Wednesday 24 January 2018

निवेदिता - एक समर्पित जीवन - 15


यतो धर्म: ततो जय:

                                                    माँ काली के प्रति श्रद्धा                                                  

1899 में दुर्गा पूजा तथा काली पूजा मठ में ही सम्पन्न हुई। निवेदिता की पाठशाला काली पूजा के ही दिन शुरू हुई थी। धीरे-धीरे सन्यासियों के समागम से निवेदिता के ह्रदय में माँ काली का स्वरूप स्पष्ट होने  लगा। उसके मन में कालीभाव जाग्रत होने लगा। उसने माँ काली को शिव-शक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया और उस पर निवेदिता की श्रद्धा दृढ होने लगी।

इसी तरह की श्रद्धापूर्ण भावनाओं के कारण निवेदिता कालीघाट के मन्दिर में भाषण देने के लिए तैयार हो गयी।

उनके भाषण का आयोजन 28 मई को शाम 5 बजे आयोजित किया गया था। स्वामीजी ने निवेदिता से कहा कि यदि उनके यूरोपियन मित्र इस अवसर पर उपस्थित रहते हैं, तो उन्हें भी अपने जूते उतारकर फर्श पर नीचे बैठना होगा,ताकि ईश्वर के सामने कोई भी किसी प्रकार का अपवाद नहीं रहे।

ठीक वक्त पर  निवेदिता नंगे पाँव मन्दिर पहुंची। स्वामीजी कुछ अस्वस्थता के कारण इस भाषण में उपस्थित नहीं थे, यह सभा मन्दिर के सभागृह में हो रही थी तथा करीबन 3000 श्रोतागण एक विदेशी महिला को, देशी माँ काली के बारे में सुनने के लिए एकत्र थे। उनका भाषण बहुत ही प्रभावशाली तथा धर्मोत्तेजक भावनाओं को जाग्रत करने वाला रहा और सारे श्रोता इन धार्मिक विचारों के सागर में बहुत गहराई से उतर कर मन्त्रमुग्ध हो उनके भाषण को सुनते रहे। बड़े ही पवित्र भाव के साथ गुरु-गम्भीर आवाज में इन शब्दों के साथ उन्होंने अपना भाषण शुरू किया था -  यह पवित्र देवालय जहाँ हम लोग शाम एक-दूसरे के समक्ष यही, वह जगह है माँ काली के सभी मन्दिरों में पवित्र, कालीघाट मन्दिर का सभागृह| आज तक सैकड़ो दुःखी तथा आर्त भक्तों ने अपने दुःखों के वक्त, जरुरत के समय इस मन्दिर की शरण ली है और माँ की मूर्ति के समक्ष अपने ह्रदय को खोलकर रख दिया है। इसी मन्दिर में कई लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर कृतज्ञातापूर्वक आभार मानने आते हैं। यही वह मन्दिर है जिसका स्मरण माँ काली के भक्तों को अपने अन्तिम समय में भी रहता है। यहाँ पर माँ काली ने अनेक सन्तों तथा अनेक उपासकों को साक्षात दर्शन दिए हैं।

सन्ध्या तथा उषाःकाल के समय माँ काली की धीर गम्भीर पवित्र वाणी इसी मन्दिर से उठकर पूरे विश्व में फैल रही  है जो अपने भक्तों से कह रही है - मेरे बच्चो, मैं हूँ, और हरदम तुम्हारे साथ हूँ, मैं तुम्हारी प्रत्यक्ष माँ ही हूँ।


To be Continued


 
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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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