपना, खलिहान भी अपना। मेरा किसान खुदहाल-खुशहाल भी होगा। अब तक 77 हजार solar pump बांटने में हमने सफलता पाई है।............
आवाज दुनिया के हर कोने में जानी चाहिए –
भारत माता की जय, भारत की जय।
वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम।
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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