Sunday, 7 February 2016

अार्दश कार्यकार्ता

यह कहने से काम नहीं चलेगा कि मेरे पास समय नहीं है। यदि हम इसकी आवश्यकता को समझकर ठीक प्रकार से प्रयत्न करेंगे, तो पर्याप्त समय निकल सकेगा। अपने चारों ओर इतना विशाल समाज फैला पड़ा है, जिसके बीच हमें प्रयत्न करना है। यदि हम कहें कि हमारे पास समय नहीं, तो यह हमारे लिये शोभा देने वाली बात नहीं। हममें से प्रत्येक, अपने दैनिक जीवन के विभिन्न व्यवहार करते समय समाज के साथ सम्पर्क स्थापित करता ही है। हमें इन सब व्यवहारों के बीच अपने कार्य का ध्यान बनाये रखना होगा।

प्रत्येक व्यक्ति की जो कुछ गुण-संपदा है, उसका भली प्रकार आकलन कर समाजहित में उसे प्रयुक्त करने की उसे प्रेरणा देनी चाहिए। व्यक्तियों के प्रत्यके व्यवहार में से कुछ न कुछ राष्ट्रहित का विचार निकालते बनना चाहिए। यहाँ तक कि जिन्हें अवगुण कहा जाता है, उनका भी राष्टहित में प्रयागे करने की कला मालूम होनी चाहिए।

जीवन में कभी कुछ माँगना नहीं। देशभक्ति का व्यापार क्या करना? समष्टिरूप परमात्मा को राष्ट्र के रूप में सेवा के लिये सामने व्यक्त देखकर, अपनी सम्पूर्ण शक्ति और बुद्धि उसके चरणों में अर्पण कर उसकी कृपा के ऊपर अपना जीवन चलाना है।

कृत्रिम अनुशासन, रूखी-सूखी पेड़ की टहनी के समान निष्प्राण और टूटनेवाला होता है। जीवमान, चैतन्यमय व्यक्ति की स्वेच्छा से स्वीकृत और समष्टि रूप अहंकार से ही ओतप्रोत जो अनुशासन है, वही संगठित रूप से खड़ा रह सकता है। वही चिरंजीव होता है। जो अमृत-रस से भरा है, उसे मारने की जगत् में किसी की शक्ति नहीं। वह अपने बोझ से भी कभी नहीं टूटता।

व्यक्ति-स्वातन्त्र्य का अर्थ मनमौजी होना कदापि नहीं। जो सबको मान्य हो और हितकारी हो उसी मर्यादा के अन्दर अपनी स्वतंत्रता का उपभोग प्रत्येक को करना होगा। स्वेच्छाचारिता के ढंग से चाहे जैसा उपभोग करते रहने की अनुमति उसे नहीं दी जा सकती।

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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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