Saturday, 27 January 2018

स्वामीजी के पत्रों में निवेदिता


यतो धर्म: ततो जय:

स्वामीजी के पत्रों में निवेदिता

                                                                                                                                                                                                                                                                                                            - डा नटवरलाल माथुर

स्वामी विवेकानन्द ने भगिनी निवेदिता को कई पत्र लिखे। वे अपने पत्रों में निवेदिता को प्रिय निवेदिता, प्रिय कुमारी नोबल, प्रिय मार्गो, प्रिय मार्गट आदि षब्द लिखकर संबोधित करते थे। निवेदिता द्वारा भारत आने की बात पर विवेकानन्द लिखते हैं कि - मैं तुमसे स्पश्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि मुझे विष्वास है कि भारत के काम में तुम्हारा भविश्य उज्ज्वल है। आवष्यकता है स्त्री की पुरुश की नहीं, सच्ची सिंहिनी की जो भारतीयों के लिये विषेशकर स्त्रियों के लिये काम करे। तुम्हारी षिक्षा, सच्चा भाव, पवित्रता, महान् प्रेम, दृढ़ निष्चय और सबसे अधिक तुम्हारे केल्टिक रक्त ने तुमको वैसी ही नारी बनाया है जिसकी आवष्यकता है।

भारत की स्थिति का वर्णन करते हुए विवेकानन्द लिखते हैं - यहाँ कठिनाइयाँ भी बहुत है। यहाँ जो दुख, कुसंस्कार और दासत्व है, उसकी तुम कल्पना नहीं कर सकती। ष्वेत जाति के लोग तुम्हें सनकी समझेंगे और तुम्हारे आचार-व्यवहार को सषंकित दृश्टि से देखते रहेंगे। यहाँ गर्मी भयंकर पड़ती है। नगरों के बाहर विलायती आराम की कोई भी सामग्री नहीं मिल सकती। ये सब बातें होते हुये भी यदि काम करने का साहस करोगी तो हम तुम्हारा स्वागत करेंगे, सौ बार स्वागत करेंगे।

मेरे विशय में यह बात है कि जैसे अन्य स्थानों में वैसे ही मैं यहाँ भी कुछ नहीं हूँ। फिर भी जो कुछ मेरा सामथ्र्य होगा वह तुम्हारी सेवा में लगा दूँगा। अतः इस कार्य क्षेत्र में प्रवेष करने से पहले तुम को अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए। यदि सचमुच आना चाहती हो तो षीघ्र ही चली आओ। नवम्बर से फरवरी के मध्य तक भारत में ठंड रहती है। अधिक भावुकता कार्य में बाधा पहुँचाती है।
''वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि''

यह हमारा मंत्र होना चाहिए। कत्र्तव्य का अंत नहीं है, संसार भी नितान्त स्वार्थ पर है। तुम दुखी न होना - षुभ कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति दुर्गति को प्राप्त नहीं होता। कार्य के बोझ से अपने को समाप्त न कर डालना। उससे कोई लाभ होने का नहीं । सदा यह ध्यान रखना कि - कत्र्तव्य मानो मध्याह्रकालीन सूर्य है - उसकी तीव्र किरणों से जीवनी षक्ति क्षीण हो जाती है। पवित्रता, धैर्य तथा प्रयन्त के द्वारा सारी बाधायें दूर हो जाती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सभी महान् कार्य धीरे-धीरे होते हैं।
निवेदिता द्वारा विवेकानन्द को उनके आदर्ष के बारे में पूछने पर वे कहते हैं - मेरा आदर्ष अवष्य ही थोड़े से षब्दों में कहा जा सकता है और वह है - मनुश्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेष देना तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना।

To be Continued (Article published in Kendra Bharati)


 
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हमें कर्म की प्रतिष्ठा बढ़ानी होंगी। कर्म देवो भव: यह आज हमारा जीवन-सूत्र बनना चाहिए। - भगिनी निवेदिता {पथ और पाथेय : पृ. क्र.१९ }
Sister Nivedita 150th Birth Anniversary : http://www.sisternivedita.org
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