ॐ
ज्ञान और सम्पत्ति की सम्पूर्ण शक्ति, जिसे एक बार बनाया गया था, समाप्त हो गई है - बहुत समय पहले का समस्त विज्ञान खो गया, सदैव के लिए खो गया। कोई नहीं जानता, कैसे? उससे हमें महत्ती शिक्षा प्राप्त होती है। मिथ्या अभिमान की निरर्थकता; सब कुछ निरर्थक और आत्मा का उत्पीडन है। यदि हमने इसे पूर्णतया देख लिया है, तब हमें, इस जगत और वह जो कुछ हमें प्रदान करता है, उससे अरुचि हो जाती है। इसे ही वैराग्य अनासक्ति कहा जा सकता है और यह ज्ञान की ओर जाने का पहला कदम है।
मनुष्य की स्वाभाविक आकांक्षा इन्द्रियों की ओर जाने की होती है। इन्द्रियों से दूर हो जाना उसे पुनः के पास ले जाता है अतः पहला पाठ जो हमें पढना पडेगा वह है संसार की असारता से मुँह मोड लेना।
कितने समय तक तुम डूबते, डुबकी लगाते और पाँच मिनट के लिए ऊपर आते रहोगे, फिर डूबने के लिए, फिर ऊपर आने और डूबनेे के लिए और इसी तरह ऊपर नीचे थपेडे खाते हुए? तुम इस कर्म-चक्र के साथ चक्राकार गति में ऊपर नीचे, ऊपर नीचे घूमते रहोगे?
कितने हजारों बार तुम राजा और शासक बन चके हो? कितनी बार तुम सम्पत्ती से सम्पन्न हो चके हो और गरीबी में छलांग लगा चुके हो?
कितने हजारों बार तुम्हें सर्वाधिक शक्तियाँ प्राप्त हों चुकी हैं?
परन्तु पुनः तुम्हें मनुष्य बनना पडा। कर्म सागर पर लुढकना ही पडा। यह विशाल कर्म-चक्र न तो विधवा के आँसूओं और न अनाथ की चीखों के लिए थमता है।
(IX, २१९)
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26
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