Wednesday, 20 January 2016

हिंदूराष्ट्र

1. यह हिंदूराष्ट्र है, इस राष्ट्र का दायित्व हिंदू समाज पर ही है, भारत का दुनिया में सम्मान या अपमान हिंदुओं पर ही निर्भर है, हिंदू-समाज का जीवन वैभवशाली होने से ही इस राष्ट्र का गौरव बढ़ने वाला है, यह निश्चयपूवर्क समझ कर उस सत्य को संघ ने प्रतिपादित किया। इतने वर्षों से हम यह करते आये हैं तथा किसी के मन में इस विषय में कुछ भ्रान्ति रहने का कारण नहीं है।
2. यह बात अति स्पष्ट है कि हमारे राष्ट्रीय अस्तित्व का आघार राजकीय सत्ता कभी नहीं रही। अन्यथा हमारा भी भाग्य उन राष्ट्रों से अच्छा नहीं होता, जो आज केवल अजायबघर की दर्शनीय वस्तु मात्र रह गये हैं। राजकीय सत्ताधारी हमारे समाज के आदर्श कभी नहीं थे। वे हमारे राष्ट्रजीवन के आधार के रूप में कभी स्वीकृत नहीं हुए। संपत्ति एवं सत्ता के ऐहिक प्रलोभनों से ऊपर उठे हुए और सुखी, श्रेष्ठ गुणों से संपन्न एवं एकात्मता से युक्त समाज की स्थापना के लिये अपने को समग्र भावेन समर्पित करनेवाले संत-महात्मा ही इसके पथ-प्रदर्शक रहे हैं। वे धर्मसत्ता का प्रतिनिधित्व करते थे। राजा तो उस उच्चतर नैतिक सत्ता का एक उत्कृष्ट अनुगामी मात्र था। अनेक बार विपरीत परिस्थितियों में एवं आक्रामक शक्तियों के कारण अनेक राज्य सत्ताओं ने धूल चाटी। किन्तु धर्मसत्ता समाज को छिन्न-विच्छिन्न होने से सदैव बचाती रही।
3. प्रत्येक राष्ट्र का अपना विशिष्ट जीवन-संगीत रहता है और उसी की लयतरंग में राष्ट्र प्रगति पथ पर अग्रसर होता है। अपने हिंदूराष्ट्र ने भी अनादि काल से एक अनुपम विशिष्टता को सुरक्षित रखा है। हमारे लिये भौतिक सुख के स्वरूप अर्थात् अर्थ (सम्पत्ति का संचय) और 'काम' (भौतिक तृष्णाओं का समाधान) मनुष्य के एक अंश मात्र हैं। हमारे महान पूर्वजों ने घोषणा की है कि मानव पुरुषार्थ के दो और भी पहलू हैं और वे हैं 'धर्म' एवं 'मोक्ष'। उन्होंने हमारे समाज की रचना इस चतुर्विध प्राप्ति के आधार पर की है। यह चतुर्विघ पुरुषार्थ हैं - अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष। अति प्राचीनकाल से हमारा समाज केवल संपत्ति एवं वैभव के लिये ही प्रसिद्ध नहीं रहा है, वरन् इससे भी अधिक जीवन के उन अन्य दो पहलुओं के लिये प्रसिद्ध रहा है। इसीलिये हम उच्च नैतिक, आध्यात्मिक एवं दार्शनिक लोग कहे जाते हैं, जिन्होंने अपना अंतिम लक्ष्य ईश्वर से सीघे संपर्क करने अर्थात् मोक्ष से कम नहीं रखा।
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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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