Wednesday, 18 June 2014

परा और अपरा ज्ञान



    प्राय: समस्त ज्ञान दो वर्गों में विभाजित है, परा, लौकिक और अपरा, आध्यात्मिक। एक नष्ट होने वाली वस्तुओं से सम्बन्धित है और दूसरा आत्मा के क्षेत्र से। नि:संदेह ज्ञान के दोनों वर्गों के मध्य बहुत बडा अंतर है और एक की प्राप्ति का मार्ग दूसरे की प्राप्ति के मार्ग से पूर्णतया भिन्न है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि एक भी तरीका, ज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश करने के प्रत्येक या सभी दरवाजों की कुंजी, एक मात्र और वैश्विक नहीं कहा जा सकता। परन्तु वास्तव में यह अन्तर केवल डिग्री का है प्रकार का नहीं।

    ऐसा नहीं है कि लौकिक और आध्यात्मिक ज्ञान एक दूसरे के विरोधी और असंगत हों; परन्तु वे दोनों एक ही चीज हैं-एक ही प्रकार का असीम ज्ञान जो प्रत्येक स्थान पर सूक्ष्मतम अणु से लेकर महत्तम ब्रह्म तक, पूर्णतया उपस्थित है-वे दोनों एक ही प्रकार का ज्ञान, अपने-अपने शनै शनै, विकास की विभिन्न अवस्थाओं में है। उस असीम ज्ञान को हम लौकिक ज्ञान कहते हैं, जब वह अपनी अभिव्यक्ति की निम्न प्रक्रिया में होता है, और आध्यात्मिक जब समवर्ती उच्च स्तर पर होता है।    
(IV, ४३३-४३४)

    भारतीय परम्परानुसार ज्ञान दो भागों में विभाजित है। यद्यपि यह समझा जाता है कि ज्ञान व्यक्ति के होने का महत्वपूर्ण भाग है, फिर भी महान अवतारों और गुरूओं द्वारा प्रकट किये गये मार्गों, में उनकी अपनी अद्वितीयता होती है। यह 'परा' ज्ञान ही है जो व्यकतिगत रूपान्तरण में (विशेष रूप से) प्रभावी होता है जो परम्परानुसार गुरू से शिष्य को सौंपा जाता है। स्वामीजी भी उन  शिष्यों को चेतावनी देते हैं जो दृश्यतापूर्वक अपने गुरू से चिपक जाते हैं और व्यक्ति  के हित के लिए उपदेशों से, सत्य की बलि देकर भी जुड जाते हैं।


--
Cell# +91-76396-70994 / 94180-36995
KATHA : Vivekananda Kendra
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी (Vivekananda Kendra Kanyakumari)
Vivekananda Rock Memorial & Vivekananda Kendra : http://www.vivekanandakendra.org
Read n Get Articles, Magazines, Books @ http://prakashan.vivekanandakendra.org
Landline : Himachal:+91-(0)177-2835-995, Kanyakumari:+91-(0)4652-247-012
Mobile : Kanyakumari:+91-76396-70994, Himachal:+91-94180-36995
Let's work on "Swamiji's Vision - Eknathji's Mission"

Follow Vivekananda Kendra on   blog   twitter   g+   facebook   rss   delicious   youtube   Donate Online

मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

No comments:

Post a Comment