1. कार्यपद्धति से शरीर, मन और बुद्धि एक ही दिशा में कार्य करने लगती हैं। इसमें से राष्ट्रभक्ति और मातृभक्ति का आविर्भाव होता है और वह संपूर्ण समाज में व्याप्त होती है। यह कार्य अत्यंत कठिन है।
2. पद्धति कोई भी हो, उसकी सफलता के लिये अच्छे लोग चाहिए। ऐसे लोग समाज में खड़े करने होंगे, जिनके हृदय में समाज के लिये आत्मीयता है, कल्याण है। जो समाज के दुःख से व्यथित होते हैं, जिनके अंदर अपने स्वार्थ को नियंत्रित करने की षक्ति है और उसके लिये शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाकर भी समाजहित के कार्य में संलग्न हैं। ऐसे सब लोगों की शक्ति समाज की आवश्यकतानुसार सूत्रबद्ध ढंग से सम्पूर्ण राष्ट्र में प्रयुक्त हो सके, ऐसा अनुशासन व शिक्षा देने की व्यवस्था करना अनिवार्य है। समाज में ऐसे कार्यकर्ताओं के निर्माण का मूलगामी कार्य हम अपनी शाखाओं द्वारा कर रहे हैं। व्यक्तियों में जितना सामंजस्य उत्पन्न होगा, उतना ही प्रगति की ओर अग्रसर होना संभव होगा। माना कि इस कार्य में समय लगेगा, परन्तु कोई तत्काल कठोर कार्यवाही से लाभ नहीं होगा। व्यक्ति की अन्तःप्रेरणा जगाकर ऐसे कार्यों के लिये प्रेरित करने का अपना यह कार्य है।
3. कार्य के दो स्वरूप हैं। एक, दैनंदिन शाखा का है। चैबीस घण्टों में हम जो कुछ संघकार्य करते हैं, उसका हिसाब-किताब करने का स्थान, संघ-स्थान है। कुछ अनुशासन आदि सीखने और एक-दूसरे के साथ कंघे से कंधा भिड़ा कर खेलने-कूदने; व्यायाम करने से समग्र समाज के सम्बन्घ में अन्तःकरण में जो अभेदवृत्ति निर्माण होती है, उसे प्राप्त करने का वह स्थान है। शाखा कार्य का दूसरा हिस्सा है अतिरिक्त बचे हुए समय का उपयोग अपने चारों ओर के समाज-बंधुओं के बीच जाने के लिये करना और समाज में से व्यक्ति चुन-चुनकर अपने साथ लाने का प्रयास करना। प्रत्येक को अपने समय का उपयोग इन दोनों कार्यों के लिये करना चाहिए। लोगों के साथ निकटतम संपर्क के द्वारा आत्मीयता का वायुमण्डल बढ़ानेवाला कार्य चैबीसों घण्टे चलते रहना चाहिए। इस प्रकार से हम लोग प्रयत्न करें, तो मैं समझता हूँ कि थोड़े ही दिनों में और पर्याप्त मात्रा में ऐसी पवित्र शक्ति के रूप में हम खड़े हो जाएंगे, जिसकी आवाज समाज में सब लोग सुनते हैं। देश, राष्ट्र और समाज के हित के लिये यह आवश्यक है।
2. पद्धति कोई भी हो, उसकी सफलता के लिये अच्छे लोग चाहिए। ऐसे लोग समाज में खड़े करने होंगे, जिनके हृदय में समाज के लिये आत्मीयता है, कल्याण है। जो समाज के दुःख से व्यथित होते हैं, जिनके अंदर अपने स्वार्थ को नियंत्रित करने की षक्ति है और उसके लिये शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाकर भी समाजहित के कार्य में संलग्न हैं। ऐसे सब लोगों की शक्ति समाज की आवश्यकतानुसार सूत्रबद्ध ढंग से सम्पूर्ण राष्ट्र में प्रयुक्त हो सके, ऐसा अनुशासन व शिक्षा देने की व्यवस्था करना अनिवार्य है। समाज में ऐसे कार्यकर्ताओं के निर्माण का मूलगामी कार्य हम अपनी शाखाओं द्वारा कर रहे हैं। व्यक्तियों में जितना सामंजस्य उत्पन्न होगा, उतना ही प्रगति की ओर अग्रसर होना संभव होगा। माना कि इस कार्य में समय लगेगा, परन्तु कोई तत्काल कठोर कार्यवाही से लाभ नहीं होगा। व्यक्ति की अन्तःप्रेरणा जगाकर ऐसे कार्यों के लिये प्रेरित करने का अपना यह कार्य है।
3. कार्य के दो स्वरूप हैं। एक, दैनंदिन शाखा का है। चैबीस घण्टों में हम जो कुछ संघकार्य करते हैं, उसका हिसाब-किताब करने का स्थान, संघ-स्थान है। कुछ अनुशासन आदि सीखने और एक-दूसरे के साथ कंघे से कंधा भिड़ा कर खेलने-कूदने; व्यायाम करने से समग्र समाज के सम्बन्घ में अन्तःकरण में जो अभेदवृत्ति निर्माण होती है, उसे प्राप्त करने का वह स्थान है। शाखा कार्य का दूसरा हिस्सा है अतिरिक्त बचे हुए समय का उपयोग अपने चारों ओर के समाज-बंधुओं के बीच जाने के लिये करना और समाज में से व्यक्ति चुन-चुनकर अपने साथ लाने का प्रयास करना। प्रत्येक को अपने समय का उपयोग इन दोनों कार्यों के लिये करना चाहिए। लोगों के साथ निकटतम संपर्क के द्वारा आत्मीयता का वायुमण्डल बढ़ानेवाला कार्य चैबीसों घण्टे चलते रहना चाहिए। इस प्रकार से हम लोग प्रयत्न करें, तो मैं समझता हूँ कि थोड़े ही दिनों में और पर्याप्त मात्रा में ऐसी पवित्र शक्ति के रूप में हम खड़े हो जाएंगे, जिसकी आवाज समाज में सब लोग सुनते हैं। देश, राष्ट्र और समाज के हित के लिये यह आवश्यक है।
--
The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari) Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org Read Article, Magazine, Book @ http://eshop.vivekanandakendra.org/e-granthalaya Cell : +91-941-801-5995, Landline : +91-177-283-5995 | |
. . . Are you Strong? Do you feel Strength? — for I know it is Truth alone that gives Strength. Strength is the medicine for the world's disease . . . This is the great fact: "Strength is LIFE; Weakness is Death." | |
Follow us on blog twitter youtube facebook g+ delicious rss Donate Online |
No comments:
Post a Comment