ॐ
जैसा कि हिन्दू लोग मानते हैं, वेद शाश्वत हैं। अब हम समझने लगे हैं कि उनके शाश्वत् कहने का तात्पर्य क्या है शाश्वत् का तात्पर्य है कि इन नियमों का न तो अादि है, न अन्त, जैसे प्रकृति का न आदि है, न अन्त। एक पृथ्वी के बाद दूसरी पृथ्वी, एक सिद्धांत के बाद दूसरा सिद्धांत बनेगा और कुछ समय तक चलकर पुनः विघटित होकर प्रलय में विलीन हो जायेगा-किन्तु विश्व ज्यों का त्यों बना ही रहेगा। कोटि-कोटि सिद्धांत बनते हैं और करोडों विनष्ट हो जाते हैं, पर विश्व जयों का त्यों बना रहता है। किसी खास ग्रह के संदर्भ में काल के आदि अथवा अनंत के विषय में कुछ कहा जा सकता है। पर जहाँ तक विश्व का प्रश्न है, काल का कुछ भी अर्थ नहीं है। ठीक यही बात भौतिक मानसिक तथा आध्यात्मिक सिद्धांतों के बारे में भी है। उनका न आदि है, न अन्त और अपेक्षाकृत हाल ही में, अधिक से अधिक कुछ हजार वर्ष पहले, मनुष्य ने इन्हें प्रकाश में लाने की कोशिश शुरू की। अभी तो अनन्त राशि हमारे सामने पडी है। इसलिए वेदों से एक महान् प्रारम्भिक शिक्षा हमें मिलती है कि धर्म का अभी अारम्भ ही हुआ है। अाध्यात्मिक सत्य का अनंत हमारे सामने पडा है, जिसका हमें अाविष्कार करना है तथा जिसे हमें अपने जीवन में उतारना है। दुनियाँ ने हजारों पैगम्बरों को देखा है, पर अभी और भी करोडों लोगों को देखना है। (II,२४२)
केवल हाल ही में अाधुनिक विज्ञान ब्रह्माण्ड की शाश्वतता को थोडा-सा समझ पाया है। दूसरी ओर हमारे महान मनीषियों ने अपने आन्तरिक ज्ञान के अाधार पर ब्रह्माण्ड को अनन्त, अवर्णनीय और अअन्वेषणीय वर्णन किया है। भारतीय आध्यात्मिकता के शाश्वत प्रसंग का रहस्य इस तथ्य के कारण है कि हमने शाश्वत सत्य को दृढता से पकडा है। उपनिषदों के महान ऋषियों ने जब मानवता को 'अमृत-पुत्रों' के रूप में सम्बोधित किया था, वे इसी शाश्वत सत्य की ओर संकेत कर रहे थे।
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26
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