Thursday 18 January 2018

निवेदिता - एक समर्पित जीवन - 15


यतो धर्म: ततो जय:

  गोपाल-माँ की सेवा    

गोपाल माँ की व योगिन-माँ श्रीरामकृष्ण की अन्य दो वृद्ध शिष्याएँ थीं। जब श्रीमाँ निवेदिता की विद्यालय का उद्घाटन करने गईं तो ये दोनों भी साथ थीं। उनके विद्यालय के 'महिला विभाग' में योगिन-माँ पढ़ाती भी थीं। इन महिलाओं से प्रेम व सेवा के जिस अपूर्व बन्धन ने निवेदिता को जोड़ा था, वह गोपाल की माँ के साथ उनके सम्बन्ध से व्यक्त होता है। अस्सी वर्ष से अधिक आयु की ये वृद्धा श्रीमाँ के परिवार में एक विदेशी महिला को पहली बार देख कर उद्विग्र हो गई थीं; किन्तु बाद में उन्हें 'नरेंद्र की पुत्री' कहा करती थीं। जब वे 90 वर्ष की हो गई उनसे चला फिरा भी नहीं जाता था, तब 1903 में निवेदिता के ही घर में रहने लगीं। आपनी इस 'प्रिय छोटी सी दादी' तथा 'परमप्रिय सम्पदा' की सेवा के लिए निवेदिता ने एक सेविका नियुक्त कर दी। अपने अनेक कार्यो के बीच में भी उनके पास बैठने व उनकी सेवा करने के लिए निवेदिता सदा ही समय निकाल लेतीं थीं। गोपाल की माँ का देहान्त 6जुलाई 1906  को हुआ और निवेदिता ने उनकी सेवा अन्त तक की।

इन सभी महिलाओं के सम्मान में, जिनसे वे बहुत कम वार्तालाप कर पाती थीं, निवेदिता लिखा -' ......... प्रेम को सप्रेम व विश्वास सहित स्वीकार करने की इन पूर्वी महिलाओं की तत्परता को व्यक्त करने के लिए भाषा की आवश्यकता नहीं थी। केवल सोचती हूँ कि ऐसे ही किसी रूप में भारतीय लोगों की वास्तविक अपूर्व बुद्धि की थाह मिल सकती है।'


To be Continued


 
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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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