Thursday 17 August 2023

स्वतंत्रता आंदोलन के भूले-बिसरे सेनानी - आर्य के. बश्यम (१९०७-१९९९)

आर्य के. बश्यम (१९०७-१९९९) : वर्तमान में 'हर घर तिरंगा, हर गांव तिरंगा' अभियान के माध्यम से नागरिकों में राष्ट्रप्रेम जाग्रत करने/रखने का प्रयास किया जा रहा है। ब्रिटिशकालीन भारत में तत्कालीन मद्रास शहर के सेंट जॉर्ज फोर्ट में 'यूनियन जैक' फहराया जाता था। पहली बार आर्य के. बश्यम ने २६ जनवरी, १९३२ को यूनियन जैक उतारकर भारतीय राष्ट्रध्वज फहराने का शौर्यपूर्ण कार्य किया था। ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि उस समय बश्यम की आयु केवल २५ वर्ष रही होगी। ध्यातव्य है कि सेंट जॉर्ज फोर्ट भारत में पहला अंग्रेजी (बाद में, ब्रिटिश) फॉर्टिस था, जो सन् १६३९-४४ ई. के दौरान मद्रास शहर में बनाया गया था। सन् १६८७ ई. में यहाँ १४८ फुट ऊँचा फ्लैग-पोस्ट बनाया गया था। उस समय वह देश में सबसे ऊँचा फ्लैग-पोस्ट था और उस पर प्रतिदिन यूनियन जैक फहराया जाता था। अंग्रेजों की दृष्टि में यह उनकी प्रतिष्ठा, शक्ति का सांकेतिक एवं भावात्मक प्रदर्शन था, तो दूसरी ओर भारतीयों की 'परतंत्रता का प्रतीक' था।
२६ जनवरी, १९३० को देश में पहली बार पूर्ण 'स्वराज दिवस' या 'स्वतंत्रता दिवस' मनाया गया था। आर्य बश्यम ने तिरंगा फहराने के लिए उसी दिन को चुना। उन्होंने अपनी धोती से एक बड़ा तिरंगा बनाया और उस पर तमिल में लिखा - "आज से भारत स्वतंत्र है।" बश्यम मध्य रात्रि २ बजे सुरक्षाकर्मियों से बचते-बचाते हुए फ्लैग-पोस्ट पर चढ़कर यूनियन जैक को उतार फेंका और अपना तिरंगा फहरा दिया। जब सुरक्षाकर्मियों ने फ्लैग-पोस्ट को घेर लिया, तो बश्यम उसी ऊँचाई से उन पर कूद गए और कुछ सुरक्षाकर्मियों को घायल कर दिया। जब पकड़ लिये गए, तो उन्हें कारावास में डाल दिया गया। कालान्तर में बश्यम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी बने।

आर्य बश्यम का जन्म एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता ए. रंगासामी अयंगर तमिल भाषा के पत्र 'स्वदेसमित्रन' के सम्पादक थे, जो सन् १८८२-१९८५ ई. तक मद्रास शहर से प्रकाशित हुआ करता था। स्पष्ट है कि आर्य बश्यम का जन्म तथा पालन-पोषण एक राष्ट्रीय विचारोंवाले परिवार एवं परिवेश में हुआ था।

सन् 1919 ई. में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड का आर्य बश्यम को गहरा आघात पहुँचा। वे क्रान्तिकारी वीर वांचिनाथन से भी प्रभावित थे। स्मरणीय है कि वांचिनाथन ने सन् १९११ ई. में तिरुनेलवेली के टैक्स कलेक्टर रॉबर्ट ऐश की गोली मारकर हत्या कर दी थी और बाद में तुतुकुड़ी के मनियाची रेलवे स्टेशन पर प्राण त्यागकर अपने संग्रामी तेवर को अमर कर दिया था। कालान्तर में उन्हीं के नाम पर मनियाची रेलवे स्टेशन का नाम 'वांचिमणियाच्चि जंक्शन' किया गया। वांचिनाथन से प्रेरित होकर आर्य बश्यम ने मद्रास प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर मार्श बैंग्स की हत्या की योजना बनाई थी। मार्श बैंग्स, चिदम्बरम् में नटराज पार्क का उद्घाटन करनेवाला था। बश्यम इसी समारोह में उसकी हत्या करनेवाले थे। इस कार्य हेतु उन्होंने गुप्त रूप से चार पिस्तौलें खरीदी थीं। इससे स्पष्ट होता है कि भारत को अंग्रेजी परतंत्रता से मुक्त कराने की भावना कितनी गहरी थी।

आर्य बश्यम लोकमान्य तिलक की 'स्वराज' की संकल्पना से प्रेरित थे। तिलक का अनुसरण करते हुए वे एक तेज तर्रार क्रान्तिकारी बने और ब्रिटिश औपनिवेशिक दासत्व का न केवल विरोध किया, अपितु पूर्ण सक्रियता से स्वतंत्रता संग्राम को चरम पर पहुँचाया। इस उपक्रम में उन्हें कई बार कारावास हुआ। स्वतंत्रता के लिए उन्होंने कष्ट झेले और यातनाएँ सहीं। ७० के दशक में ऑल इंडिया रेडियो के एक विशेष साक्षात्कार में आर्य बश्यम ने कारावास में मिली यातनाओं का वर्णन किया था। उन्होंने कहा कि ब्रिटिशों के अत्याचारों के विरूद्ध प्रश्न करने पर ३० कोड़े मारे जाते थे। जब-जब कोड़े पड़ते थे, वे 'वन्दे मातरम्' का नारा लगाते थे। 'वन्दे मातरम्' बंगाल से तमिलनाडु तथा अन्य प्रान्तों में किस रूप में प्रभावी था, इस घटना से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। 'भारत एक है' (एकात्म) की भावना के विपरीत सोचनेवाले तथा 'वन्दे मातरम्' का साम्प्रदायिकरण करनेवालों के प्रत्युत्तर में यह उदाहरण प्रसंगोचित है। 'वन्दे मातरम्' भारतीयों के लिए ऊर्जा प्रदायिनी शक्ति गीत बन चुका था।

आर्य बश्यम ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद सेनानियों की पेंशन का अस्वीकार किया। उन्होंने सुब्रह्मण्य भारती इत्यादि के चित्र एवं मूर्तियाँ बनाकर अपना जीवन निर्वाह किया। आज सुब्रह्मण्य भारती का अत्यन्त सहजता से उपलब्ध होनेवाला हैंडलबार मूंछें और पगड़ीवाला छायाचित्र आर्य बश्यम द्वारा बनाया हुआ है। सन् १९९९ ई. में ९३ वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया। लोग माँ भारती के इस वीर सपूत से अनभिज्ञ हैं।

- डॉ. आनंद पाटील

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