ॐ
हम प्रकृति के हाथों में गुलाम हैं-रोटी के टुकडे के गुलाम, प्रशंसा करने वाले गुलाम, दोषारोपण करने वाले गुलाम, पत्नि-पति-सन्तान प्रत्येक वस्तु के गुलाम। मैं सम्पूर्ण विश्व में क्यों जाता हूँ-माँगो, चुराओ, लूटो, चाहे जो करो-एक बालक को प्रसन्न करने के लिए मैं हर प्रकार का दुष्टतापूर्ण कार्य करूँगा। क्यों? क्योंकि मैं इसका पिता हूँ।और ठीक इसी समय इस जगत् में लाखों लडके, शरीर और मन दोनों से सुन्दर-भूख से मर रहे हैं। परन्तु वे मेरे लिए कोई नहीं। उन सब को मर जाने दो। मैं उन सब को मारने के लिए तत्पर हूँ केवल उस बदमाश को बचाने के लिए जिसे मैंने जन्म दिया है। इसे ही तुम प्रेम कहते हो मैं नहीं। मैं नहीं। यह तो बर्बरता है।
जब मन में, संसार की समस्त निरर्थकताओं के प्रति, इस स्तर तक अरुचि पैदा हो जाये, इसे प्रकृति से पलायन कहा जाता है। यह पहला कदम है। समस्त इच्छाओं त्याग देना चाहिए-स्वर्ग पाने की इच्छा भी।
इसलिए इस जीवन में और आनेवाले जीवन में भी सभी प्रकार के अानंद को त्याग देना चाहिए। लोगों में आनंद प्राप्त करने की स्वाभाविक इच्छा होती है; और जब वे इस जीवन में अपने स्वार्थपूरण आनंद को प्राप्त नहीं कर पाते, तो वे सोचते हैं कि मृत्यु के पश्चात् किसी अन्य स्थान पर ऐसा आनंद प्राप्त कर लेंगे। यदि ये आनंद हमें इस जीवन में इस जगत् में ज्ञान की ओर नहीं ले जाते, तो वे दूसरे जीवन में ज्ञान तक कैसे पहुँच सकते हैं?
मनुष्य का लक्ष्य क्या है? आनन्द अथवा ज्ञान? निश्चित ही अानन्द नहीं। मनुष्य का जन्म आनन्द भोगने अथवा पीडा सहन करने हेतु नहीं हुआ। ज्ञान ही लक्ष्य है। ज्ञान ही वह आनन्द है जिसे हम भोग सकते हैं। (IX, २१९-२२१)
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26
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