Sunday 28 January 2018

स्वामीजी के पत्रों में निवेदिता


यतो धर्म: ततो जय:

स्वामीजी के पत्रों में निवेदिता

                                                                                                                                                                                                                                                                                                            - डा नटवरलाल माथुर

एक बार स्वामीजी के अस्वस्थ होने पर निवेदिता ने जानकारी प्राप्त करनी चाही तो स्वामीजी ने लिखा - वास्तव में मैं चुम्बकीय चिकित्सा पद्धति से क्रमषः स्वस्थ होता जा रहा हूँ, सच बात यह है कि अब मैं अच्छी तरह से हूँ। अपने कार्यों के बारे में निवेदिता को लिखते हैं - मुझे लगता है कि मैं जिस शान्ति और विश्राम की खोज में हूँ, वह मुझे कभी प्राप्त नहीं होगा। फिर भी महामाया दूसरों का कम से कम मेरे स्वदेश का - मेरे द्वारा कुछ कल्याण करा रही हैं, और इस उत्सर्ग के भव का अवलम्बन कर अपने भाग्य के साथ समझौता करना बहुत कुछ सरल है।

निवेदिता ने विद्यालय खोला था। इस पर स्वामीजी ने लिखा - डरने की कोई बात नहीं है, तुम्हारे विद्यालय के लिये धन अवष्य प्राप्त होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है और यदि कदाचित धन न मिले तो हानि ही क्या है ? माँ जानती है कि किस रास्ते से वे ले जाना चाहती है। जिस रास्ते से ले जाये सभी रास्ते समान हैं।

निवेदिता के कार्यों की प्रशंसा में स्वामीजी लिखते हैं कि - तुम्हारे कार्य की सफलता देखकर मैं अति आनन्दित हूँ। यदि हम लोग लगे रहे तो घटनाचक्र का परिवर्तन अवश्यक होगा। प्रिय निवेदिता मेरा अनन्त आशीर्वाद। वाह गुरु, वाह गुरु ! क्षत्रिय रुधिर में तुम्हारा जन्म है। हम लोग भी गैरिक वसन धारण करते हैं। व्रत पालन में जीवन को उत्सर्ग करना ही हमारा आदर्ष है। शक्तिशालिनी बनो। कांचन अथवा और किसी भी वस्तु के अधीन न होना।

सीख देते हुए लिखते हैं - माँ ही सब कुछ जानती है। इस बात को मैं बहुधा कहता रहता हूँ। माँ से प्रार्थना करो। नेता बनना बहुत कठिन है। समुदाय के चरणों में अपना सब कुछ, यहाँ तक कि अपनी सत्ता को भी अर्पण कर देना पड़ता है। निवेदिता के एक पत्र से स्वामीजी को लगा कि वे उनके नवीन मित्रों से द्वेश भाव रखते हैं। इस पर स्वामीजी ने लिखा - कि तुम को यह बात बतला देना चाहत हूँ कि चाहे मुझ में दोश भले ही हो, परन्तु जन्म से ही मुझे मुझ में द्वेश, लोभ तथा कर्तव्य की भावना नहीं है। मैं तो इतना ही जानता हूँ कि जब तक तुम हार्दिकता के साथ माँ के कार्य कतरी रहोगी, माँ तब तक अवष्य ही तुम्हें ठीक मार्ग पर चलाती रहेगी। तुमको जिनको अपना मित्र बनाना है, उनमें से किसी के प्रति मुझे कभी कोई द्वेश-भाव उत्पन्न नहीं हुआ है। मुझे यह डर था कि अपने नवीन मित्रों से मिलने के फलस्वरूप तुम्हारा हृदय जिस ओर झुकेगा, तुम बलपूर्वक दूसरों में उस भावना को प्रविश्ठ करने के लिये सचेश्ट होगी। एक मात्र इसी कारण मैंने कभी कभी किसी विषेश व्यक्ति के प्रभाव से तुम्हें दूर रखने का प्रयास किया था। इसके अतिरिक्त और केाई कारण नहीं था।

निवेदिता के लिये स्वामीजी ने शुभकामनायें इस प्रकार व्यक्त की है - सब प्रकार की शक्तियाँ तुम में उपबद्ध हों, महामाया स्वयं तुम्हारे हृदय तथा भुजाओं में अधिश्ठित हो। अप्रतिहत महाशक्ति तुम्हारे अन्दर जाग्रत हो तथा यदि संभव हो तो इसके साथ ही तुम शान भी प्राप्त करो - यही मेरी प्रार्थना है। यदि श्री रामकृष्ण देव सत्य हों तो जिस प्रकार मेरे जीवन में मार्ग प्रदर्शन किया है, ठीक उसी प्रकार अथवा उससे भी हजार गुना स्पष्ट रूप से तुम्हें भी वे मार्ग दिखाकर अग्रसर करते रहें - विवेकानन्द

(Article published in Kendra Bharati)


 
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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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