Friday, 8 November 2024

तुम परमहंस हो जाओगे - 5

महाराज का मुझ में अड़िग विश्वास

एक बार मैंने पाया कि डाक विभाग हमारे डाक-खाते से कर (टैक्स) काट रहा है। मैंने कहा, 'महाराज, हमारी संस्था तो धर्मार्थ है परन्तु वे कर काट रहे हैं। हमें उन्हें बताना चाहिये।' उन्होंने उत्तर दिया, 'ओह, क्या करना चाहिए इसे वे मेरे या तुम्हारे से अच्छी प्रकार जानते हैं।'

मैंने दृढ़तापूर्वक कहा, 'महाराज, यह ठीक नहीं हो रहा है।' परन्तु उन्होंने इस बारे में अधिक ध्यान नहीं दिया। मैं चुप न रह सका; मैंने पोस्टमास्टर को बताया। उसने मुझे अपनी संस्था की स्थिति को धर्मार्थ घोषित करनेवाला विवरण पेश करने को कहा। कुछ समय बाद डाक विभाग ने महाराज को सूचित किया कि कुछ हजार रुपये की एक बड़ी राशि उनके खाते में जमा कर दी गयी है। महाराज ने मुझे पूछा तो मैंने उन्हें बताया कि मैंने पोस्टमास्टर से बात की थी और उसने यह व्यवस्था की है। महाराज ने पूछा, 'क्या तुम्हारे कहने का यह मतलब है कि उन्होंने यह धन हम से ले लिया था।' मैंने कहा, 'हाँ महाराज।' तब से महाराज को मुझ पर अद्भुत विश्वास हो गया। इससे पहले मैंने उन्हें बताया था कि हिसाब-किताब ठीक रखने के लिये हमें एक खाता-बही, दैनिकी तथा अन्य वस्तुएँ खरीदनी हैं। उन्होंने पूछा, 'ये सब क्या हैं? मैंने पैंतीस साल तक काम चलाया और तुम आकर मुझे बताते हो कि हमें इन बही-खातों की जरुरत है।' मैंने कहा, 'महाराज हिसाब को सुव्यवस्थित रखने के लिये वे अच्छे हैं।' परन्तु बाद में, उन्हें धन मिल जाने पर उन्होंने कहा, 'तुम्हें जिस वस्तु की आवश्यकता हो, खरीद लो।' अब उन्हें पूर्व विश्वास हो गया था तथा फिर कभी उन्होंने इस बारे में चिन्ता नहीं की।

(स्वामी कल्याणानंद तथा कनखल सेवाश्रम की स्मृतियाँ - स्वामी सर्वगतानन्द)
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कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

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