जन्म 29 जुलाई, 1922
जन्म भूमि पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु 15 नवम्बर, 2021
मृत्यु स्थान पुणे, महाराष्ट्र
पति/पत्नी निर्मला पुरंदरे
संतान तीन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र लेखन
भाषा मराठी
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, 2019
'महाराष्ट्र भूषण', महाराष्ट्र सरकार, 2015
जन्म भूमि पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु 15 नवम्बर, 2021
मृत्यु स्थान पुणे, महाराष्ट्र
पति/पत्नी निर्मला पुरंदरे
संतान तीन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र लेखन
भाषा मराठी
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, 2019
'महाराष्ट्र भूषण', महाराष्ट्र सरकार, 2015
प्रसिद्धि मराठी साहित्यकार, नाटककार तथा इतिहास लेखक
विशेष योगदान शिवाजी सम्बन्धित इतिहास शोध
बाबासाहेब पुरंदरे देश के लोकप्रिय इतिहासकार रहने के साथ थिएटर कलाकार भी रह चुके थे। उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज पर अपने विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। बाबासाहेब मोरेश्वर पुरंदरे मराठी साहित्यकार, नाटककार तथा इतिहास लेखक थे। वे शिवाजी से सम्बन्धित इतिहास शोध के लिये प्रसिद्ध रहे। प्रसिद्ध नाटक 'जाणता राजा' (विवेकशील राजा) उनकी ही कृति है। महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च सम्मान 'महाराष्ट्र भूषण' से सम्मानित किया था। भारत सरकार द्वारा बाबासाहेब पुरंदरे को 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया था।
ऐसा माना जाता है कि बाबासाहेब ने महान नाटक 'जाणता राजा' (जनता का राजा) के माध्यम से छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास को घर-घर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह महानाट्य न केवल महाराष्ट्र में बल्कि आंध्र प्रदेश, गोवा और देश के अन्य हिस्सों में भी प्रसिद्ध हुआ। बाबासाहेब पुरंदरे ने छत्रपति शिवाजी महाराज पर कई किताबें लिखी हैं और अपना जीवन इतिहास और शोध के लिए समर्पित कर दिया था। उन्हें 2019 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार 'पद्म विभूषण' और 2015 में 'महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। उन्होंने न केवल शिवराय (छत्रपति) का इतिहास लिखा बल्कि पेशवाओं के इतिहास को भी दुनिया के सामने रखा।
बाबासाहेब पुरंदरे देश के लोकप्रिय इतिहासकार रहने के साथ थिएटर कलाकार भी रह चुके थे। उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज पर अपने विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। बाबा पुरंदरे ने शिवाजी के जीवन से लेकर उनके प्रशासन और उनके काल के किलों पर भी कई किताबें लिखीं। इसके अलावा उन्होंने छत्रपति के जीवन और नेतृत्व शैली पर एक लोकप्रिय नाटक- जानता राजा का भी निर्देशन किया था।
ऐसा माना जाता है कि बाबासाहेब ने महान नाटक 'जाणता राजा' (जनता का राजा) के माध्यम से छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास को घर-घर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह महानाट्य न केवल महाराष्ट्र में बल्कि आंध्र प्रदेश, गोवा और देश के अन्य हिस्सों में भी प्रसिद्ध हुआ। बाबासाहेब पुरंदरे ने छत्रपति शिवाजी महाराज पर कई किताबें लिखी हैं और अपना जीवन इतिहास और शोध के लिए समर्पित कर दिया था। उन्हें 2019 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार 'पद्म विभूषण' और 2015 में 'महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। उन्होंने न केवल शिवराय (छत्रपति) का इतिहास लिखा बल्कि पेशवाओं के इतिहास को भी दुनिया के सामने रखा।
बाबासाहेब पुरंदरे देश के लोकप्रिय इतिहासकार रहने के साथ थिएटर कलाकार भी रह चुके थे। उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज पर अपने विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। बाबा पुरंदरे ने शिवाजी के जीवन से लेकर उनके प्रशासन और उनके काल के किलों पर भी कई किताबें लिखीं। इसके अलावा उन्होंने छत्रपति के जीवन और नेतृत्व शैली पर एक लोकप्रिय नाटक- जानता राजा का भी निर्देशन किया था।
पुरंदरे को छत्रपति शिवाजी महाराज के पूर्व-प्रतिष्ठित उत्तराधिकारियों में से एक माना जाता था। पुरंदरे ने 1980 के दशक के मध्य में, शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित नाटक 'जाणता राजा' लिखा और निर्देशन भी किया था। 12 साल की उम्र में पुरंदरे ने नाना साहब पेशवा के जीवन पर आधारित एक किताब लिखी। 1946 में जब बाबासाहेब 24 वर्ष के थे तो उन्होंने शिवाजी महाराज के जीवन की कहानियों का संकलन 'जल्य थिंग्या' पूरा किया। बाबासाहेब ने शिवाजी और अन्य ऐतिहासिक विषयों से संबंधित 36 पुस्तकें लिखीं। जल्त्य थिंग्या के अलावा, उन्होंने मुज्र्याचे मंकारी, पुरंदर यांची दौलत, शनिवारवद्यतिल शामदान, पुरंदरच्य बुरुजावरुन, पुरंदरयांची नौबत, पुरंदर्यंचा सरकारवाडा और महाराज जैसे ऐतिहासिक सर्वव्यापी भी लिखे। उन्होंने भूलभुलैया नव रायगढ़, भूलभुलैया नव आगरा, भूलभुलैया नव पन्हालगढ़, भूलभुलैया नव प्रतापगढ़ और भूलभुलैया नव पुरंदर जैसे विभिन्न किलों पर जानकारीपूर्ण पुस्तकें लिखीं। 1962 में उन्होंने शिलंगनाचे सोन और 1973 में शेलारखिंड लिखी। जाने-माने अभिनेता और निर्माता रमेश देव ने पुरंदरे के उपन्यास शेलारखिंड पर सरजा फिल्म बनाई।
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कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥
Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26
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