यतो धर्म: ततो जय:
स्त्री सेवा
स्वामी विवेकनन्द ने 1896 में लन्दन में निवेदिता को बताया कि वे अपने देश की महिलाओं के लिए कुछ करना चाहते थे तथा इसमें वे बड़ी सहायक हो सकती थी। वे जान गई कि यह निमन्त्रण उनके लिए एक पुकार है जो उनके जीवन को बदल देगा, वही हुआ; किन्तु जब निवेदिता ने स्वामीजी से पूछा कि उनकी योजनाएँ क्या थी, तो उनका उतर था 'मैं कभी योजनाएँ नहीं बनाता। वे स्वयं बनती व साकार होती है, मैं केवल कहता हूँ, जागो जागो !' अतः भारतीय महिलाओं सेवा की आवश्यकता हेतु निवेदिता को स्वामी जी ने जगाया, किन्तु पद्धति का चुनाव उन्हीं पर छोड़ा। साधारणतया एक पराजित देश की सेवा के विषय में लोग यही समझते है कि वहाँ के लोगों पर सभी सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपने प्रगतिशील व उच्च विचारों को थोप दिया है। निवेदिता ने स्वयं को ऐसे देश में ऐसे लोगों के बीच में पाया जो राजनीतिक दृष्टि से तो पराधीन थे, किन्तु जिनका समाज स्थिर था तथा जिनकी धार्मिक संस्कृति अत्यन्त विकसित थी। उन्हें यह समझते देर न लगी कि जीवन की भारतीय योजना में परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई होते हुए भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। एक व्यक्ति के जीवन को गढ़ने वाले निर्देशात्मक व निषेधात्मक प्रभाव उसे परिवार से ही मिलते है तथा परिवार की शासिका महिला ही है।
To Be continue
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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
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