Thursday 28 July 2022

त्रिपुरा के बलिदानी स्वयंसेवक


 
विश्व भर में फैले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करोड़ों स्वयंसेवकों के लिए 28 जुलाई, 2001 एक काला दिन सिद्ध हुआ। इस दिन भारत सरकार ने संघ के उन चार वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की मृत्यु की विधिवत घोषणा कर दी, जिनका अपहरण छह अगस्त, 1999 को त्रिपुरा राज्य में कंचनपुर स्थित 'वनवासी कल्याण आश्रम' के एक छात्रावास से चर्च प्रेरित आतंकियों ने किया था।

इनमें सबसे वरिष्ठ थे 68 वर्षीय श्री श्यामलकांति सेनगुप्ता। उनका जन्म ग्राम सुपातला (तहसील करीमगंज, जिला श्रीहट्ट, वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था। श्री सुशीलचंद्र सेनगुप्ता के पांच पुत्रों में श्री श्यामलकांति सबसे बड़े थे। विभाजन के बाद उनका परिवार असम के सिलचर में आकर बस गया।

मैट्रिक की पढ़ाई करते समय सिलचर में प्रचारक श्री वसंतराव, एक अन्य कार्यकर्ता श्री कवीन्द्र पुरकायस्थ तथा उत्तर पूर्व विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक श्री उमारंजन चक्रवर्ती के संपर्क से वे स्वयंसेवक बने।

मैट्रिक करते हुए ही उनके पिताजी का देहांत हो गया। घर की जिम्मेदारी कंधे पर आ जाने से उन्होंने नौकरी करते हुए एम.काॅम. तक की शिक्षा पूर्ण की। इसके बाद उन्होंने डिब्रूगढ़ तथा शिवसागर में जीवन बीमा निगम में नौकरी की। 1965 में वे कोलकाता आ गये। 1968 में उन्होंने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। इससे उन्हें तीन पुत्र एवं एक कन्या की प्राप्ति हुई। नौकरी के साथ वे संघ कार्य में भी सक्रिय रहे। 1992 में नौकरी से अवकाश लेकर वे पूरा समय संघ कार्य में लगाने लगे। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने उनकी योग्यता तथा अनुभव देखकर उन्हें क्षेत्र कार्यवाह का दायित्व दिया।

दूसरे कार्यकर्ता श्री दीनेन्द्र डे का जन्म 1953 में उलटाडांगा में हुआ था। उनके पिता श्री देवेन्द्रनाथ डे डाक विभाग में कर्मचारी थे। आगे चलकर यह परिवार सोनारपुर में बस गया। 1963 में यहां की 'बैकुंठ शाखा' में वे स्वयंसेवक बने। यहां से ही उन्होंने 1971 में उच्च माध्यमिक उत्तीर्ण किया।

'डायमंड हार्बर फकीरचंद काॅलिज' से गणित (आनर्स) में पढ़ते समय उनकी संघ से निकटता बढ़ी और वे विद्यार्थी विस्तारक बन गये। क्रमशः उन्होंने संघ का तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया। प्रचारक के रूप में वे ब्रह्मपुर नगर प्रचारक, मुर्शिदाबाद सह जिला प्रचारक, कूचबिहार, बांकुड़ा तथा मेदिनीपुर में जिला प्रचारक रहे। इसके बाद वे विभाग प्रचारक, प्रांतीय शारीरिक प्रमुख रहते हुए वनवासियों के बीच सेवा कार्यों में भी संलग्न रहे।

51 वर्षीय श्री सुधामय दत्त मेदिनीपुर शाखा के स्वयंसेवक थे। स्नातक शिक्षा पाकर वे प्रचारक बने। पहले वे हुगली जिले में चूंचड़ा नगर प्रचारक और फिर मालदा के जिला प्रचारक बनाये गये। कुछ समय तक उन पर बंगाल के सेवाकार्यों की भी जिम्मेदारी रही। इसके बाद पत्रकारिता में उनकी रुचि देखकर उन्हें कोलकाता से प्रकाशित हो रहे साप्ताहिक पत्र 'स्वस्तिका' का प्रबन्धक बनाया गया। अपहरण के समय वे अगरतला में विभाग प्रचारक थे।

बंगाल में 24 परगना जिले के स्वयंसेवक, 38 वर्षीय श्री शुभंकर चक्रवर्ती इनमें सबसे युवा कार्यकर्ता थे। एल.एल.बी. की परीक्षा देकर वे प्रचारक बने। वर्धमान जिले के कालना तथा कारोयात में काम करने के बाद उन्हें त्रिपुरा भेजा गया। इन दिनों वे त्रिपुरा में धर्मनगर जिले के प्रचारक थे।

इन सबकी मृत्यु की सूचना स्वयंसेवकों के लिए तो हृदय विदारक थी ही; पर उनके परिजनों का कष्ट तो इससे कहीं अधिक था, जो आज तक भी समाप्त नहीं हुआ। चूंकि इन चारों की मृत देह नहीं मिली, अतः उनका विधिवत अंतिम संस्कार तथा मृत्यु के बाद की क्रियाएं भी नहीं हो सकीं।


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कथा : विवेकानन्द केन्द्र { Katha : Vivekananda Kendra }
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मुक्तसंग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्ध‌‌यसिद्धयोर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८.२६॥

Freed from attachment, non-egoistic, endowed with courage and enthusiasm and unperturbed by success or failure, the worker is known as a pure (Sattvika) one. Four outstanding and essential qualities of a worker. - Bhagwad Gita : XVIII-26

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