Wednesday, 16 August 2023

वीरांगना अवंतीबाई लोधी

1857 की क्रांति में रानी अवंतीबाई लोधी ने अपना अहम योगदान यह एक ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। रानी अवंतीबाई एक ऐसी योद्धा थी जिन्होंने अपनी युद्धकला और बलिदान की वजह से अपना नाम इतिहास में लिख दिया। अतीत के पन्नों पर उनका किया गया बलिदान धुंधला हो गया है इनके विषय में बहुत ही कम लोग जानते हैं। इनकी निडरता और अंग्रेजों से बराबर की टक्कर लेने की कहानी बड़ी रोचक है ।

अवंती बाई का जन्म 16 अगस्त 1831 को एक जमींदार परिवार में हुआ था इनके पिता जी का नाम "झुझार सिंह लोधी" और इनकी माता जी का नाम "हरि कंवर" था। रानी अवंती बाई के बचपन का नाम मोहिनी था। कम उम्र से ही वह अपना जीवन स्वतंत्रता के साथ जीती रही थी यह अपने बचपन के वर्षों में बेहद स्वतंत्र और अच्छी तरह से विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित हुई उन्होंने अपना प्रशिक्षण तीरंदाजी, घुड़सवारी और तलवार चलाने में ही नहीं बल्कि,सैन्य रणनीति से लेकर वह राज्य मामलों में भी कुशल थी।

वह हर प्रकार से एक सक्षम महिला थी यही कारण था कि वह दूर दूर तक प्रसिद्ध थी, जब इनकी वीरता के चर्चे रामगढ़ के राजा के कानों में पड़े तो उन्होंने अवंती बाई का विवाह अपने बेटे से करने का निश्चय किया। जुझार सिंह की यह साहसी कन्या रामगढ़ रियासत की कुल मधुबनी इसके बाद 1849 में इनका विवाह विक्रमादित्य लोधी से हो गया इनका विवाह कम उम्र में ही हो गया था। विवाह के बाद सन 1850 में रामगढ़ रियासत के राजा और वीरांगना अवंतीबाई लोधी के ससुर लक्ष्मण सिंह की मृत्यु हो गई और राजकुमार विक्रमादित्य सिंह का रामगढ़ रियासत के राजा के रूप में राजतिलक किया गया।

लेकिन कुछ वर्षों बाद राजा विक्रमादित्य सिंह अस्वस्थ रहने लगे, अवंतीबाई को 2 पुत्र हुए जिनका नाम था शेर सिंह और अमर सिंह। विक्रमादित्य लोधी की  अस्वस्था के कारण राज्य को संभालने में वह असमर्थ हो गए थे। जब अंग्रेजों को इस बात का पता चला कि विक्रमादित्य है बीमार हो गए हैं और वह राज्य की रक्षा करने में असमर्थ हैं, तब उन्होंने रामगढ़ पर आधिपत्य करना चाहा उन्होंने अवंती बाई के दोनों पुत्रों को अयोग्य घोषित कर दिया । इसके बाद रानी अवंती बाई ने अपने हाथों में राज्य की सत्ता ले ली थी तभी अंग्रेजों ने अवंतीबाई पर प्रशासन लागू कर उन्हें सत्ता से हटा दिया। उस समय अंग्रेजों द्वारा एक कानून लगाया जाता था कि जब कोई भी राजा अपनी सत्ता संभालने में असमर्थ होगा या फिर उनके राज्य को संभालने वाला कोई वंशज नहीं होगा तो अंग्रेज उस पर अपना आधिपत्य कर लेंगे। इसी कानून को उन्होंने अवंतीबाई पर लागू किया ।

इसी बीच 13 सितंबर 1857 को रामगढ़ पर ब्रिटिश शासक द्वारा कानून स्थापित किया गया अंग्रेजों का यह निर्णय अवंतीबाई को स्विकार नहीं हुआ उन्होंने इस निर्णय को अपना अपमान समझा। अवंतीबाई ने निर्णय किया कि वह अंग्रेजों से इस बात का प्रतिशोध अवश्य लेगी। 1857 में उन्हें अपना प्रतिशोध लेने का सही अवसर मिल गया इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश शासक को राज्य से बाहर निकलवा दिया और ब्रिटिश शासक के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया।

अवंती बाई का अगला कदम अपने पड़ोसी राज्यों को शामिल करना था इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश अधीनता के विरुध्ध युद्ध में शामिल होने के लिए शासकों को पत्र लिखा उस पत्र के साथ उन्होंने चूड़ियों के डिब्बे भी भेजे। अपने पत्र में लिखते हुए उन्होंने कहा कि यदि अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी है अपनी तलवार निकालो और अंग्रेजो के विरुध्ध युद्ध करो यदि ऐसा नहीं कर सकते तो इन चूड़ियों को पहन कर अपने घर में छिपे रहो।

सभी राजा और जमीदारों ने रानी के साहस और शौर्य की बड़ी सराहना की और उनकी योजना अनुसार अंग्रेजो के विरुध्ध युद्ध का झंडा खड़ा कर दिया। हर जगह गुप्त सभा कर देश में स्वतंत्र क्रांति की ज्वाला फैला दी। अवंती बाई के इस निर्णय ने आसपास के साम्राज्य में क्रांति की एक चिंगारी जगा दी थी उनकी यह अपील केंद्रीय राज्यों में भी क्रांति लाने में सफल रही इसके बाद ज्यादातर राज्य उनके साथ आकर खड़े हो गए थे साल 1857 तक पूरा क्षेत्र युद्ध में शामिल हो गया था इस मोर्चे का नेतृत्व खुद अवंतीबाई कर रही थी उन्होंने युद्ध में लड़ने के लिए 4000 से ज्यादा लोगों की एक सेना की रचना कि ।

इसी बीच इस्ट ईन्डिया कंपनी के विरुध्द हमला बोलने के लिए तैयार थी उनकी पहली लड़ाई मंडला के पास खेरी गांव में हुई। जब यह युद्ध हुआ था तब अंग्रेजों ने सोचा था कि इसे कुचलना बहुत आसान होगा अवंती बाई के कुशल रणनीति की बदौलत वह इस युद्ध में विजय हो गए थे अपनी हार की वजह से अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा।

मंडला का डिप्टी कमिश्नर लंबे समय से रानी से अपने अपमान का बदला लेने को आतुर था और वह हर साल में अपनी पराजय का बदला लेना चाहता था इसके बाद डिप्टी कमिश्नर ने अपनी सेना को पुनर्गठित का रामगढ़ के किले पर हमला बोल दिया जिसमें रीवा नरेश की सेना भी अंग्रेजों का साथ दे रही थी रानी अवंती बाई की सेना अंग्रेजों की सेना के मुकाबले कमजोर थी।  लेकिन फिर भी वीर सैनिकों ने साहसी वीरांगना अवंतीबाई लोधी के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना का जमकर मुकाबला किया दिसंबर 1857 से फरवरी 1858 तक मंडला क्षेत्र को अवंती बाई ने अपने नियंत्रण में रखा अंग्रेजों को इस बात का अंदाजा हो गया था की रानी अवंती बाई से टक्कर लेना आसान काम नहीं है इसके बाद उन्होंने क्रूर बल के साथ हमला करने का फैसला किया इस बार उन्होंने कई गुना तैयारी के साथ रामगढ़ पर हमला किया उन्होंने इस क्षेत्र में आग लगा दी और लोगों को क्रूरता से मारना शुरू कर दिया। इस हमले से सुरक्षा पाने के लिए रानी अवंती बाई के पास देवीगढ़ की पहाड़ियों में जाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं बचा था । रानी अवंती बाई भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी उन्होंने जंगलों में रहते हुए अपने रणनीति के तहत गोरिल्ला युद्ध तकनीकी का भी प्रयोग किया इस तकनीकी की मदद से उन्होंने जंगलों में रेडिसन शिविर में घुसपैठ की शिविर में घुसपैठ की और उनकी सेना के बीच कोहराम मचा दिया।

मातृभूमी की रक्षा करते करते 20 मार्च 1858 को देश की वीरांगना अवंती बाई वीर गति को प्राप्त हो गई।

आज के दिन विशेष -
१ - कवियित्री सुभद्रकुमारी चौहान और वीरांगना अवंतीबाई लोधी का जन्म दिवस
२ - ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस देव जी का महा समाधी दिवस
३ - वीर उदयचंद, तारा रानी, फूलेना बाबू का बलिदान दिवस
४ - पूर्व प्रधानमंत्रि श्री अटल बिहारी वाजपेई जी का निर्वाण दिवस


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The main theme of my life is to take the message of Sanatana Dharma to every home and pave the way for launching, in a big way, the man-making programme preached and envisaged by great seers like Swami Vivekananda. - Mananeeya Eknathji

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